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Showing posts from March, 2021

टीबी (क्षय रोग) में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए – टीबी में भोजन 🌹 *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹 राम राम जी* 🌹🙏🙏🌹टीबी, Tuberculosis, क्षय और तपेदिक ये सभी एक ही रोग के नाम है | टीबी एक संक्रामक बीमारी है यानि छूत की बीमारी है। पहले टीबी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो जाती है। क्षय रोग मुख्य रूप से फेफड़ों का होता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों में भी क्षय रोग हो सकता है। टीबी का इन्फेक्शन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नाम के बैक्टीरिया के जरिए होता है। लगातार और लंबे समय ( करीब छह महीने से एक साल) तक एंटी बायोटिक्स के सेवन से इस बीमारी पर काबू पाया जाता है। टीबी रोग में शुरू में कमजोरी महसूस होती है, फिर भूख घटती जाती है। फिर खांसी, कफ और बुखार भी हो जाते हैं। सिरदर्द, जुकाम और अन्य छोटी बीमारियां भी आक्रमण करने लगती हैं। बाद में कफ के साथ खून भी आने लगता है। कमजोरी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। टीबी की बीमारी में लंबे समय तक दवाइयों के साथ-साथ अच्छी खुराक भी जरूरी होती है। टीबी मे आहार की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है की इस बीमारी में मौतों का मुख्य कारण मरीजों को उचित पोषक आहार न मिल पाना भी होता है। टीबी में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी बहुत जरूरी होती है और ऐसा सही पोषक भोजन से ही हो सकता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से बीमारी पर पूरी तरह काबू पाने में मदद मिलती है। टीबी के मरीजों को अपनी डायट का विशेष ध्यान रखना चाहिए इस बीमारी में शरीर को यदि जरूरी खुराक न दी जाए तो एक तो बीमारी को पूरी तरह ठीक होने में बहुत समय लगता है और दूसरे, बीमारी के फिर से पनपने का भी खतरा रहता है।इसे दूसरी तरह यूं भी कहा जा सकता है कि यदि शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्व मिलते रहें तो शरीर में टीबी होने का खतरा भी जाता रहता है यानी शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्व देकर टीबी से लड़ा जा सकता है। यदि आप टी.बी का उपचार ले रहे है तो अपने खानपान में बदलाव करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरुर लें | टीबी के रोगी को क्या खाना चाहिए :Tuberculosis tb me kya na khaye parhej टीबी (क्षय रोग) में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिएटीबी मे आहारक्षय रोग में मरीज का खाना हलका, आसानी से पचने वाला तथा अधिक पौष्टिक होना चाहिए।टीबी के रोगी को सब्जी में प्याज, करेला, लहसुन, खीरा, टमाटर, आलू, फूल गोभी,मटर,पालक, लौकी, पालक खाएं। आइये अब विस्तार से जानते है टीबी रोगी की आहार तालिका |मक्खन, मिश्री में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।नये रोग में एक गिलास गर्म दूध सुबह-शाम पिएं। और टोंड दूध पियें |पुराने चावल, मूंग की दाल, सूजी की रोटी, अरारोट, बाली, जौ आदि नियमित रूप से खाएं।फलों में अंगूर, मीठा संतरा, आंवला, अनार, मीठा आम, केला, सेब, नींबू, नारियल सेवन करें।कमजोरी में शहद, मुनक्का, अखरोट, खजूर, गाजर खाएं।हरी पत्तेदार और फली वाली सब्जियां : टीबी के रोगी को अपने भोजन में पालक और इसी के जैसी हरी पत्तेदार सब्जियां अपने भोजन में जरूर शामिल करनी चाहिए। इससे शरीर को आयरन और विटामिन बी की अच्छी मात्रा मिलती है। इसी के साथ सेम, मटर और अन्य फली वाली सब्जियां भी बहुत फायदेमंद होती हैं। उपाय : कच्ची लौकी को कद्दूकस कर लें। फिर इसे आंच पर बस एक उबाल तक पकाएं। इसके बाद इसमें शक्कर मिलाकर खाएं।फलों में शरीफा और बेरी का सेवन करें : टीबी के दौरान रोगी के शरीर में रोजाना फलों की कम-से-कम दो कप मात्रा शरीर में जरूर जानी चाहिए। फलों के बीच भी कस्टर्ड एप्पल (श्रीफल या शरीफा) और स्ट्रॉबेरी विशेष रूप से फायदेमंद हैं। टीबी बीमारी में कस्टर्ड एप्पल को खाने का तरीका कुछ अलग है। इसमें शरीफा के गूदे को पानी में उबालते हैं और फिर ठंडा करके इसका सेवन करते हैं। रोजाना ऐसा करने से काफी लाभ होता है। सभी तरह की बेरी का सेवन टीबी में अच्छा रहता है। बेरी में पोटेशियम, विटामिन और अन्य जरूरी पोषक तत्व होते हैं, जो बीमारी के खिलाफ लड़ते हैं।साबुत अनाज प्रचुर मात्रा में लें : क्षय रोग में खान पान के डाइट चार्ट के अनुसार रोगी को साबुत अनाज ज्यादा खाना चाहिए। इसके तहत ओटमील (जौ और अन्य अनाजों का दलिया), ज्वार, बाजरा, विभिन्न अनाजों के आटे को मिलाकर बनाई गई रोटियां, होल व्हीट, ब्राउन राइस आदि आते हैं।चिकनाई में जैतून का तेल चुनें : जब चिकनाई यानी तैलीय पदार्थ खाने की बात आती है तो टीबी के रोगी को मक्खन, घी जैसे सेचुरेटिड फैट के बजाय जैतून के तेल जैसे अनसेचुरेटिड फैट का चुनाव करना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस तेल में अच्छी वाली फैट होती है। हालाँकि जैतून का तेल उपलब्ध ना होने पर सामान्य घी का भी प्रयोग किया जा सकता है |ओमेगा-3 फैटी एसिड के सेवन पर जोर दें : यह भी अच्छी वाली फैट होती है, जो मछली और उसके तेल, अलसी और उसके तेल, सरसों के तेल, सभी नट्स, जैसे बादाम, अखरोट, काजू, पिस्ता, मूंगफली आदि में पाई जाती है। उपाय : थोड़ी अखरोट की गिरी लें। दो-तीन कलियां लहसुन की लें। दोनों को मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण को देसी घी में भूनकर खाएं। ऐसा रोज करें।प्रोटीन: टीबी के दौरान कमजोर शरीर को प्रोटीन देना बहुत जरूरी हो जाता है। इसलिए प्रोटीन के धनी पदार्थ अपने भोजन में शामिल करें। प्रोटीन के लिए मछली, पनीर, दालें, उबले अंडे, सोया और मांस, भी खाएं | अंडा और टीबी को लेकर भी कई लोगो में शंका बनी रहती है लेकिन अगर आप मांसाहारी है और नॉन वेज खाना खाते है तो टीबी रोग में उबला अंडा खा सकते है यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है |टीबी में अंगूर को भी बहुत लाभदायक होता है। रोजाना करीब एक पाव अंगूर खाने से बहुत लाभ होता है।सेब का मुरब्बा रोज खाने से भी टीबी के रोगी को लाभ मिलेगा।बेर या बेरियों को सीधा न खाकर इनका गूदा कुचलकर पानी में उबालें और फिर उसमें शक्कर डालकर खाएं।विशेषज्ञों के अनुसार, यदि केले के तने का रस निकालकर और छानकर 40 दिन तक रोजाना एक कप पिया जाए तो टीबी रोगी को बहुत लाभ होता है।टीबी में लहसुन का सेवन भी बहुत लाभकारी है। यदि एक महीने तक लहसुन की दो-तीन कलियां रोज सुबह कच्ची ही चबा ली जाएं तो रोग शरीर से पूरी तरह निकल जाएगा। जानिए – लहसुन खाने के फायदे और 14 बेहतरीन औषधीय गुणरोजाना लहसुन के रस के साथ शहद मिलाकर चाटने से भी लाभ होगा।दूध को पीने से पहले चार-पांच कलियां लहसुन डालकर उबालें। उबलने के बाद दूध को छानकर पीएं।टीबी रोग में खानपान के ये विशेष उपाय भी करें :रोजाना दूध के साथ गुलकंद खाएं।विटामिन डी के लिए टीबी रोगी को धूप में जरुर बैठना चाहिए |दूध में बकरी का दूध विशेष लाभ देगा। रोजाना आधा लीटर बकरी के दूध में आधा चम्मच सौंठ डालकर और गर्म करके पीएं।चार-एक के अनुपात में मक्खन और शहद लें और दोनों को मिलाकर रोज सुबह खाएं। घी नहीं मक्खन होना चाहिए |रोजाना कच्चा नारियल खाने से भी टीबी रोगी को लाभ होता है।एक पाव बकरी का दूध लें। लहसुन की चटनी बना लें। थोड़ा-सा नारियल कस लें। अब तीनों को मिलाकर इनका हलवा बनाएं और सेवन करें।खजूर, छुहारे, नारियल का रोजाना सेवन करें।पानी आर.ओ से फ़िल्टर किया हुआ या उबला हुआ ही पियें | भारी मेटल वाला कुँए, नदी या हैण्ड पंप से निकला हुआ पानी सीधे ना पिएटीबी में क्या नहीं खाना चाहिए : क्षय रोग में परहेजटीबी में ऐसा भोजन नहीं होना चाहिए, जो मुश्किल से पचे, क्योंकि ऐसा भोजन एसोडिटी पैदा कर सकता है और श्वसन-तंत्र की गड़बड़ी को और बढ़ा सकता है।तंबाकू का सेवन (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा आदि) हानिकारक होगा।शराब का सेवन नुकसान करेगा। टीबी के इलाज के लिए ली जाने वाली कुछ दवाइयों से शराब पीने की स्थिति में लिवर को नुकसान की आशंका बहुत बढ़ जाती है। याद रखें शराब का सेवन जानलेवा होगा यदि आप टी.बी के इलाज के दौरान शराब पियेंगे तो |चाय, कॉफी और कैफीन वाले अन्य पदार्थों का सेवन भी कम-से-कम करें।रिफाइंड उत्पादों का सेवन भी कम-से-कम करें। इनमें चीनी, पास्ता, सफेद ब्रेड,पीज्जा, बर्गर, मैगी और सफेद चावल विशेष रूप से शामिल हैं। यह भी पढ़ें – T.B के कारण, लक्षण, प्रकार और बचाव की जानकारीहाई फैट, हाई कोलेस्ट्रॉल वाले रेड मीट जैसे भोजन से परेहज करें।ठंडे, चटपटे, तले भुने तेल में फ्राई किये गए पदार्थ न खाएं। ज्यादा मिर्च-मसालेदार आहार भी न खाएं।बासी अन्न और साग-सब्जी का सेवन न करें।अचार, खटाई, तेल, घी का अधिक सेवन करने से बचें। सिर्फ सयंमित मात्रा में ही लें |टीबी या क्षय रोग इन बातों का भी जरुर रखें ख्याल :टीबी को दूर करने वाली कुछ दवाइयों को खाने से भूख में कमी आती है, जी मिचला सकता है और पेट में भी दर्द होता है। आखों से देखने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है। इन साइड इफेक्ट से घबराकर दवाई बिल्कुल न छोड़ें। इसके बजाय इन सारे या किसी एक दुष्प्रभाव के बारे में अपने डॉक्टर को बताएं।पौष्टिक भोजन किसी भी प्रकार से न छोड़ें। जिस प्रकार भी आपको अच्छा लगे, शरीर को भरपूर खुराक दें। एक बार में ज्यादा न खाकर कई-कई बार थोड़ा-थोड़ा खाएं, जिससे भूख कम लगने पर भी जरूरी पोषक तत्व शरीर में जाते रहें। दो भोजन के बीच में ज्यादा कैलोरी वाले प्रोटीन शेक का इस्तेमाल करें। पेट ठीक महसूस न हो रहा हो तो पुदीना या अदरक की चाय पीएं।रोज सुबह के समय नंगे पांव घास पर टहलें। बीमारी की हालत में स्कूल या ऑफिस न जाएं।खांसते या छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें। हवादार और अलग कमरे में लेटें। सूरज की रोशनी टीबी के मरीज के लिए बहुत जरुरी होती है |अपने डॉक्टर से टीबी के दौरान बरती जाने वाली अन्य सावधानियों के बारे में पूछे और उन पर अमल करें, ताकि आपके जरिए दूसरे लोग इस बीमारी की चपेट में न आने पाएं।टीबी रोगियों के कुछ आम सवाल और उनके जवाबसवाल : क्या टीबी के हर रोगी से रोग दूसरों में फैल सकता है?जवाब : नहीं। टीबी फैलने का डर सिर्फ उन रोगियों से होता है जिनके फेफड़े में टीबी से बड़े-बड़े जख्म बन जाते हैं और असंख्य टीबी बैक्टीरिया इन जख्मों में पनप रहे होते हैं। रोगी के खांसने, छींकने, थूकने, सांस छोड़ने पर ये बैक्टीरिया हवा में फैल जाते हैं और दूसरों के फेफड़ों में पहुंच रोग पैदा कर सकते हैं।सवाल : दवा शुरू करने के कितने दिन बाद टीबी के रोगी से टीबी फैलने का डर खत्म हो जाता है?जवाब : दवा शुरू करने के 72 घंटों के भीतर ही रोगी के फेफड़े में पल रहे। माइकोबैक्टीरिया तेजी से मरने लगते हैं। तीन हफ्ते बीतते-बीतते शरीर के भीतर माइकोबैक्टीरिया की आबादी इतनी कम रह जाती है। कि टी.बी फैलने का खतरा बिल्कुल खत्म हो जाता है। सवाल : टी.बी का पूरा इलाज लेने के बाद भी क्या यह रोग फिर से हो सकता है?जवाब : टी.बी के फिर से होने की आशंका उन्हीं लोगों में अधिक होती है जो इलाज बीच में छोड़ देते हैं। इलाज पूरा लिया जाए तो टी.बी की रिलेप्स दर 2 प्रतिशत से भी कम है। यह पुनरावृत्ति अगर हो तो इसकी सबसे अधिक संभावना इलाज पूरा होने के पहले या दूसरे साल में होती है।सवाल : टी.बी-रोधक रिफेम्पिसिन दवा सुबह-सुबह खाली पेट लेना क्यों जरूरी है?जवाब : सुबह-सुबह खाली पेट लेने से रिफेम्पिसिन आंतों से बेहतर जज्ब होती है, खून में यह पूरी उपयुक्त मात्रा में पहुंचती है और रोगी को उसका पूरा लाभ मिलता है। नतीजतन यह पूरे जोर-शोर से शरीर में छुपे टीबी बैक्टीरिया का सफाया कर पाती है। टीबी पर जीत हासिल करने के लिए इसीलिए इस डॉक्टरी सलाह का पालन करने में ही समझदारी है।सवाल : एम.डी.आर टी.बी क्या है?जवाब : मनुष्य में फैलते-फैलते टी.बी-कारक माइकोबैक्टीरिया की कई ऐसी नई नस्लें उपज आयी हैं जिनकी संरचना साधारण माइकोबैक्टीरिया की बनावट से अलग है। उन पर सामान्य टीबी-रोधक दवाएं असर नहीं कर पातीं। ऐसे माइकोबैक्टीरिया से उपजी टीबी मल्टी-ड्रग रजिस्टेंट होती है, जिसे संक्षेप में एमडीआर टीबी कहते हैं।सवाल : टी.बी-रोधक आईएनएच दवा के साथ विटामिन बी, की गोली लेना क्यों जरूरी है?जवाब : आईएनएच (आइसोनायजिड) लेने से शरीर में विटामिन बी की कमी आ जाती है। रोजाना विटामिन बी उर्फ पिरीडॉक्सिन की गोली लेने से इस कमी की भरपाई होती रहती है और शरीर स्वस्थ रहता है। चोकर वाला आटा, भूसी वाले चावल, अंकुरित दालें, सब्जियाँ और गोश्त भी विटामिन बी के अच्छे स्रोत हैं, जिनके नियमित सेवन से यह पूर्ति की जा सकती है।अन्य सम्बंधित पोस्टटीबी की बीमारी में भोजन : जानिए लाभदायक फल और सब्जियांबवासीर में क्या खाएं क्या ना खाएं 35 टिप्स-Diet In Pilesपथरी में क्या खाना चाहिए : किडनी स्टोन में भोजनथायराइड में क्या खाएं और क्या न खाएंडायबिटीज में क्या खाए और क्या नहीं-31 टिप्स-Diabetic Dietखून की कमी (एनीमिया) : कारण, लक्षण और उपायकरेले के जूस के 21 फायदे तथा जूस बनाने की विधिलौकी जूस के बेहतरीन 29 औषधीय गुण

हळदी जितकी अधिक भारतीय आहे तितकीच ती अधिक शुभ आणि औषधी गुणांनी परिपूर्ण आहे * सामाजिक कार्यकर्ते वनिता कासाणी पंजाब द्वारा - राम राम जी * 🌹🙏🙏🌹 हळद दुध प्रतिमा स्त्रोत, वनिता काही वर्षांपूर्वी लंडनमधील कॉफी शॉपमध्ये जेव्हा मी हळदीचे दूध प्रथम पाहिले तेव्हा मला विश्वास वाटला नाही. मेनूमध्ये त्यास 'गोल्डन मिल्क' असे नाव देण्यात आले. त्यात बदाम, थोडी दालचिनी आणि मिरपूड असलेल्या गोडपणासाठी त्यात नैसर्गिक अ‍ॅगवे सिरप जोडला गेला. मी त्यापूर्वी वाचणे थांबवले. कदाचित यामागील एक कारण म्हणजे मी त्याची महाग किंमत पाहिली होती. दुसरे म्हणजे, मला भारतातील हजारो आजींचे हसू आठवले. लहानपणी मी लहानपणीच्या आठवणींमध्ये हरवलो होतो जेव्हा माझी आई मला हळद हळद घालायला लावायची. तेथे नकार दिल्याबद्दल ओरड देखील झाली. जाहिरात त्या दुधात काही काजू नव्हते. साखर फक्त गोड करण्यासाठी उपलब्ध होती. शेवटच्या सिपमध्ये हळद तोंडात भरली. हिंदीमध्ये ज्याला हळदीचे दूध म्हणतात, माझी आई तामिळमध्ये पलील मंजल म्हणायची. वगळा आणि पुढे वाचा. आणि देखील वाचा सत्यजित चौरसिया सलमान, हृतिक, फरहानचे सिक्स पॅक Whoब्स कोण बनवते? ग्रेट इंडियन किचन दि ग्रेट इंडियन किचन: भारतीय पुरुषांच्या ढोंगीपणाचा पर्दाफाश करणारा एक महत्त्वाचा चित्रपट समुद्रकिनारी एक स्त्री आणि दोन तरुण स्त्रिया पतीचा मृत्यू, मुले वाढवणे आणि अयशस्वी प्रेमाच्या कहाण्या अरुणा तिर्की झारखंडमधील आदिवासींचे खाद्यपदार्थ बनविणा These्या या महिला समाप्त हळद प्रतिमा स्त्रोत, मसाले किंवा औषधी पदार्थ? घसा खवखवणे किंवा शरीरावर ताप असल्यास आई लगेच हळदीचे दूध देत असे. बरेच भारतीय यास द्रव रामबाण औषध मानतात. पाश्चात्य देशांनी गेल्या दशकातच हळदीचा शोध लावला आणि त्याला 'सुपरफूड' बनविण्यात उशीर केला नाही. त्यांनी चहा आणि कॉफीमध्ये हळदीची ताजी गठ्ठा मिसळली. तिचे सिरप बनविणे सुरू केले आणि ताबडतोब फायद्यासाठी हळदचे जाड पेय तयार केले. लंडननंतर मी सॅन फ्रान्सिस्को ते मेलबर्न पर्यंतच्या सर्व शहरांमध्ये कॅफे आणि कॉफी शॉपमध्ये हळदीचे पेय पाहिले आहे. हळदी हा बर्‍याच काळापासून भारतातील स्वयंपाकघरातील मुख्य घटक आहे. हे दोन प्रकारांमध्ये वापरले जाते - ढेंगांच्या स्वरूपात आणि आता हळद पावडरच्या रूपात देखील. माझ्या मासळदानीमध्ये हळद, मोहरी, मिरची आणि मिरची पावडर नेहमीच उपलब्ध असते. माझ्या आईलाही तसाच मसाला असायचा आणि त्याआधी तिच्या आईचीही तीच पद्धत होती. लंडनमध्ये हळद-दुधाची भरभराट पारंपारिक भारतीय स्वयंपाकघरात हळदीचा उपयोग अन्नामध्ये रंग घालण्यासाठी वापरला जातो, विशेषत: करी आणि मटनाचा रस्सा बनवण्यासाठी. हळदचे लोणचे हळदच्या ताजे आणि मऊ गठ्ठ्यांमधून देखील बनवले जाते, ज्यावर गरम तेलाची एक शिंपडली जाते. काही समाजात हळदीची पाने आच्छादित असतात व त्यामध्ये अन्न शिजवले जाते. 'द फ्लेवर ऑफ स्पाइस' च्या लेखिका मरियम रेशी म्हणतात, "मी गोव्यातील माझ्या घरात हळद उगवतो आणि इथे प्रसिद्ध पाटोलीओ मिष्टान्न बनवतो." पाटोलिओ बनवण्यासाठी, गूळ भोपळ्यामध्ये मिसळा आणि हळदच्या दोन पानांच्या दरम्यान ठेवा. यानंतर ते वाफेने शिजवले जाते आणि त्यात हळद वास घेते. हळद दुध प्रतिमा स्त्रोत, हळद किती महत्त्वाची आहे? पारंपारिक खाद्यपदार्थांप्रमाणे हळद हे पारंपारिक भारतीय पाककृतींमध्ये महत्वाचे आहे काय? हे जाणून घेण्यासाठी मी मुंबईतील प्रसिद्ध बॉम्बे कॅन्टीन रेस्टॉरंटचे कार्यकारी शेफ थॉमस झकारिया यांच्याशी बोललो. जकारिया आपल्या रेस्टॉरंटमध्ये फक्त ताजे आणि स्थानिक साहित्य वापरतो. तो हळदीला "कमी स्वाद असलेल्या पार्श्वभूमी सामग्री" म्हणतो. "मला वाटते की भारतातील बहुतेक लोक हे अन्नाची चव वाढवण्यासाठी नव्हे तर त्यांच्या सवयीमुळे वापरतात." जेव्हा जेव्हा झकारियाला संधी मिळते तेव्हा मीन मोइली तयार करण्यासाठी ताजी हळदीचा उपयोग ते स्टार मटेरियल म्हणून करतात. हळद आणि आले एकाच कुटुंबातील आहेत. भारतातील बर्‍याच राज्यांत याची लागवड केली जाते. फायनान्शियल एक्स्प्रेसच्या म्हणण्यानुसार जगभरातील एकूण हळद उत्पादनाच्या 75 टक्क्यांहून अधिक उत्पादन भारतात आहे. हळदीची जगातील सर्वात मोठी निर्यात करणारा भारत आहे आणि त्याचा वापरही येथे सर्वाधिक आहे. दक्षिण भारत - आंध्र प्रदेश आणि तामिळनाडू या गरम आणि दमट हवामान राज्यात मोठ्या प्रमाणात हळद उत्पादन होते. हे मे आणि ऑगस्ट दरम्यान लागवड होते आणि जानेवारीपर्यंत, पीक तयार होण्यास सुरवात होते. हळद पीक प्रतिमा स्त्रोत, ओमेन जानेवारीच्या मध्यामध्ये तामिळनाडूमध्ये नवीन पिकाचा उत्सव पोंगलमध्ये हळदीची मुळे आणि पाने वापरली जातात यात काही आश्चर्य नाही. उकळत्या दुधाच्या भांड्याच्या तोंडावर हळद आणि तिचे मूळ ताजे पाने बांधली आहेत. हे संपत्तीचे प्रतीक मानले जाते. भारतातील हळद स्वयंपाकाच्या मसाल्यापेक्षा जास्त आहे. भारतीय संस्कृतीत याला विशेष स्थान आहे. अनेक हिंदू समाजात लग्नासारख्या शुभ प्रसंगी हळद सुपीकपणा आणि समृद्धीचे प्रतीक म्हणून वापरली जाते. उदाहरणार्थ, लग्नाच्या आधी हळदीचा सोहळा आहे ज्यामध्ये कुटुंबातील वडील वधू आणि वर यांच्या चेह tur्यावर हळद लावतात. वधूच्या मंगळसूत्राचा धागा हळद द्रावणातही बुडविला जातो. आजही लग्नासह सर्व शुभ प्रसंगी परिधान केलेल्या कपड्यांच्या कोप .्यात हळद घालतात. भारतीय महिला त्यांच्या घरगुती फेस पॅकमध्ये एक चिमूटभर हळद घालतात. त्यांचा असा विश्वास आहे की हळद त्वचा स्वच्छ आणि चमकदार बनवते. हळद प्रतिमा स्त्रोत, प्रतिमा खरा भारतीय मसाला रेशी म्हणतात की भारतातील बहुतेक मसाल्यांमध्ये दक्षिण अमेरिकेतून आणलेली मिरची आणि पूर्वेच्या भूमध्य प्रदेशातून जिरे सारख्या शोधक प्रवासी आणि आक्रमणकर्ते आले. पण हळद पूर्णपणे भारतीय आहे. "हा आमचा मसाला आहे. ज्या पद्धतीने आपण मनापासून त्याचा अवलंब केला आहे आणि औषधी गुणधर्मांवरील आमचा विश्वास हा हजारो वर्षांचा जवळीक आहे." दहा वर्षांपूर्वी मी केरळमधील आयुर्वेदिक रूग्णालयात दीर्घकाळापर्यंत दुखण्यावर उपचार करण्यासाठी गेलो होतो. त्याने माझ्यावर हळद पेस्ट, काही मालिश आणि इतर औषधे दिली. मग एका ज्येष्ठ वैद्यने मला सांगितले की आयुर्वेदात हळदी चिवचिवाट मानली जाते. यामुळे वेदना कमी होते. अनेक भारतीय हळदीसह घरगुती उपचार करतात, जसे की घोट्यात एक मोच, हळद पेस्ट लावा, किंवा हिवाळा जर फरफट असेल तर हळद गळुळ्याच्या धुराचा वास घ्या. आयुर्वेदाच्या पारंपारिक औषध प्रणालीत शतकानुशतके त्याचा उपयोग होत आहे. बंगळुरुमधील सौक्य होलिस्टिक हेल्थ सेंटरचे संस्थापक डॉ. अयाज मथाई म्हणतात की आयुर्वेद मानवी शरीरात तीन प्रकारची ऊर्जा मानतो - वात, पित्ता आणि कपा. "हळद हे एकमेव औषध आहे जे तीनही प्रकारचे दोष बरे करते." यामुळे चिडचिड कमी होते. असे मानले जाते की हळदीमध्ये अँटी-ऑक्सिडेंट आणि अँटी-सेप्टिक गुणधर्म असतात. जरी अद्याप या वैद्यकीय गुणधर्मांचे वैज्ञानिक पुरावे सापडलेले नाहीत. हळद प्रतिमा स्त्रोत Vnita पंजाब हळदचे रासायनिक गुणधर्म हळदला त्याचा चमकदार पिवळा रंग आणि रासायनिक घटकातून त्याचे कथित औषधी गुणधर्म मिळतात. त्याचे नाव कर्क्युमिन आहे. एका सिद्धांतात असे म्हटले आहे की भारतीय स्वयंपाकात तेलात तळण्याचे परिणाम कर्क्यूमिनमुळे वाढतात. न्युट्रिशनिस्ट आणि 'द एव्हली डे वेजिटेरियन' च्या लेखिका नंदिता अय्यर म्हणतात, "कर्क्यूमिन एक द्रुत विरघळणारा कंपाऊंड आहे. चरबीसह कर्क्यूमिन जोडल्यामुळे शरीरात ते शोषण्याची शक्यता वाढते." जर हे योग्य असेल तर ते माझ्या कानात मध वितळण्यासारखे आहे. याचा अर्थ असा की मी कोणत्याही निर्दोषतेशिवाय हळदीचे दूध पिण्यास नकार देऊ शकतो आणि त्याऐवजी मसालेदार हळद खाऊ शकतो. जे लोक महागड्या कॅफेमध्ये हळदीचे लाटे पिण्यासाठी मोठ्या प्रमाणावर पैसे खर्च करतात त्यांच्यासाठी चेतावणी दिली पाहिजे की हे त्यांचे सर्व विलीनीकरण औषध नाही. हे चांगले आहे की त्यांनी ते पॅनेसियाऐवजी गरम पेय म्हणून प्यावे.

ہلدی جتنی زیادہ ہندوستانی ہوتی ہے ، اتنا ہی مضحکہ   خیز اور دواؤں کی خوبیوں سے بھری ہوتی ہے منجانب * سماجی کارکن وینیتا کاسنی پنجاب🌹 رام رام جی * 🌹🙏🙏🌹  ہلدی کا دودھ  تصویری ماخذ ، Vnita  کچھ سال پہلے جب میں نے لندن میں ایک کافی شاپ میں ہلدی کا دودھ پہلی بار دیکھا تو مجھے یقین نہیں آیا۔ مینو میں ، اس کا نام 'گولڈن دودھ' رکھا گیا تھا۔  اس میں بادام ، تھوڑی سی دارچینی اور کالی مرچ کے ساتھ مٹھاس لانے کے لئے قدرتی ایگیو شربت شامل کیا گیا تھا۔  میں نے اس سے پہلے پڑھنا چھوڑ دیا۔ شاید اس کی ایک وجہ یہ بھی تھی کہ میں نے اس کی مہنگی قیمت دیکھی تھی۔ دوم ، مجھے ہندوستان کی ہزاروں دادیوں کی مسکراہٹ یاد آئی۔  تھوڑی دیر کے لئے میں بچپن کی یادوں میں کھو گیا تھا جب میری والدہ گرم ہلدی کھلانے کے لئے مجھے پیار کرتی تھیں۔ انکار کرنے پر بھی ڈانٹ پڑ رہی تھی۔  اشتہار  اس دودھ میں گری دار میوے نہیں تھے۔ شوگر صرف اسے میٹھا بنانے کے لئے دستیاب تھا۔ آخری گھونٹ میں ، ہلدی منہ میں بھر گئی۔ ہندی میں ، جسے ہلدی کا دودھ کہا جاتا ہے ، میری والدہ تمل میں پیل ...

The more Indian the turmeric is, the more auspicious and full of medicinal qualities By * By social worker Vanita Kasani Punjab🌹 Ram Ram Ji * 🌹🙏🙏🌹 Turmeric milk Image Source, Vnita A few years ago when I first saw turmeric milk in a coffee shop in London, I could not believe it. In the menu, it was named 'Golden Milk'. Natural agave syrup was added to it for sweetness with almonds, a little cinnamon and black pepper. I stopped reading before that. Perhaps one of the reasons for this was that I had seen his expensive price. Secondly, I remembered the smile of thousands of grandmothers of India. For a while I was lost in childhood memories when my mother used to caress me for feeding hot turmeric. There was also scolding for refusing. advertising There were no nuts in that milk. Sugar was available just to make it sweet. In the last sip, turmeric was filled in the mouth. In Hindi, what is called turmeric milk, my mother used to call Palil Manjal in Tamil. Skip and read on. And also read Satyajit chaurasia Who makes Salman, Hrithik, Farhan's six pack abs? The Great Indian Kitchen The Great Indian Kitchen: an important film exposing the hypocrisy of Indian men A woman and two young women on the beach Death of husband, raising children and stories of failed love Aruna Tirkey These women, who make tribal food of Jharkhand a 'status symbol' Finish turmeric Image source, Spices or Potions? If there was a sore throat or body fever, the mother used to give turmeric milk immediately. Many Indians consider it a liquid panacea. Western countries discovered turmeric in the last decade itself and did not delay in making it a 'superfood'. They mixed fresh lumps of turmeric into tea and coffee. Started making her syrup and immediately prepared a thick drink of turmeric for the benefit. After London, I have seen turmeric drinks in cafes and coffee shops in all cities from San Francisco to Melbourne. Turmeric has been one of the major kitchen ingredients in India for a long time. It is used in two forms - in the form of lumps and now also in the form of turmeric powder. In my Masaldani, turmeric powder is always available along with mustard, cumin and chilli powder. My mother used to have similar spices and before that her mother had the same method. Turmeric-milk boom in London In traditional Indian kitchens, turmeric is used to add color to food, especially in making curries and broths. Turmeric pickles are also made from fresh and soft lumps of turmeric, on which a sprinkle of hot oil is applied. In some communities, turmeric leaves are enveloped and food is cooked in it. Mariam Reshi, author of 'The Flavor of Spice' says, "I grow turmeric in my house in Goa to make the famous patolio dessert here." To make the patolio, mix the jaggery in the coarse rice and place it between two leaves of turmeric. After this, it is cooked with steam and it smells of turmeric in it. Turmeric milk Image source, How important is turmeric? Is turmeric as important in traditional Indian cuisine as it is in traditional food? To know this, I spoke to Chef Thomas Zakaria, executive of Mumbai's famous The Bombay Canteen Restaurant. Zakaria uses only fresh and local ingredients in his restaurant. He calls turmeric "background material with low flavors". "I think most people in India use it because of their habit, not to increase the taste of food." Whenever Zakaria gets an opportunity, he uses fresh turmeric as a star material, such as Kerala curry to make Meen Moily. Turmeric and ginger belong to the same family. It is cultivated in many states of India. According to the Financial Express, more than 75 percent of the total turmeric production around the world is in India. India is the world's largest exporter of turmeric and its consumption is also highest here. High quality turmeric is produced on a large scale in the hot and humid weather states of South India - Andhra Pradesh and Tamil Nadu. It is planted between May and August and by January, the crop starts to be ready. Turmeric crop Image source, Omen It is no wonder that turmeric root and leaves are used in Pongal, a celebration of the new crop in Tamil Nadu in mid-January. Fresh leaves of turmeric and its root are tied on the mouth of the pot of boiling milk. It is considered a symbol of wealth. Turmeric in India is more than a kitchen spice. It has a special place in Indian culture. In many Hindu communities, turmeric is used as a symbol of fertility and prosperity on auspicious occasions like marriage. For example, there is a turmeric ceremony before the wedding in which the elders of the family apply turmeric to the bride and groom's face. The thread of the bride's mangalsutra is also immersed in turmeric solution. Even today, turmeric powder is applied in any corner of clothes worn on all auspicious occasions including marriage. Indian women add a pinch of turmeric to their domestic face packs. They believe that turmeric makes the skin clear and shiny. turmeric Image Source, IMAGES Real indian spice Reshi says that most of India's spices brought investigative travelers and invaders, such as chilli brought from South America and cumin from the eastern Mediterranean region. But turmeric is completely Indian. "It is our spice. The way we have adopted it wholeheartedly and our belief in its medicinal properties is made up of thousands of years of intimacy." Ten years ago, I went to an Ayurvedic hospital in Kerala to treat a chronic pain. He treated me with turmeric paste, some massages and other medicines. Then a senior Vaidya told me that turmeric is considered to be irritant in Ayurveda. It gives relief in pain. Many Indians do home remedies with turmeric, such as a sprain in the ankle, apply turmeric paste, or if the winter is fugitive, smell the smoke of turmeric lump. It has been used for centuries in the traditional system of medicine of Ayurveda. Dr. Ayaz Mathai, founder of Saukya Holistic Health Center in Bengaluru, says that Ayurveda considers three types of energy in the human body - Vata, Pitta and Kapha. "Turmeric is the only medicine that cures all three types of doshas." It reduces irritation. Also it is believed that turmeric has anti-oxidant and anti-septic properties. Although scientific evidence of these medical properties has not been found yet. turmeric Image Source Vnita punjab Chemical Properties of Turmeric Turmeric gets its bright yellow color and its alleged medicinal properties from a chemical component. Its name is Curcumin. One theory says that curcumin increases the effect of frying in oil in Indian cooking. Nutritionist and author of 'The Everyday Vegetarian' says Nandita Iyer, "Curcumin is a fast-soluble compound. The addition of curcumin with fat increases the chances of it being absorbed into the body." If this is correct, then it is like dissolving honey in my ears. This means that I can refuse to drink turmeric milk without any guilt and can eat spicy turmeric pickles instead. For those who spend large sums of money to drink turmeric latte in expensive cafes, they should be warned that this is not all their merge medicine. It is good that they drink it as a hot drink instead of a panacea.

हल्दी जितना भारतीय है, उतना ही शुभ और औषधीय गुणों से भरा 🌹 *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹 राम राम जी* 🌹🙏🙏🌹 हल्दी दूध इमेज स्रोत,Vnita कुछ साल पहले लंदन की एक कॉफी दुकान में जब मैंने पहली बार हल्दी दूध को देखा तो मुझे भरोसा नहीं हुआ. मेन्यू में इसे 'गोल्डन मिल्क' नाम दिया गया था. इसमें बादाम, थोड़ी दालचीनी और काली मिर्च के साथ मिठास के लिए प्राकृतिक एगेव सिरप डाली गई थी. उसके आगे मैंने पढ़ना बंद कर दिया. इसकी एक वजह शायद यह थी कि मैंने उसकी महंगी क़ीमत देख ली थी. दूसरी वजह, मुझे भारत की हज़ारों दादी मां की मुस्कान याद आ गई थी. थोड़ी देर के लिए मैं बचपन की यादों में खो गई जब मेरी मां मुझे गर्म हल्दी दूध पिलाने के लिए दुलारती थी. मना करने पर डांट भी पड़ती थी. विज्ञापन उस दूध में मेवे नहीं होते थे. मीठा बनाने के लिए बस चीनी मिली होती थी. आख़िरी घूंट में मुंह में हल्दी भर जाती थी. हिंदी में जिसे हल्दी दूध कहा जाता है उसे मेरी मां तमिल में पलील मंजल कहती थी. छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें और ये भी पढ़ें सत्यजीत चौरसिया सलमान, ऋतिक, फ़रहान के सिक्स पैक ऐब्स कौन बनवाता ह...

वनिता पंजाब

कीजिए केसर का यूज और चेहरे की खूबसूरती बढ़ाएं 🌹 *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹 राम राम जी* 🌹🙏🙏🌹 हमारी सेहत के लिए केसर बेहद गुणकारी होता है, अगर हम इसका यूज लेंगे तो कई रोगों से यह हमे बचा सकता है। केसर का यूज ब्यूटी प्रोड्क्टस और मेडिसन में भी किया जाता है। केसर के सेहतमंद लाभ के बारे में अधिकतर इंसान को पता नहीं होता है। चलिए आज आपको केसर के फायदों के बारे में अवगत कराते है। -अगर आप स्किन के लिए केसर का यूज लेंगे तो इससे स्किन चमकदार बनेगी।केसर में चंदन और दूध मिलाकर फेस पैक तैयार कीजिए। पैक को 20 मिनट के लगाने के बाद गुनगुने पानी से धो लीजिए। सप्ताह में 1-2 बार लगाने से चेहरे पर निखार आने लगेगा। -क्या आप बुखार, सर्दी, जुकाम से परेशान है तो आप केसर का यूज लीजिए। इससे बुखार गायब हो जाएगा। एक गिलास दूध में चुटकी भर केसर तथा शहद मिलाकर पीजिए। इसके अलावा आप केसर में पानी डालकर उसका पेस्ट भी बना लीजिए। इस पेस्ट को गर्दन, छाती पर लगाने से सर्दियों में होने वाले रोगों से पूरी तरह छुटकारा मिलता है। -क्या आप सिर दर्द की समस्या से परेशान है, तो आप केसर के साथ चंदन को मिलाकर माथे ...

وڌيڪ وزنائتو يا ٿلهو هجڻ سبب صحت جي مسئلن جي ح د تائين ٿي سگهي ٿو. اضافي جسم جو وزن کڻڻ سنگين صحت جي مسئلن جي خطري کي وڌائي سگھي ٿو ، دل جي بيماري ، هائپر ٽائونشن ، ۽ 2 ذیابيطس جو قسم شامل آهي. حادثي جي غذا هڪ پائيدار حل نه آهي ، جيڪي به سندن ترقي ڪندڙ سندن دعويٰ ڪندا آهن. ٻنهي جو وزن محفوظ طور تي وڃائڻ ۽ وقت سان انهي وزن کي گهٽائڻ کي برقرار رکڻ لاءِ ، ضروري آهي ته تدريجي ، دائمي ۽ فائدي واري زندگي گذارڻ جي تبديلين کي ترتيب ڏين. باقاعدي زندگي ۾ ، اسان ڀا ‏vegetablesين ۽ ميون کي کاڌي جو ذريعو طور استعمال ڪري رهيا آهيون. اھي اسان جي صحت برقرار رکڻ لاءِ وڏو ڪردار ادا ڪيا وڃن. اسان ڀا ‏vegetablesيون ڀا ‏rawيون ، رڌل ۽ جوس ۾ تيار ڪن ٿيون. ڀاetيون ۽ ميوا فطرت جي سٺن سان گڏ ايندا آهن ۽ ڪجهه بهترين کاڌا آهن جيڪي وزن وڌائڻ ۾ مدد ڏين ٿيون ۽ وزن ۾ پڻ گهٽتائي ڪري سگهن ٿيون. انهي آرٽيڪل ۾ اسان توهان کي وزن گھٽائڻ جي بهترين سبزي ۽ ميون جوس بابت ‏willاڻ ڏينداسين. (ونيتا کاسنيا پنجاب کان) # ڪڪڙ جو رس هتي موجود هڪ بهترين صحت جو مشروب ڪڪڙ جو رس آهي. اهو خاص سبزي وارو جوس فطرت جي نيڪي سان اچي ٿو. چئي سگهجي ٿو ته ان مان هڪ تمام بهترين ماڻهو آهي جيڪو بهتر صحت برقرار رکڻ ۾ مدد ڪندو آهي. ڪڻڪ جو رس جمع ڪيل چربی کي نن ‏segن حصن ۾ ٽوڙيندو آهي ۽ جسم کي سڻڀ کان صحت مند بڻائي ٿو. اهو پڻ صحتمند چمڙي کي فروغ ڏيندو آهي ۽ اهو ئي هڪ بنيادي سبب آهي ڇو ڪچيءَ جو رس وزن گھٽائڻ لاءِ بهترين سبزي جوس سمجهيو ويندو آهي. # گاجر جو رس گاجر جو رس هڪ ٻيو حيرت انگيز رس آهي جيڪو جسم جي وزن جي صحتمند ۽ فطري گھٽتائي کي وڌائيندو آهي. اھو بهتر ميٽابولزم کي وڌائيندو آھي ۽ اھڙي طرح جسم ۾ چرٻي کي گهٽائڻ ڇڏي ٿو ۽ اھو ئي سبب آھي جو اهو جوس وزن گهٽائڻ سان اثرائتي نموني گھٽائي ٿو. اھو چئي سگھجي ٿو وزن جي گھٽتائي لاءِ سڀني کان وڌيڪ صحتمند سبزي وارو رس. # گوبي جو رس جيڪڏهن توهان واقعي ڀا ‏vegetableين جو رس کائڻ سان وزن گھٽائڻ چاهيو ٿا ، ته ته ڪعبي ان لاءِ بهترين طريقو آهي. اهو خاص سبزي وارو رس ڪجھ اھم اھم معدنيات ۽ غذائي شيون سان گڏ اچن ٿيون جيڪي وزن گھٽائڻ سان گڏ بھتر صحت کي وڌائينديون آھن. هي بنيادي طور تي گهٽ چرٻي وارو ڀا ‏vegetableو آهي ۽ وڏي مقدار تي کائي سگهجي ٿو. جوس تمام جسماني سرگرمين لاءِ پڻ سٺو آهي. # اجوائن جو رس اجوائن جو رس وزن گھٽائڻ جي لاءِ بهترين وٽان رس آهي. ماڻهن کي گهربل نتيجا حاصل ڪرڻ لاءِ روزانو جي بنياد تي هي سبزي جو رس واپرائڻ گهرجي. اهو ڪيلوري جو استعمال گهٽائيندو آهي ۽ وزن گهٽائيندو آهي. اهو ناقابل برداشت فائبر سان گڏ اچي ٿو ۽ اهو هڪ انتهائي خاصيتون آهي جيڪا سينڊري جوس وزن گھٽائڻ جي لاءِ بهترين سبزي جي رس مان هڪ آهي. # ڪاريلا جوس ڪريلا جوس هڪ اهڙو مشروب آهي ، جيڪو ڪنهن چمڙي واري ميوي مان ٺهيل آهي ، جنهن کي ڪڻڪ دار خربو چئجي ٿو. پيٽلي جو جوس پيئڻ پيئڻ جگر کي باضابطه طور تي خارج ڪري ٿو ٽيلي تيزاب جيڪي ڳريل کي سڌارڻ لاءِ گهرجن ٿا. ان کان سواء ، ڪيوري جيلوري ۾ تمام گهٽ آهي. 100 گرام ڪڻڪ جي پوکي جي خدمت ڪرڻ 17 ڪئلينڊر تي مشتمل هوندي آهي. ڪريلا جوس ڪيترن ئي اهم غذائي جزن سان ڀريل آهي. مثال طور ، 1 ڪلو (93 گرام) ڪڻڪ ٻلڻ وارا 1/1 کپ (118 ايم ايل) فلٽر ڪيل پاڻي سان 16 ڪريلريز ، 3.4 گرام ڪاربس ، 2.6 گرام فائبر ، 0.9 گرام پروٽين ، 0.2 گرام ٿڌي. # آملا جو رس هندستاني گوليبري يا آمله غير متنازع طور تي غذائي طاقت جو هڪ پاور هائوس آهي. جنهن ۾ گهربل معدنيات ۽ وٽامن جيڪي شامل آهن ، نه رڳو اسان جي جسم جي ڀلائي لاءِ ضروري آهن ، پر ڪجهه عام ۽ وسيع بيماريءَ کي روڪڻ ۽ انتظام لاءِ پڻ ناگزير آهن. امل جوس جي شيشي سان توهان جو ڏينهن شروع ڪرڻ بهتر آهي. اهو س ‏throughoutو ڏينهن توهان جي هاضمي جي نظام کي ٽريڪ تي رکڻ ۾ مدد ڪري ٿو ۽ توهان جي ميٽابولزم کي تيز ڪري ٿو. هڪ تيز رفتار ميٽابولزم جلدي چربی کي جلائڻ ۾ مدد ڪري ٿو. وزن جي بهتر انتظام لاءِ ، عام طور تي آلا جوس کي خالي پيٽ تي پيئڻ جي صلاح ڏني وئي آهي. ماکي جو هڪ ‏dropڳ قدرتي ڳڻي جي صورت ۾ شامل ڪريو جيڪا توهان کي ڏينهن تائين فعال ۽ متحرڪ بڻائي ڇڏيندي. # بيٽروٽ جو رس هتي اسان وٽ هڪ حيرت انگيز ويگ جوس آهي جيڪو وزن گهٽائڻ کي وڌائيندو آهي. اهو خاص جوس تمام گهٽ کوليسٽرال سان گڏ اچي ٿو ۽ نهايت ٿورن سان ڀريل آهي. چقندر جو رس پنهنجي غذائي قدر لاءِ مشهور آهي ۽ وزن گهٽائڻ لاءِ بهترين ويگ جوس مان پڻ مشهور آهي. # انار جو رس انار صحتمند ترين ميوي مان هڪ آهي جنهن کي توهان کي ياد نه ڪرڻ گهرجي. اهو نن ‏redن ٻج سان گڏ هڪ روشن ڳاڙهي رنگ وارو ميوو آهي. هي ميوو فائبر ، پوٽوشيم ، وٽامن سي ۽ گهڻو ڪجهه سان ڀريل آهي. توهان جي چمڙي ۽ انجي قدرتي چمڪ واپس آڻڻ لاءِ انار جو جوس بهتر آهي پر اهو وزن گهٽائڻ ۾ پڻ مدد ڪري سگهي ٿو. ماهرن جو چوڻ آهي ته انار اينٽي آڪسيڊن ، پولي فينولز ۽ ملوڪ ٿيل لونولينڪ ايسڊ کان مالا مال آهن ـ سڀ ڪجهه توهان کي چرٻي کي ساڙڻ ۽ ميٽابولزم وڌائڻ ۾ مدد ڏي ٿو. انار جو رس پڻ توهان جي ڀاسڻ کي دٻائڻ ۾ مدد ڪري ٿو. مطالعو مطابق ، اهو ڪجهه ڪينسر جي خطرن جي روڪٿام ۾ پڻ مدد ڪري سگهي ٿو. # تربوز جو رس تربوز هڪ مٺاڻ ۽ تازه ڪاري جيلري وارو گرم ڪڻڪ پائڻ آهي. اهو هائيڊريشن مهيا ڪري ٿو ۽ پڻ ضروري غذائي شيون ، بشمول وٽامن ، معدنيات ، ۽ اينٽي آڪسيڊنٽس. هي رسالي وارو پھل هر 100 گرام ۾ صرف 30 کیلوري فراهم ڪندو آهي ۽ توهان کي هائڊريٽ ڪندو رهي ٿو. تربوز ۾ اينٽي آڪسيڊنٽس پڻ هوندا آهن. اهي شيون جسم کان آزاد ريڊيڪلز ، يا رد عمل رکندڙ نسلن وانگر ماليڪيولز کي ختم ڪرڻ ۾ مدد ڏين ٿيون. جسم فطري عملن دوران آزاد ريڊيڪلس پيدا ڪندو آهي ، جهڙوڪ ميٽابولزم. اهي تماڪ ڇڪڻ ، هوا ۾ موجود آلودگي ، دٻاءُ ۽ ٻيا ماحولياتي دٻاءُ ذريعي ترقي ڪري سگهن ٿيون. # نارنگي جو رس نارنگي جو جوس هڪ غذائي ڏند وارو مشروب آهي جيڪو ڪنهن به غذا لاءِ صحتمند اضافو ٿي سگهي ٿو. نارنگي جوس ۾ شامل ٿيل شگر شامل نه آهي ، انهي کي ملندڙ مٺاڻ ۽ مٺا واري کنڊ جو صحتمند متبادل آهي. آمريڪن لاءِ دستي هدايتون تسليم ڪري ٿي ته 100 سيڪڙو ميوي جو جوس ، پاڻي ۽ گهٽ / گهٽ ٿڌي کير سان گڏ ، صحتمند غذا کي برقرار رکڻ لاءِ پسند جي بنيادي مشروبات هجڻ گهرجي.

औषधी गुणधर्म आणि हळद आणि आलेची लागवड हळदीचे गुणधर्म आलेचे गुणधर्म हळद आणि आलेची लागवड हवामान माती आणि त्याची तयारी पेरणीची वेळ प्रगत वाण बियाणे दर व बीजोपचार खते आणि खते अंतर लावत आहे अर्ज करण्याची पद्धत कृषी कार्य आणि काळजी खोदाई आणि उत्पन्न सुका आले हळद आणि आले दाणे ठेवा हळदीचे गुणधर्म मुख्यतः मसाला म्हणून वापरला जातो. हे भूक वाढवते आणि शक्तिवर्धक बनवण्यासाठी वापरली जाते. रक्त स्वच्छ करते. अंतर्गत जखम बरे करते आणि चामड्याचे संक्रमण बरे होते. हे अँटीसेप्टिक म्हणून वापरले जाते. हे सौंदर्यप्रसाधने आणि 'कुम-कुम' मध्ये वापरले जाते. खोकल्यात हळद आगीत भाजून पाण्याने बारीक केल्यास फायदा होतो. दुधाबरोबर हळद घेतल्यास दुखापतीमुळे सूज कमी होते आणि पोटाचा किडा देखील मरतो. वेदना आणि सूज वर हळद आणि चुनाची पेस्ट लावल्यास आराम मिळतो. आलेचे गुणधर्म पचन वाढवते, श्लेष्मा काढून टाकते. रक्तवाहिन्या फुटण्यामुळे रक्ताचा प्रवाह बरा होतो. लठ्ठपणा दूर करते. पोटात गॅस काढून टाकण्यासाठी भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती आणि लिंबाचा रस वापरणे फायदेशीर आहे (50 ग्रॅम आल्याची पावडर आणि 30 ग्रॅम भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती आणि एक लिंबाचा रस). आवाज बंद झाल्यावर मध सह आलेचा रस खाल्ला जातो. बद्धकोष्ठता आणि खोकला देखील आल्याचे सेवन फायदेशीर आहे. हळद आणि आलेची लागवड हळद आणि आले दोन्ही मसालेदार भाज्या आहेत ज्यांची शेती आपल्या देशात मोठ्या प्रमाणात केली जाते. भाज्यांमध्ये हे मसाले वापरण्याव्यतिरिक्त हे औषध म्हणून देखील वापरले जात आहे. हळदीचा वापर भाजीपाला मध्ये होतो. आल्याची परदेशातही निर्यात केली जाते, ज्यामुळे परकीय चलन मिळते. चोटनागपूरमध्येही त्यांची लागवड करुन शेतक good्यांना चांगले उत्पन्न मिळू शकते. सुरुवातीला त्यांच्या लागवडीसाठी भरपूर भांडवल आवश्यक असते. बियाण्यांवर जास्त खर्च होतो. जर शेतक next्यांनी पुढील वर्षासाठी बियाणे ठेवले तर पहिल्या वर्षामध्येच भांडवल गुंतविण्याची गरज भासू शकेल. हवामान हे गरम आणि ओले दोन्ही हवामानात चांगले उत्पादन देते. खरीप हंगामात त्यांची लागवड केली जाते. वनस्पतींचा विकास करण्यासाठी हलका पाऊस चांगला आहे. पिकण्याच्या वेळी पाऊस पडणे आवश्यक नसते. जेथे पाऊस 1000-11400 मी. ते एक लिटर पर्यंत यशस्वीरित्या लागवड करता येते. या अर्थाने, पठाराचे क्षेत्र त्यांच्या लागवडीसाठी योग्य आहे. या साठी पुरेसा पाऊस आहे. हळद आणि आले लावण्यासाठी सुमारे 30 डिग्री तपमान आवश्यक आहे. हळद आणि आल्याची छाया छायादार ठिकाणीही करता येते. घराच्या उत्तरेकडील किंवा झाडाच्या उत्तरेकडील भागात कमी सूर्यप्रकाश असल्यास यशस्वीरित्या लागवड करता येते. माती आणि त्याची तयारी हळद आणि आले दोघेही जमिनीखालून बसतात, त्यामुळे हलकी माती असणे आवश्यक आहे. मातीतील पाण्याचा निचरा चांगला असावा. वालुकामय चिकणमाती ते चिकणमाती माती योग्य आहे. मातीत पुरेसे प्रमाणात बॅक्टेरिया असणे आवश्यक आहे. अल्कधर्मी मातीत चांगले उत्पादन मिळत नाही. शेतकरी बांधवानेही जमीन बदलतच राहावी आणि सलग तीन वर्षे त्याच शेतात शेती करु नये. बर्‍याच वर्षांपासून एकाच शेतात सतत शेती केल्यास रोग होण्याची शक्यता वाढते. शेत तयार करण्यासाठी एकदा नांगरणी करुन माती नांगरणी करुन आणि नांगरणीनंतर तीन ते चार वेळा नांगरणी केल्यास ती माती ठिसूळ होईल जी जमिनीपासून 10-15 सें.मी. उंच असावी. पेरणीची वेळ हळद आणि आले सुमारे आठ महिन्यांत तयार होते, म्हणून त्यांची पेरणी सुरू करणे आवश्यक आहे जेणेकरून त्यांना वाळण्यास पुरेसा वेळ मिळेल. जर सिंचन करावयाचे असेल तर त्यांना मेच्या मध्यावर पेरणी करा. जर तुम्हाला पावसाळी शेती करायची असेल तर पावसाळा पाऊस पडताच पेरणी करा. प्रगत वाण हळदीचे 'पटना' म्हणून ओळखले जाणारे वाण बिहार आणि बंगालमध्ये पाळले जाते. राजेंद्र कृषी विद्यापीठाने निवडलेली वाण 'मीनापूर' असून ती मध्ययुगीन आहे. राजेंद्र सोनिया जाती या प्रदेशात चांगले उत्पादन देते. कृष्णा, कस्तुरी, सुगंधम, रोमा, सुरोभा, सुदर्शन, रंगा आणि रशिम हळदीच्या इतर जाती आहेत. बियाणे दर व बीजोपचार बियाणे काळजीपूर्वक निवडा. एक निरोगी आणि रोग-मुक्त राइझोम निवडा. लांब नॉट ज्यात तीन ते चार निरोगी कळ्या असतात ते बियाण्यास योग्य असतात. मोठे राईझोम देखील कापून ते लागू करता येतात. कट करून राइझोमवर उपचार करणे आवश्यक आहे आणि कापताना हे लक्षात ठेवावे की प्रत्येक तुकड्यात किमान दोन-तीन कळ्या असणे आवश्यक आहे. एक हेक्टर क्षेत्रासाठी लागवडीसाठी सुमारे 20-25 क्विंटल राईझोम बियाणे आवश्यक आहे. कट करताना कमी rhizome आवश्यक आहे. रोप लावण्यापूर्वी rhizome चा उपचार करणे आवश्यक आहे, विशेषत: rhizome कापताना. यासाठी इंडोफिल एम -45 नावाच्या औषधाचे 0.2 टक्के द्रावण तयार केले जावे. एका लिटर पाण्यात 2 ग्रॅम औषध जोडल्यानंतर 0.2 टक्के द्रावण तयार होईल. आपण बॅबिस्टाइन नावाच्या औषधाचे 0.1 टक्के द्रावण देखील वापरू शकता. 0.1 टक्के द्रावण तयार करण्यासाठी, एक लिटर पाण्यात 1 ग्रॅम औषध घाला. स्लरी तयार करताना दोन्ही औषधांचे मिश्रण अधिक उपयुक्त असल्याचे आढळले. राईझोम बरा करण्यासाठी १ तासाला द्रावणात h तास ठेवा आणि त्यानंतर ते द्रावणातून काढून २ 24 तास एखाद्या अंधुक ठिकाणी ठेवा. त्यानंतरच त्यांनी ते पेरले. बियाणे राइझोमचा वापर 0.25% अगारोल किंवा सारीसन किंवा ब्लॅटाक्सच्या द्रावणामध्ये देखील केला जाऊ शकतो. खते आणि खते प्रति हेक्टर - कंपोस्ट: 20 क्विंटल युरिया: 200-225 किलो एसएसपी : 300 किलो एमओपी : 80-90 किलो कंपोस्ट शेतात तयार करताना मातीमध्ये चांगले मिसळा. शेताची अंतिम तयारी करताना पोटॅशचे निम्मे प्रमाण आणि एन फॉस्फरस द्यावे. पेरणीनंतर days० दिवसानंतर अर्धा युरिया आणि उर्वरित अर्धा पोटाश द्या. उरलेले अर्धे यूरिया पेरणीनंतर 90 ० दिवसांनी द्यावे व माती द्या. अंतर लावत आहे हळद: 45 सेमी x 15 सेमी आले: 40 सें.मी. x 10 सेमी अर्ज करण्याची पद्धत निचरा आणि गॅस मध्ये लागू. पावसाळ्यात उंच बेड बनवा. (अ) उन्हाळ्यात हळद आणि आले पेरण्यासाठी, एक ट्रेचा 15-25 सेंमी खोल आणि तितकाच 40-45 सेंमीच्या अंतरावर रुंद केला जातो. नाल्यात कंपोस्ट आणि रासायनिक खताचे मिश्रण देऊन ते मातीत चांगले मिसळतात. बियाणे नाल्यात 10 सेमी अंतरावर राईझोम पेरतात आणि माती झाकतात. माती झाकताना, काळजी घ्या की नाले जमिनीच्या खाली थोडेसे राहील जेणेकरुन उन्हाळ्यात पाणी देण्याची सोय होईल. पावसाच्या आगमनाने, पाणी गोठू नये म्हणून मातीचे ढीग केले आहेत. (ब) पावसाळ्यात हळद आणि आले लावण्यासाठी लहान बेड जमिनीपासून 8-10 सें.मी. उंच असावेत, जेणेकरून पावसात पाणी नसेल. 3.20 मीटर लांब आणि 1 मीटर रूंदीचे बेड बनवू शकतात. या बेडांमध्ये, पेरणी ओळीपासून 40 सेंमी आणि वनस्पतीपासून 10 सें.मी. अंतरावर केली जाते. पेरणीसाठी, आम्ही 10 सें.मी. खोलीचे निचरा बनवितो आणि त्या नाल्यात 10 सेमी अंतरावर राईझोम पेरतो. पेरणीच्या वेळी डोळा (अंकुर) राईझोममध्ये वरच्या बाजूस असावा. पेरणीनंतर, rhizome माती सह संरक्षित आहे. यानंतर आम्ही सिंचन देतो. पेरणीनंतर बियाणे 5- ते cm सें.मी. जाड आंबा, गुलाबवुड, तण किंवा शेण कुजलेले खत घाला जेणेकरून ओलावा टिकून राहील. यापेक्षा तणही कमी वाढेल. कृषी कार्य आणि काळजी शेतात तणमुक्त ठेवणे आवश्यक आहे. यासाठी आपण तीन ते चार वेळा केले पाहिजे. शेवटची वेळ चिखल मातीने करावी. सुरुवातीला दोन ते तीन सिंचन आवश्यक असू शकते. पावसाळ्यामध्ये सिंचन देण्याची गरज भासणार नाही, परंतु पाण्याची भीड नसल्याचे सुनिश्चित करा. जेव्हा फुले बाहेर येतात तेव्हा त्यांना बाहेर फेकून द्या. एखाद्या तज्ञाचा सल्ला घेऊन कीटक व आजारांपासून पीक वाचवा. खोदाई आणि उत्पन्न आल्याचे पीक सुमारे आठ ते नऊ महिन्यांत आणि हळद नऊ ते दहा महिन्यांत खोदण्यास योग्य ठरते जेव्हा झाडाची पाने पिवळ्या रंगाची आणि वाळलेली आणि वाकलेली दिसतात तेव्हा हे समजून घ्यावे की आता खोदण्याची योग्य वेळ आहे. यावेळी, फटके मारुन काळजीपूर्वक काढा. कच्च्या हळदचे उत्पादन प्रति हेक्टरी -4००--450० क्विंटल आणि कोरडी हळद १ 15 ते २ percent टक्के पर्यंत मिळते. आलेचे उत्पादन प्रति हेक्टरी 200 क्विंटल आहे. आले खोडून काढल्यानंतर ते दोन किंवा तीन वेळा पाण्याने धुवा आणि धूळ स्वच्छ करा. यानंतर, तीन ते चार दिवस हलक्या उन्हात वाळवा. हळद गाठ धुवून चांगले स्वच्छ करा. यानंतर, जेव्हा गठ्ठ्या पाण्यात 0.1% चुना मिसळल्या जातात, जेव्हा उकळत्या फेस येऊ लागतात आणि हळद सारखा वास येतो, तेव्हा rhizome घ्या आणि 10-15 दिवस सावलीत वाळवा. सुका आले आले कोरडे करण्यासाठी आल्याची गठ्ठ्या व्यवस्थित ट्रिम करुन पाण्यात टाका. जेव्हा त्याची त्वचा वितळते तेव्हा ती आठवड्यातून स्वच्छ आणि उन्हात वाळवावी. यानंतर, चुना पाणी आणि गंधक सह उपचार, नंतर उन्हात ठेवले. अशा प्रकारे, आल्याचा सुमारे 1/5 भाग कोरडा आल्याच्या स्वरूपात आढळतो. समाजसेवक वनिता कसानी पंजाब यांनी केले. हळद आणि आले दाणे ठेवा पुढील वर्षासाठी शेतकरी बांधव बियाणे rhizome ठेवणे आवश्यक आहे. यासाठी, खड्डा 1 मीटर खोल आणि 50 सेंमी रुंद छायादार ठिकाणी बनविला गेला आहे. बियाणे rhizome इंडोफिल एम 45 किंवा Babistein द्वारे उपचार केला जातो. खड्ड्याच्या पृष्ठभागावर, 20 सेमी वाळू विश्रांती घेते. याच्या वरच्या cm० सेंमीच्या थराला rhizome आहे. या वर, वाळूचा थर देऊन नंतर राईझोमचा थर द्या. अशाप्रकारे, र्‍झोझोम खड्ड्यात ठेवून, खड्ड्याला देठाने झाकून ठेवा. खड्डा आणि राइझोम दरम्यान, हवेसाठी 10 सेमी रिक्त जागा सोडा. यानंतर, आम्ही ते मातीच्या माथ्यावरुन लागू करतो. अशाप्रकारे, पुढच्या हंगामात बियाणे पेरणी केल्याने राईझोम सुरक्षित राहील.

دوائن جي خاصيت ۽ ٻرندڙ ۽ ٻير جو فصل برج جي ‏। ‎لڪيت انگن جي ملڪيت ترش ۽ جگر جي پوکائي آبهوا مٽي ۽ ان جي تياري بونا وقت ترقي يافته قسمون ٻج جي شرح ۽ ٻج جو علاج هدايتن ۽ ڀاڻين کي درخواست ڏيڻ وارو مفاصلو درخواست جو طريقو زرعي ڪم ۽ سنڀال ڳچيءَ ۽ پيداوار سڪل ادرڪ سرزمين ۽ انگور جا ٻج رکڻ برج جي ملڪيت بنيادي طور تي مصالحو طور استعمال ڪيو ويندو آهي. اهو اشتياق وڌائي ٿو ۽ ٽانڪ ٺاهڻ ۾ استعمال ٿيندو آهي. رت کي صاف ڪندو آھي. اندروني زخمين کي شفا ڏيندو ۽ چمڙي جي انفيڪشن کي دور ڪندو آهي. اهو ‏antiseptic ‎طور استعمال ڪيو ويندو آهي. اهو کاسمیٹکس ۽ ’Kum-Kum‘ ۾ استعمال ٿيندو آهي. اڙيءَ ۾ ، توريا کي باهه ۾ روغن ۽ پاڻي سان پيهڻ انهي کي فائديمند آهي. ٿڌي کاڌي سان کير لڳائڻ سان زخم جي ڪري سو ‏sw ‎گهٽجي وڃي ٿي ۽ پيٽ جو وار پڻ ٿي وڃي ٿو. درد ۽ ٻرندڙ جلد تي ٿڪندڙ ۽ ليمن جو پيسٽ لڳائڻ سان آرام ملندو آهي. انگن جي ملڪيت هضم وڌائي ٿو ، بلغم ڪ ‏remي ٿو. رت جي نالين جي روانگي سبب رت جي وهڪري جو علاج ڪندو آهي. موٹاپا کي ختم ڪري ٿو. معدي ۾ گئس ڪ ‏toڻ لاءِ اجوائن ۽ ليمن جو رس سان استعمال ڪريو فائدي مند آهي (50 گرام ادرڪ پاؤڊر ۽ 30 گرام اجوائن ۽ هڪ ليمن جو رس). مٽي سان گڏ ادرڪ جو رس کائڻ بعد ۾ آواز ٿيندو آهي. قبض ۽ کثرت ۾ ادرڪ جو استعمال پڻ فائديمند آهي. ترش ۽ جگر جي پوکائي داڻا ۽ ادرڪ ٻئي مصالحه دار ڀا ‏vegetablesيون آهن جن جي پوک اسان جي ملڪ ۾ وڏي پيماني تي عمل ڪئي پئي وڃي. انهن مصالحن ڀا ‏vegetablesين ۾ استعمال ڪرڻ کان علاوه ، ان کي دوا طور به استعمال ڪيو پيو وڃي. ‏Turmeric ‎بنيادي طور ڀا ‏vegetablesين ۾ استعمال ڪيو ويندو آھي. ادرڪ کي ٻاهرين ملڪ پڻ برآمد ڪيو ويندو آهي ، جيڪو زر مبادلو ڏي ٿو. هارين کي به چوٿان پور ۾ پوک ڪندي سٺي آمدني حاصل ٿي سگهي ٿي. ان جي ابتڙ ، انهن جي پوک لاءِ تمام گهڻو سرمايو گهربل هوندو آهي. هتي ٻج تي وڌيڪ خرچ ٿيندو آهي. جيڪڏهن هارين ايندڙ سال لاءِ ٻج رکندا آهن ، تڏهن پهرين سال ۾ ئي سرمائي جي سرمايه ڪاري ڪرڻي پوندي. آبهوا اهو گرم ۽ گرم موسم ۾ سٺي پيداوار ڏي ٿو. اهي خريف جي موسم ۾ پوکيا ويندا آهن. هلڪو مينهن سبزي جي واڌ لاءِ سٺو آهي. برسات جي پکجڻ وقت گهربل نه هوندو آهي. جتي برسات 1000–1400 ميٽر آهي. اهي هڪ ليٽر تائين ڪاميابي سان پوک ڪري سگھجن ٿيون. ان لحاظ کان ، پليجو علائقو انهن جي پوک لاءِ موزون آهي. اتي ڪافي مينهن آهي. ٿڌي ۽ انگور لڳائڻ سان تقريبن 30 درجا حرارت جي ضرورت هوندي آهي. ‏Turmeric ‎۽ ادرڪ پڻ پوکي دار جڳهن ۾ پوکي سگھجي ٿو. هن کي ڪاميابي سان پوکي سگهجي ٿي گهر جي اترئين حصي يا وڻ جي اتر واري حصي تي جتي سج جي گهٽتائي هوندي آهي. مٽي ۽ ان جي تياري ‏Turmeric ‎۽ ادرڪ ٻئي زمين جي هيٺان ويهندا آهن ، تنهنڪري ان لاءِ هلڪي مٽي هجڻ ضروري آهي. مٽيءَ ۾ پاڻي جي نيڪال سٺي هجڻ گهرجي. لوڻ مٽيءَ لاءِ سینڈي لوام مناسب آهي. اهو ضروري آهي ته مٽي ۾ بيڪرياريا جي ڪافي مقدار هجي. الڪائن مٽي ۾ سٺي پيداوار نه ملي آهي. زميندار ڀاءُ کي پڻ زمين تبديل ڪرڻ لھي رکڻ گهرجي ۽ لاڳيتو ٽن سالن تائين ساڳئي زمين کي پوکڻ نه گھرجي. ڪيترن ئي سالن کان ساڳيو ميدان کي مسلسل پوکڻ سان ، بيماريءَ وڌڻ جو امڪان وڌي ويندو آهي. زمين کي تيار ڪرڻ لاءِ ، هڪ ڀيرو جهاتي ۽ زمين کي ٽن کان چئن کان ڀيڻ سان گڏ ڪرڻ وقت اها مٽي کي ٿلهي ٺاهيندي آهي جيڪا زمين کان 10-15 سينٽي ميٽر مٿي هجڻ گهرجي. بونا وقت ‏Turmeric ‎۽ انگور تقريبا اٺ مهينن ۾ تيار هوندا آهن ، ان ڪري انهن کي پوکڻ شروع ڪرڻ ضروري آهي ته انهن کي وڌڻ لاءِ ڪافي وقت ملي. جيڪڏهن آبپاشي ڪرڻي آهي ، مئي جي وچ ڌاري انهن کي ساڙي. جيڪڏهن توهان برسات جي پوک به ڪرڻ چاهيو ٿا ، ته پوءِ جلدي مينهن مينهن و ‏themي. ترقي يافته قسمون برچ ۽ بنگال ۾ جورڙن جو ’پتن‘ نالي مشهور آهي. راجندر زرعي يونيورسٽي پاران چونڊيل اها قسم ’ميناپور‘ آهي جيڪا وچولي قسم جو آهي. راجندر سونيا وڪري هن علائقي ۾ سٺي پيداوار ڏي ٿي. ترڪيءَ جي ٻين قسمن ڪرشنا ، ڪستوري ، سوگندهام ، روما ، سوروبها ، سدرشن ، رنگا ۽ راشم آهن. ٻج جي شرح ۽ ٻج جو علاج احتياط سان ٻج چونڊيو. هڪ صحتمند ۽ بيماري کان پاڪ رزومم چونڊيو. ڊگھي ‏knلھيون جيڪي ٽي کان چار صحتمند کلون آھن ٻجن لاءِ موزون آھن. وڏين ‏rhizomes ‎کي به ڪٽي ۽ لاڳو ڪري سگهجي ٿو. ضروري آهي ته کٽائڻ ۽ کٽڻ مهل رزميءَ جو علاج ڪجي ، ياد رک ته هر ٽڪ جو گهٽ ۾ گهٽ ٻه ٽي گل هجڻ گهرجن. اٽڪل 20-25 کوئنٹل رزومي ٻج گهربل هوندو ته هڪ هيڪٽر ۾ پوک لاءِ. گھٽ ڪ ‏rhڻ جي ضرورت پوندي جڏھن ڪٽي ويندي. ٻج پوکڻ کان پھريائين علاج ڪرڻ ضروري آھي ، خاص طور تي جڏھن رزموم کي ڪٽايو وڃي. ان لاءِ دوا جو 0.2 سيڪڙو حل ڪيو وڃي جيڪو ‏Indofil M-45 سڏيو وڃي. پاڻي جي هڪ ليٽر ۾ 2 گرام دوا شامل ڪرڻ بعد 0.2 سيڪڙو محلول ٺهندو. توهان ‏Babistine ‎نالي دوا جو 0.1 سيڪڙو حل به استعمال ڪري سگهو ٿا. 0،1 سيڪڙو حل ڪرڻ لاءِ 1 گرام پاڻي ۾ 1 گرام دوا شامل ڪريو. ٻرندڙ ٺاهڻ دوران ٻنهي دوا جو ملاوٽ وڌيڪ مفيد ثابت ٿيو. رزوم کي صاف ڪرڻ لاءِ ، ڳلهه کي 1 ڪلاڪ جي حل ۾ رکڻ ۽ بعد ۾ حل مان هٽائڻ ۽ 24 ڪلاڪن تائين هن کي ڇانو واري جاءِ تي رکڻ. صرف ان کان پوء اھي ئي بويا. ٻج پوزو پڻ علاج ڪري سگهجي ٿو 0.25٪ ‏agarol ‎يا ‏sarisan or blatax ‎جو حل. هدايتن ۽ ڀاڻين کي في هيڪٽر - ڪمپاس: 20 ڪوانٽال يوريا: 200-225 ڪلو ايس ايس پي. : 300 ڪلو ‏MOP ‎: 80-90 ڪلو ڪمپاس جي فيلڊ تيار ڪرڻ دوران مٽي ۾ ملايو ميدان جي آخري تياري جي وقت ، پوٽوش جو اڌ حصو ۽ اين فاسفورس جي مڪمل مقدار ڏيو. 60 ڏينهن جي پوکجڻ کان پوءِ يوريا جي اڌ مقدار ۽ باقي پوٽاش جو اڌ حصو ڏيو. باقي اڌ يوريا ڏيو 90 ڏينهن بعد پوک ڪرڻ ۽ مٽي ڪرڻ بعد. درخواست ڏيڻ وارو مفاصلو ‏Turmeric: 45 سينٽي ميٽر ‏x ‎15 سينٽ انگن: 40 سينٽ ‏x ‎10 سينٽ درخواست جو طريقو خشڪ وجھي ۽ گرمي ۾ لاڳو ڪريو. مينهن جي موسم ۾ اوندا بسترا ٺاهيو. (الف) گرمين ۾ ٻرندڙ ۽ ادرڪ کي ساڙڻ لاءِ ، هڪ پيچرو 15- 20 سينٽي ميٽر ڊگهو ۽ برابر ‏acheوٽو ڪيو ويندو آهي 40-45 سينٽي ميٽر جي مفاصلي تي. انهن نلين ۾ ڪمپاس ۽ ڪيميائي ڀاڻ جو هڪ مرکب ڏيڻ سان زمين ۾ چ ‏mixي طرح ملن ٿا. ٻوٽا ناڻي ۾ 10 سينٽي ميٽر جي مفاصلي تي رزم بوج ڪندا آهن ۽ مٽي کي ‏coverڪيندا آهن. مٽي سان ‏coveringڪڻ دوران ، خيال رکجو ته ٻل زمين کان ٿورو هيٺ رهجي ته جيئن گرمين ۾ پاڻي ڏيڻ ۾ سهولت موجود هجي. مينهن جي آمد تي ، مٽي ‏isٽي ٿي وڃي ٿي جتان پاڻي ‏waterميل نه هجي. (ٻ) برسات جي موسم ۾ ٿڌي ۽ انگور پوکڻ لاءِ نن ‏bedsين ڪوٺين کي زمين کان 8-10 سينٽي بلند هجڻ گهرجي ، انهي ڪري مينهن ۾ پاڻي ناهي. 3.20 ميٽر ڊگهي ۽ 1 ميٽر جي ويڪر تي ڪري سگھي ٿو. انهن پلنگ ۾ ، پوک ڪئي وڃي ٿي قطار کان 40 سينٽي جي فاصلي تي ۽ ٻوٽي کان 10 سينٽي جي مفاصلي تي پوک. اسان ٻڪڻ لاءِ ، اسان 10 سينٽي جي کوهن تائين ٻڏي ٺاهي ۽ ان نال ۾ 10 سي ايم جي فاصلي تي رزومو پوکيو. بوئڻ واري وقت ، اکين ۾ (قلي) رزيمي مٿان هجڻ گهرجي. ٻج پوڻ کان پوءِ ، ‏rhizome ‎مٽي سان ‏isڪيل آهي. ان کان پوءِ ، اسان ايريگيشن ڏيندا آهيون. بوئڻ کان پوءِ ، ٻج کي 5-6 سينٽي جي ٿلهي مينهن ، گلابي ، ٿڌي يا گوبر سڻ وارن سان ڀريل ڇڏيو ته جيئن رطوبت برقرار رهي. انجاهه به گهٽ کان گهٽ وڌندو آهي. زرعي ڪم ۽ سنڀال ان لاءِ لازم آهي ته زمين کي روئيءَ کان آزاد رکجي. ان لاءِ ، اسان کي ٽي کان چار ڀيرا ڪرڻ گهرجي. آخري وقت ۾ مٽيءَ جي گلي ڪرڻ سان هئڻ گهرجي. شروعاتي طور تي ٻه کان ٽي آبپاشي گهربل هوندا. برسات جي موسم ۾ آبپاشي مهيا ڪرڻ جي ڪا ضرورت نه هوندي ، پر پڪ ٿي وٺو ته پاڻي هڪ پيڙهه ناهي. جڏهن گل نڪري اچن ، انهن کي اڇلائي ڇڏيو. هڪ ماهر سان صلاح وٺي فصل کي پيٽ ۽ بيمارين کان بچايو. ڳچيءَ ۽ پيداوار ادرڪ جو فصل اٽڪل اٺ کان نو مهينا ۽ ٻٻر ۾ 9 کان ڏهين مهينن ۾ ڳرڻ لائق ٿيندو آهي. جڏهن پوک جا پن زرد ۽ مائل ٿي ويندا آهن ۽ جهلي ويندا آهن ، تڏهن اهو سمجهڻ گهرجي ته هاڻ پچڻ جو صحيح وقت آهي. هن وقت ، احتياط سان ان کي ڪٽي ڇڏڻ سان. خام ‏Turmeric ‎جي پيداوار اٽڪل 400-450 ڪيوئنال في هيڪٽر آهي ۽ خشڪ ‏Turmeric ‎15 کان 25 سيڪڙو تائين حاصل ڪئي ويندي آهي. ادرڪ جي پيداوار 200 هاڪٽر في هيڪٽر آهي. ادرڪ کي مٿي آڻڻ کان پوء ، ان کي ٻه يا ٽي ڀيرا پاڻي سان ڌوئڻ ۽ مٽي کي صاف ڪرڻ. تنهن کان پوءِ هلڪي سج ۾ ٽن کان چئن ڏينهن تائين خشڪ ٿيڻ. ڪنگڻ واري ڳون کي ڌوئي ۽ انهن کي چ ‏cleanي طرح صاف ڪريو. ان کان پوءِ ، ‏theڪڙو 0.1 سيڪڙو ليمن سان پاڻي ۾ ملائي ، جڏهن ابلڻ شروع ٿي وڃي ۽ ٻرندڙ وانگر بوءِ اچڻ شروع ڪري ، ‏Rhizome ‎ڪ ‏takeي ۽ 10-15 ڏينهن تائين اهو ڇانو ۾ سڪي. سڪل ادرڪ خشڪ ادرڪ کي ٺاهڻ لاءِ ، ادرڪ جي ٽڪرن کي سٺي نموني ڪ ‏trimي ۽ پاڻي ۾ وجهو. جڏهن هن جو جلد پگھلجي ويندو آهي ، اهو هڪ هفتي لاءِ سج ۾ صاف ۽ خشڪ ٿيڻ گهرجي. ان کان پوءِ ليمي پاڻي ۽ سلفر سان علاج ڪيو ، پوءِ سج ۾ وجھي ڇڏيو. هن طريقي ۾ تقريباً ا 1/ڻ واري ٻج جو اڌ حصو ادرڪ جي صورت ۾ ملندو آهي. سماجي ڪارڪن پاران ونيتا ڪاسياني پنجاب. سرزمين ۽ انگور جا ٻج رکڻ هاريدار ڀاءُ کي ايندڙ سال لاءِ ٻج کي بهتر رکڻ لاءِ گهربل آهي. ان لاءِ ، ڳچي کي هڪ ڇتي واري جاءِ تي 1 ميٽر ڊگهو ۽ 50 سينٽي ميٽر ويڪرو ٺاهيو وڃي ٿو. ‏Seed rhizome ‎علاج ڪيو ويندو آهي ‏Indophil M. 45 يا ‏Babistein ‎سان. گڑھے جي مٿاڇري تي ، 20 سينٽي کنڊ سر آرام ڪري ٿو. ان جي مٿان 30 سينٽي پرت رکيل تال کي رکي ٿي. انهيءَ جي مٿان ، ريت جي هڪ پرت ڏيڻ ، پوءِ ‏ofرomeار جي پرت کي ڏي. هن طريقي سان ، ڳئون کي ‏theڪڻ ۾ رکڻ ، ڏاڪڻ کي اسٽيم سان گڏ ‏coverڪڻ. گڊ ۽ ريزوم جي وچ ۾ خالي هوا کي 10 سينٽي جي خالي جاءِ ڇڏيو وڃي. انهي کان پوء ، اسان ان کي مٽي جي چوٽي تان لاڳو ڪريون ٿا. هن طريقي سان ، ٻج کي ايندڙ سيزن ۾ پوکيو ويندو آهي ‏rhizome ‎کي محفوظ طور تي رکڻ.

Turષધીય ગુણધર્મો અને હળદર અને આદુની ખેતી હળદરના ગુણધર્મો આદુ ગુણધર્મો હળદર અને આદુની ખેતી વાતાવરણ માટી અને તેની તૈયારી વાવણી સમય અદ્યતન જાતો બીજ દર અને બીજ ઉપચાર ખાતર અને ખાતરો અંતર લાગુ કરવું અરજી કરવાની પદ્ધતિ કૃષિ કાર્ય અને સંભાળ ખોદવું અને ઉપજ સુકા આદુ હળદર અને આદુના દાણા રાખવા હળદરના ગુણધર્મો મુખ્યત્વે મસાલા તરીકે વપરાય છે. તે ભૂખ વધારે છે અને ટોનિક બનાવવામાં ઉપયોગમાં લેવાય છે. લોહી સાફ કરે છે. આંતરિક ઇજાઓ મટાડે છે અને ચામડાની ચેપ મટે છે. તેનો ઉપયોગ એન્ટિસેપ્ટિક તરીકે થાય છે. તે કોસ્મેટિક્સ અને 'કુમ-કમ' માં વપરાય છે. ખાંસીમાં હળદરને આગમાં શેકવાથી અને તેને પાણીથી પીસી લેવું ફાયદાકારક છે. દૂધ સાથે હળદર લેવાથી ઈજા થવાથી સોજો ઓછો થાય છે અને પેટનો કીડો પણ મરી જાય છે. પીડા અને સોજો પર હળદર અને ચૂનાની પેસ્ટ લગાવવાથી રાહત મળે છે. આદુ ગુણધર્મો પાચનમાં વધારો કરે છે, લાળ દૂર કરે છે. રક્ત વાહિનીઓનાં વિભાજનને કારણે લોહીનો પ્રવાહ મટાડે છે. જાડાપણું દૂર કરે છે. પેટમાં ગેસ દૂર કરવા માટે સેલરિ અને લીંબુના રસ સાથે ઉપયોગ કરવાથી ફાયદો થાય છે (આદુનો પાવડર 50 ગ્રામ અને સેલરિનો 30 ગ્રામ અને એક લીંબુનો રસ). અવાજ અટકે ત્યારે મધ સાથે આદુનો રસ પીવામાં આવે છે. આદુનું સેવન કબજિયાત અને ખાંસીમાં પણ ફાયદાકારક છે. હળદર અને આદુની ખેતી હળદર અને આદુ એ બંને મસાલાવાળી શાકભાજી છે જેની ખેતી આપણા દેશમાં મોટા પાયે થાય છે. શાકભાજીમાં આ મસાલાનો ઉપયોગ કરવા ઉપરાંત, તે દવા તરીકે પણ ઉપયોગમાં લેવાય છે. હળદરનો ઉપયોગ શાકભાજીમાં આવશ્યકપણે થાય છે. આદુ વિદેશમાં પણ નિકાસ થાય છે, જે વિદેશી વિનિમય આપે છે. ચોટાનાગપુરમાં પણ ખેતી કરીને ખેડુતો સારી આવક મેળવી શકે છે. શરૂઆતમાં, તેમની ખેતી માટે ઘણી મૂડી આવશ્યક છે. બીજ પર વધુ ખર્ચ થાય છે. જો ખેડુતો આગામી વર્ષ માટે બિયારણ રાખે છે, તો પછી પ્રથમ વર્ષમાં જ મૂડી રોકાણ કરવાની જરૂર રહેશે. વાતાવરણ તે ગરમ અને ભીના બંને હવામાનમાં સારી ઉપજ આપે છે. ખરીફ સીઝનમાં તેમની ખેતી થાય છે. વનસ્પતિ વિકાસ માટે હળવા વરસાદ સારો છે. પાક્યા સમયે વરસાદ જરૂરી નથી. જ્યાં વરસાદ 1000-11400 મી. તેઓ સફળતાપૂર્વક એક લિટર સુધી ખેતી કરી શકાય છે. આ અર્થમાં, પ્લેટau વિસ્તાર તેમના વાવેતર માટે યોગ્ય છે. આ માટે પૂરતો વરસાદ છે. હળદર અને આદુનો ઉપયોગ કરવા માટે આશરે 30 ડિગ્રી તાપમાનની જરૂર હોય છે. સંદિગ્ધ સ્થળોએ પણ હળદર અને આદુની ખેતી કરી શકાય છે. તે ઘરની ઉત્તર બાજુ અથવા ઝાડની ઉત્તરીય ભાગમાં સફળતાપૂર્વક વાવેતર કરી શકાય છે જ્યાં સૂર્યપ્રકાશ ઓછો છે. માટી અને તેની તૈયારી હળદર અને આદુ બંને જમીનની નીચે બેસે છે, તેથી પ્રકાશ માટી હોવી જરૂરી છે. જમીનમાં પાણીનો ગટર સારી હોવો જોઈએ. રેતાળ લોમથી લોમ માટી યોગ્ય છે. જમીનમાં પૂરતા પ્રમાણમાં બેક્ટેરિયા હોવું જરૂરી છે. ક્ષારયુક્ત જમીનમાં સારી ઉપજ જોવા મળતી નથી. ખેડૂત ભાઈએ પણ જમીન બદલતા રહેવું જોઈએ અને સતત ત્રણ વર્ષ સુધી તે જ ખેતી ન કરવી જોઈએ. ઘણા વર્ષોથી સતત તે જ ખેતી કરવાથી રોગ થવાની શક્યતા વધી જાય છે. ખેતર તૈયાર કરવા માટે, એક વખત હળ વડે જમીનને નાખીને અને ત્રણથી ચાર વખત હળ, તે જમીનને બરડ બનાવે છે જે જમીનથી 10-15 સે.મી. વાવણી સમય હળદર અને આદુ લગભગ આઠ મહિનામાં તૈયાર થાય છે, તેથી તેમને વાવણી શરૂ કરવી જરૂરી છે જેથી તેમને ઉગાડવા માટે પૂરતો સમય મળે. જો સિંચાઈ કરવી હોય તો, મધ્ય મેમાં વાવો. જો તમારે વરસાદી ખેતી કરવા માંગતા હોય તો ચોમાસામાં વરસાદ પડે કે તરત વાવણી કરો. અદ્યતન જાતો હળદરના 'પટણા' તરીકે ઓળખાતી વિવિધતા બિહાર અને બંગાળમાં પ્રચલિત છે. રાજેન્દ્ર કૃષિ યુનિવર્સિટી દ્વારા પસંદ કરેલ વિવિધતા 'મીનાપુર' છે જે મધ્યયુગીન વિવિધતા છે. રાજેન્દ્ર સોનિયા જાત આ ક્ષેત્રમાં સારી ઉપજ આપે છે. હળદરની અન્ય જાતોમાં કૃષ્ણા, કસ્તુરી, સુગંધમ, રોમા, સુરોભા, સુદર્શન, રંગ અને રશીમ છે. બીજ દર અને બીજ ઉપચાર કાળજીપૂર્વક બીજ પસંદ કરો. તંદુરસ્ત અને રોગ મુક્ત રાઇઝોમ પસંદ કરો. લાંબી ગાંઠ કે જેમાં ત્રણથી ચાર સ્વસ્થ કળીઓ હોય છે તે બીજ માટે યોગ્ય છે. મોટા રાઇઝોમ્સ પણ કાપીને લાગુ કરી શકાય છે. કાપવાથી રાઇઝોમની સારવાર કરવી જરૂરી છે અને કાપતી વખતે, ધ્યાનમાં રાખો કે દરેક ટુકડામાં ઓછામાં ઓછી બે-ત્રણ કળીઓ હોવા જ જોઈએ. એક હેક્ટરમાં વાવેતર માટે લગભગ 20-25 ક્વિન્ટલ રાઇઝોમ બિયારણની જરૂર પડશે. જ્યારે કાપવામાં આવે ત્યારે ઓછા રાઇઝોમની જરૂર પડશે. વાવેતર કરતા પહેલા રાઇઝોમની સારવાર કરવી જરૂરી છે, ખાસ કરીને જ્યારે રાઇઝોમ કાપવું. આ માટે, ઇન્ડોફિલ એમ -45 નામની દવાનું 0.2 ટકા સોલ્યુશન બનાવવું જોઈએ. એક લિટર પાણીમાં 2 ગ્રામ દવા ઉમેર્યા પછી, 0.2 ટકા સોલ્યુશન બનાવવામાં આવશે. તમે બેબીસ્ટાઇન નામની દવાના 0.1 ટકા સોલ્યુશનનો પણ ઉપયોગ કરી શકો છો. 0.1 ટકા સોલ્યુશન બનાવવા માટે, એક લિટર પાણીમાં 1 ગ્રામ દવા ઉમેરો. સ્લરી બનાવતી વખતે બંને દવાઓનું મિશ્રણ વધુ ઉપયોગી સાબિત થાય છે. રાઇઝોમનો ઇલાજ કરવા માટે, રાઇઝોમને 1 કલાક ઉકેલમાં રાખો અને તે પછી તેને દ્રાવણમાંથી દૂર કરો અને તેને 24 કલાક સંદિગ્ધ સ્થળે રાખો. તે પછી જ તેઓ તેને વાવે છે. બીજ રાઇઝોમનો ઉપયોગ 0.25% અગરોલ અથવા સરીસન અથવા બ્લિએટેક્સના ઉકેલમાં પણ કરી શકાય છે. ખાતર અને ખાતરો પ્રતિ હેક્ટર - ખાતર: 20 ક્વિન્ટલ યુરિયા: 200-225 કિલો એસ.એસ.પી. : 300 કિલો એમઓપી : 80-90 કિગ્રા ખાતરના ક્ષેત્રની તૈયારી કરતી વખતે જમીનમાં સારી રીતે ભળી દો. ખેતરની અંતિમ તૈયારી સમયે, પોટેશનો અડધો જથ્થો અને એન ફોસ્ફરસનો સંપૂર્ણ જથ્થો આપો. વાવણીના 60 દિવસ પછી અડધો જથ્થો યુરિયા અને બાકીનો અડધો પોટાશ આપો. બાકીનો અડધો યુરિયા વાવણી પછી 90 દિવસ પછી આપો અને તેને માટી નાખો. અંતર લાગુ કરવું હળદર: 45 સે.મી. x 15 સે.મી. આદુ: 40 સે.મી. x 10 સે.મી. અરજી કરવાની પદ્ધતિ ડ્રેઇન કરો અને ગરમીમાં લાગુ કરો. વરસાદની inતુમાં highંચા પલંગ બનાવો. (એ) ઉનાળામાં હળદર અને આદુની વાવણી માટે, એક ટ્રેશને 15-20 સે.મી. deepંડા અને સમાનરૂપે 40-45 સે.મી.ના અંતરે બનાવવામાં આવે છે. તેઓ ગટરમાં ખાતર અને રાસાયણિક ખાતરનું મિશ્રણ આપીને જમીનમાં સારી રીતે ભળી જાય છે. બીજ ડ્રેઇનમાં 10 સે.મી.ના અંતરે રાઇઝોમ વાવે છે અને જમીનને coverાંકી દે છે. માટીને coveringાંકતી વખતે, ધ્યાન રાખો કે ડ્રેઇન જમીનની થોડી નીચે રહે છે જેથી ઉનાળામાં પાણી આપવાની સુવિધા મળે. વરસાદના આગમન પર, માટીના pગલા થઈ જાય છે જેથી પાણી સ્થિર ન થાય. (બી) વરસાદની inતુમાં હળદર અને આદુ વાવવા માટે, નાના પથારી જમીનથી 8-10 સે.મી. .ંચા હોવા જોઈએ, જેથી વરસાદમાં પાણી ન આવે. 3.20 મીટર લાંબા અને 1 મીટર પહોળાઈવાળા પલંગ બનાવી શકે છે. આ પથારીમાં, વાવણી લાઇનથી 40 સે.મી. અને છોડથી 10 સે.મી.ના અંતરે કરવામાં આવે છે. વાવણી માટે, અમે 10 સે.મી.ની depthંડાઈનો ડ્રેઇન બનાવીએ છીએ અને તે ડ્રેઇનમાં 10 સે.મી.ના અંતરે રાઇઝોમ વાવીએ છીએ. વાવણી સમયે, આંખ (કળી) રાઇઝોમમાં ઉપરની તરફ હોવી જોઈએ. વાવણી કર્યા પછી, રાઇઝોમ માટીથી coveredંકાયેલ છે. આ પછી, અમે સિંચાઈ કરીએ છીએ. વાવણી પછી, બીજને 5-6 સે.મી. જાડા કેરી, રોઝવૂડ, નીંદ અથવા ગોબરની સડેલી ખાતરથી withાંકી દો જેથી ભેજ રહે. નીંદણ પણ આના કરતા ઓછા વધશે. કૃષિ કાર્ય અને સંભાળ ખેતરને નીંદણથી મુક્ત રાખવું જરૂરી છે. આ માટે, આપણે ત્રણથી ચાર વખત કરવું જોઈએ. છેલ્લો સમય કાદવવાળા કાદવ દ્વારા થવો જોઈએ. શરૂઆતમાં બેથી ત્રણ સિંચાઈની જરૂર પડી શકે છે. વરસાદની seasonતુમાં સિંચાઈ આપવાની જરૂર રહેશે નહીં, પરંતુ ખાતરી કરો કે પાણીમાં ભીડ નથી. જ્યારે ફૂલો બહાર આવે છે, ત્યારે તેને બહાર ફેંકી દો. નિષ્ણાતની સલાહ લઈને પાકને જીવાતો અને રોગોથી બચાવો. ખોદવું અને ઉપજ આદુનો પાક આશરે આઠથી નવ મહિનામાં અને હળદર નવથી દસ મહિનામાં ખોદવા યોગ્ય થાય છે જ્યારે છોડના પાંદડા પીળા અને વાઇલ્ડ અને વાંકા દેખાય છે, ત્યારે તે સમજવું જોઈએ કે હવે ખોદવાનો યોગ્ય સમય છે. આ સમયે, તેને ચાબુકથી કાળજીપૂર્વક દૂર કરો. કાચા હળદરનું ઉત્પાદન પ્રતિ હેક્ટર 400-450 ક્વિન્ટલ છે અને સૂકી હળદર 15 થી 25 ટકા સુધી મળે છે. આદુની ઉપજ આશરે 200 ક્વિન્ટલ પ્રતિ હેક્ટર છે. આદુને જડમૂળથી કા After્યા પછી તેને બે કે ત્રણ વાર પાણીથી ધોઈ લો અને ધૂળ સાફ કરો. આ પછી, ત્રણથી ચાર દિવસ સુધી આછા તડકામાં સૂકવો. હળદરની ગાંઠ ધોઈ લો અને તેને સારી રીતે સાફ કરો. તે પછી, જ્યારે ગઠ્ઠો પાણીમાં 0.1% ચૂનો સાથે ભળી જાય છે, જ્યારે ઉકળતા ફીણ થવા લાગે છે અને હળદરની ગંધ આવે છે, ત્યારે રાઇઝોમ કા takeો અને તેને 10-15 દિવસ માટે શેડમાં સૂકવી દો. સુકા આદુ સુકા આદુ બનાવવા માટે, આદુના ગઠ્ઠોને સારી રીતે કાmો અને તેને પાણીમાં નાખો. જ્યારે તેની ત્વચા ઓગળી જાય છે, ત્યારે તેને એક અઠવાડિયા સુધી તડકામાં સાફ કરીને સૂકવી જોઈએ. આ પછી, ચૂનાના પાણી અને સલ્ફરથી સારવાર કરો, પછી તેને તડકામાં મૂકો. આ રીતે, આદુનો લગભગ 1/5 ભાગ સૂકી આદુના સ્વરૂપમાં જોવા મળે છે. સામાજિક કાર્યકર વનિતા કસાણી પંજાબ દ્વારા. હળદર અને આદુના દાણા રાખવા ખેડૂત ભાઈએ બીજ વરાળને આગામી વર્ષ માટે રાખવાની રહેશે. આ માટે, ખાડો એક સંદિગ્ધ જગ્યાએ 1 મીટર deepંડા અને 50 સે.મી. બીજ રાઇઝોમની સારવાર ઇન્ડોફિલ એમ 45 અથવા બેબીસ્ટેઇનથી કરવામાં આવે છે. ખાડાની સપાટી પર, 20 સે.મી. રેતી આરામ કરે છે. આની ઉપરનો 30 સે.મી.નો સ્તર rhizome ધરાવે છે. આની ટોચ પર, રેતીનો એક સ્તર આપવો, પછી રાઇઝોમનો સ્તર આપો. આ રીતે, ખાડામાં રાઇઝોમ રાખીને, ખાડાને દાંડીથી coverાંકી દો. ખાડા અને રાઇઝોમની વચ્ચે હવા માટે 10 સે.મી. ખાલી જગ્યા છોડી દો. આ પછી, અમે તેને જમીનની ટોચ પરથી લાગુ કરીએ છીએ. આ રીતે, બીજ વાવણી પછીની સીઝનમાં રાઇઝોમને સુરક્ષિત રાખીને કરવામાં આવે છે.

Medicinal Properties and Cultivation of Turmeric and Ginger Properties of turmeric Ginger properties Turmeric and Ginger Cultivation Climate Soil and its preparation Sowing time Advanced varieties Seed Rate and Seed Treatment Manures and Fertilizers Applying distance Method of application Agricultural work and care Digging and yield Dry ginger Keeping turmeric and ginger seeds Properties of turmeric Mainly used as a spice. It increases appetite and is used in making tonic. Cleans the blood. Heals internal injuries and cures leather infections. It is used as an antiseptic. It is used in cosmetics and 'Kum-Kum'. In cough, roasting turmeric in a fire and grinding it with water is beneficial. Taking turmeric with milk reduces swelling due to injury and stomach worm also dies. Applying turmeric and lime paste on pain and swelling provides relief. Ginger properties Increases digestion, removes mucus. Cures blood flow due to dilation of blood vessels. Removes obesity. Use with celery and lemon juice to remove gas in the stomach is beneficial (50 grams of ginger powder and 30 grams of celery and one lemon juice). Ginger juice with honey is consumed when the voice stops. Consumption of ginger is also beneficial in constipation and cough. Turmeric and Ginger Cultivation Turmeric and ginger are both spiced vegetables whose cultivation is practiced on a large scale in our country. In addition to the use of these spices in vegetables, it is also being used as a medicine. Turmeric is essentially used in vegetables. Ginger is also exported abroad, which gives foreign exchange. Farmers can get good income by cultivating them in Chotanagpur too. Initially, a lot of capital is required for their cultivation. There is more expenditure on seeds. If farmers keep seeds for next year, then there will be a need to invest capital only in the first year. Climate It gives good yield in both hot and wet weather. They are cultivated during the Kharif season. Light rain is good for vegetative growth. Rainfall is not required at the time of ripening. Where the rainfall is 1000–1400 m. They can be cultivated successfully up to a liter. In this sense, the plateau area is suitable for their cultivation. There is enough rainfall for these. Applying turmeric and ginger requires about 30 degree temperature. Turmeric and ginger can also be cultivated in shady places. It can be cultivated successfully on the northern side of the house or in the northern part of the tree where there is less sunlight. Soil and its preparation Turmeric and ginger both sit below the ground, so it is necessary to have light soil. The drainage of water in the soil should be good. Sandy loam to loam soil is suitable. It is necessary to have sufficient amount of bacteria in the soil. Good yield is not found in alkaline soils. The farmer brother should also keep changing the land and should not cultivate the same field for three consecutive years. By cultivating the same field continuously for many years, the chances of getting disease increases. To prepare the field, once plowing the soil with plow and three to four times the plow, it makes the soil brittle which should be 10-15 cm high from the ground. Sowing time Turmeric and ginger are ready in about eight months, so it is necessary to start sowing them so that they get sufficient time to grow. If irrigation is to be done, sow them in mid-May. If you want to do rainfed farming, then sow them as soon as the monsoon rain falls. Advanced varieties The variety known as 'Patna' of turmeric is practiced in Bihar and Bengal. The variety selected by Rajendra Agricultural University is 'Meenapur' which is a medieval variety. Rajendra Sonia variety gives good yield in this region. Other varieties of turmeric are Krishna, Kasturi, Sugandham, Roma, Surobha, Sudarshana, Ranga and Rashim. Seed Rate and Seed Treatment Choose seeds carefully. Choose a healthy and disease-free rhizome. Long knots which have three to four healthy buds are suitable for seeds. Large rhizomes can also be cut and applied. It is necessary to treat the rhizome by cutting and while cutting, keep in mind that each piece must have at least two-three buds. About 20-25 quintal rhizome seeds will be required for cultivation in one hectare. Less rhizome will be required when cut. It is necessary to treat the rhizome before planting, especially when cutting the rhizome. For this, a 0.2 percent solution of the drug called Indofil M-45 should be made. After adding 2 grams of medicine in one liter of water, 0.2 percent solution will be formed. You can also use 0.1 percent solution of a medicine called Babistine. To make 0.1 percent solution, add 1 gram of medicine in one liter of water. Mixing of both drugs is found to be more useful when making slurry. To cure the rhizome, keep the rhizome in the solution for 1 hour and after that remove it from the solution and keep it in a shady place for 24 hours. Only after that sowing them. Seed rhizome can also be treated in a 0.25% solution of agarol or sarisan or bleatax. Manures and Fertilizers Per hectare - compost: 20 quintals Urea: 200-225 kg SSP. : 300 kg MOP : 80-90 kg Mix well in soil while preparing compost field. At the time of the final preparation of the field, give half the amount of potash and full quantity of N phosphorus. After 60 days of sowing give half quantity of urea and remaining half of potash. Give the remaining half of urea 90 days after sowing and soil it. Applying distance Turmeric: 45 cm x 15 cm Ginger: 40 cm x 10 cm Method of application Drain and apply in the heat. Make high beds in the rainy season. (A) For sowing turmeric and ginger in summer, a trache is made 15–20 cm deep and equally wide at a distance of 40–45 cm. They mix well in the soil by giving a mixture of compost and chemical fertilizer in the drain. The seeds sow the rhizome at a distance of 10 cm in the drain and cover the soil. While covering with soil, take care that the drain remains slightly below the ground so that there is convenience in giving water in summer. On the arrival of rain, we give soil so that the water does not freeze. (B) In order to plant turmeric and ginger in the rainy season, the small beds should be 8-10 cm high from the ground, so that there is no water in the rain. Can make beds of 3.20 meters long and 1 meter width. In these beds, sowing is kept at a distance of 40 cm from the line and 10 cm from the plant at a distance of the plant. For sowing, make a drain of 10 cm depth and sow the rhizome at a distance of 10 cm in that drain. At the time of sowing, the eye (bud) should be upwards in the rhizome. After sowing, the rhizome is covered with soil. After this, we give irrigation. After sowing, cover the seed with 5-6 cm thick mangoes, rosewood, weed or dung rotten manure so that the moisture remains. Weeds will also grow less than this. Agricultural work and care It is necessary to keep the field free from weeds. For this, we should do three to four times. The last time should be done by kneading mud. Initially two to three irrigation may be required. There will be no need to provide irrigation during the rainy season, but make sure that water is not a congestion. When the flowers come out, throw them out. Save the crop from pests and diseases by taking advice from an expert. Digging and yield The ginger crop becomes worth digging in about eight to nine months and turmeric in nine to ten months. When the leaves of the plant appear yellow and wilted and bent, then it should be understood that now is the right time to dig. At this time, carefully remove it by whipping it. The yield of raw turmeric is about 400-450 quintal per hectare and dry turmeric is obtained from 15 to 25 percent. The yield of ginger is around 200 quintals per hectare. After uprooting the ginger, wash it with water two or three times and clean the dust. After this, dry in light sun for three to four days. Wash the turmeric knots and clean them well. After this, when the lumps are mixed with 0.1% lime in the water, when boiling starts to froth and smells like turmeric, take out the rhizome and dry it in shade for 10-15 days. Dry ginger To make dry ginger, trim well of lumps of ginger and put it in water. When its skin gets melted, it should be cleaned and dried in the sun for a week. After this, treated with lime water and sulfur, then put in the sun. In this way, about 1/5 part of ginger is found in the form of dry ginger. By social worker Vanita Kasani Punjab. Keeping turmeric and ginger seeds The farmer brother is required to keep the seed rhizome for the next year. For this, the pit is made 1 meter deep and 50 cm wide in a shady place. Seed rhizome is treated with Indophil M. 45 or Babistein. On the surface of the pit, 20 cm of sand rests. The 30 cm layer on top of this holds the rhizome. On top of this, giving a layer of sand, then giving the layer of rhizome. In this way, keeping the rhizome in the pit, cover the pit with the stem. Between the pit and the rhizome leave 10 cm of empty space for air. After this, we apply it from the top of the soil. In this way, the seeds are sown in the next season keeping the rhizome safe.

हल्दी एवं अदरख के औषधीय गुण एवं खेतीहल्दी के गुणअदरख के गुणहल्दी एवं अदरख की खेतीजलवायुमिट्टी एवं उसकी तैयारीबुआई का समयउन्नत किस्मेंबीज दर एवं बीज उपचारखाद एवं उर्वरकलगाने की दूरीलगाने की विधिकृषि कार्य एवं देखभालखुदाई एवं उपजअदरख से सोंठ बनानाहल्दी एवं अदरख के बीज को रखनाहल्दी के गुणमुख्य रूप से मसाले के रूप में उपयोग होता है।यह भूख को बढ़ाता है तथा टॉनिक बनाने में इसका उपयोग होता है।खून को साफ़ करता है।आंतरिक चोट को ठीक करता है तथा चमड़े के इंफेक्शन को ठीक करता है। एंटीसेप्टिक के रूप में इसका प्रयोग होता है।प्रसाधन सामग्री तथा ‘कुम-कुम’ में इसका उपयोग होता है।खाँसी में आग में हल्दी को भुनकर तथा पीसकर पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।दूध के साथ हल्दी के सेवन करने से चोट के कारण सूजन कम होता है तथा पेट का कीड़ा भी मरता है।दर्द और सूजन पर हल्दी एवं चूना का लेप लगाने से आराम होता है।अदरख के गुणपाचन क्रिया को बढ़ाता है, बलगम को दूर करता है।खून की नली को फैलाने के कारण खून के बहाव को ठीक करता है।मोटापा को दूर करता है।पेट में गैस को दूर करने के अजवाइन तथा नींबू का रस के साथ उपयोग करने से लाभ होता है (50 ग्राम अदरख पाउडर एवं 30 ग्राम अजवाइन तथा एक नींबू का रस) ।आवाज बंद होने पर मधु के साथ अदरख के रस का सेवन किया जाता है।कब्ज एवं खाँसी में भी अदरख के सेवन से लाभ होता है।हल्दी एवं अदरख की खेतीहल्दी एवं अदरख दोनों मसाले वाली सब्जियाँ हैं जिसकी खेती हमारे देश में काफी बड़े पैमाने पर कीजाती है। इन मसालों को सब्जियों में प्रयोग के अतिरिक्त औषधि के रूप में भी प्रयोग होता आ रहा है। सब्जी में तो हल्दी का प्रयोग आवश्यक रूप से होता ही है। अदरख का निर्यात विदेशों में भी किया जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। छोटानागपुर में भी इनकी खेती कर किसान भाई अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इनकी खेती के लिए आरंभ में काफी पूँजी लगानी होती है। बीज पर अधिक खर्च होता है। अगर किसान भाई बीज अगले साल के लिये रख लें तो सिर्फ प्रथम वर्ष में ही पूँजी लगाने की जरूरत होगी।जलवायुये दोनों गर्म तथा तर मौसम में अच्छी उपज देती है। इनकी खेती खरीफ मौसम में की जाती है। वानस्पतिक वृद्धि के लिये हल्की वर्षा अच्छी होती है। पकने के समय वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है। जहाँ वर्षा 1000-1400 मि. लीटर तक होती है वहाँ इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इस लिहाज से पठारी क्षेत्र इनकी खेती के लिये उपयुक्त है। इनके लिये पर्याप्त वर्षा होती है। हल्दी एवं अदरख को लगाने के लिये लगभग 30 डिग्री तापक्रम की आवश्यकता होती है। हल्दी एवं अदरख की खेती छायादार जगह में भी की जा सकती है। घर के उत्तरी तरफ या पेड़ के उत्तरी भाग में जहाँ कम धूप रहती है, इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।मिट्टी एवं उसकी तैयारीहल्दी एवं अदरख दोनों जमीन के नीचे बैठते हैं, इसलिए हल्की मिट्टी का होना आवश्यक है। मिट्टी में जल का निकास अच्छा होना चाहिए। बलुआही दोमट से लेकर दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना आवश्यक है। क्षारीय मिट्टी में अच्छी उपज नहीं मिलती है। किसान भाई को जमीन भी बदलते रहना चाहिए तथा एक ही खेत में लगातार तीन साल तक खेती नहीं करनी चाहिये। एक ही खेत में लगातार कई साल तक खेती करने से रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।खेत की तैयारी करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन-चार बार देशी हल से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं जो जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिये।बुआई का समयहल्दी एवं अदरख लगभग आठ माह में तैयार होते है इसलिए इनकी बुआई अगात करना आवश्यक है ताकि इन्हें बढ़ने का पर्याप्त समय मिले। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मध्य मई में इनकी बुआई कर दें। वर्षा पर आधारित खेती करना है तो जैसे ही मौनसून की वर्षा हो इनकी बुआई कर दें।उन्नत किस्मेंहल्दी की ‘पटना’ नाम से जानी जाने वाली किस्म बिहार एवं बंगाल में प्रचलित है। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चयनित किस्म ‘मीनापुर’ है जो मध्यकालीन किस्म है। राजेन्द्र सोनिया नामक किस्म इस क्षेत्र में अच्छी उपज देती है। हल्दी की अन्य किस्में कृष्णा, कस्तुरी, सुगंधम, रोमा, सुरोभा, सुदर्शना, रंगा एवं रशिम है।बीज दर एवं बीज उपचारबीज का चुनाव सावधानीपूर्वक करें। स्वस्थ तथा रोग रहित प्रकंद का चुनाव करें। लम्बी गांठ जिनमें तीन-चार स्वस्थ कलियाँ हो बीज के लिये उपयुक्त होती है। बड़े प्रकंद को काटकर भी लगा सकते हैं। काटकर लगाने पर प्रकंद का उपचार करना आवश्यक है तथा काटते समय यह भी ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम दो-तीन कलियाँ अवश्य रहे। एक हेक्टेयर में खेती के लिये लगभग 20-25 क्विंटल प्रकंद बीज की आवश्यकता होगी। काटकर लगाने पर कम प्रकंद की आवश्यकता होगी।लगाने के पहले प्रकंद का उपचार करना आवश्यक है, खासकर प्रकंद को काटकर लगाने पर। इसके लिये इंडोफिल एम. – 45 नामक दवा का 0.2 प्रतिशत घोल बना लेना चाहिये। एक लीटर पानी में 2 ग्राम दवा मिलाने पर 0.2 प्रतिशत घोल बनेगा। बेभिस्टीन नामक दवा का 0.1 प्रतिशत घोल का प्रयोग भी कर सकते हैं। 0.1 प्रतिशत घोल बनाने के लिए एक लीटर पानी में 1 ग्राम दवा मिलायें। दोनों दवाओं के मिश्रण से घोल बनाने पर अधिक उपयोगी पाया जाता है। प्रकंद का उपचार करने के लिये घोल में प्रकंद को 1 घंटा डुबाकर रखते हैं तथा इसके बाद घोल से निकालकर 24 घंटा तक छायादार जगह में रखते हैं। उसके बाद ही इनकी बुआई करते हैं। बीज प्रकंद का उपचार एगलौल या सरैशन या ब्लाईटाक्स के 0.25 प्रतिशत घोल में भी कर सकते है।खाद एवं उर्वरकप्रति हेक्टेयर – कम्पोस्ट : 20 क्विंटलयूरिया : 200-225 किलोएस.एस.पी. : 300 किलोएम.ओ.पी. : 80-90 किलोकम्पोस्ट खेत तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। खेत की अंतिम तैयारी के समय पोटाश की आधी मात्रा एन फ़ॉस्फोरस की पूरी मात्रा दें। बुआई के 60 दिन बाद यूरिया की आधी मात्रा एवं पोटाश की शेष आधी मात्रा को दें। बुआई के 90 दिन बाद यूरिया की शेष आधी मात्रा को दें तथा मिट्टी चढ़ा दें।लगाने की दूरीहल्दी : 45 सें.मी. x 15 से.मी.अदरख : 40 सें.मी. x 10 सें.मी.लगाने की विधिगर्मी में नाली बनाकर लगायें। बरसात में ऊँची क्यारी बनाकर लगायें।(क) गर्मी में हल्दी एवं अदरख की बुआई के लिए 40-45 सेंटीमीटर की दूरी पर 15-20 सेंटीमीटर गहरा तथा उतना ही चौड़ा नाली (ट्रेच) बनाते हैं। नाली में कम्पोस्ट तथा रसायनिक खाद के मिश्रण को देकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। नाली में 10 सेंटीमीटर के फासले पर बीज प्रकंद की बुआई करते हैं तथा मिट्टी को ढंक देते हैं। मिट्टी से ढंकते समय ख्याल रखें की नाली जमीन से थोड़ा नीचे ही रहे ताकि गर्मी में पानी देने में सुविधा हो। बरसात आने पर मिट्टी चढ़ा देते हैं ताकि पानी न जमने पाये।(ख) बरसात में हल्दी एवं अदरख को लगाने के लिए खेत को भुरभुरा कर छोटी-छोटी क्यारियाँ जमीन से 8-10 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए, ताकि बरसात में पानी न लगे। 3.20 मीटर लम्बा तथा 1 मीटर चौड़ाई के क्यारियाँ बना सकते हैं। इन क्यारियों में 40 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइन तथा 10 सेंटी मीटर पौधा से पौधा की दूरी रखकर बुआई करते है। बुआई के लिए 10 सेंटीमीटर गहराई की नाली बनाते हैं तथा उस नाली में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रकंद को रखकर बुआई करते हैं। बुआई के समय प्रकंद में आँख (कली) ऊपर की तरफ होनी चाहिये। बुआई के बाद प्रकंद को मिट्टी से ढँक देते है। इसके बाद सिंचाई कर देते हैं। बुआई के बाद क्यारी को 5-6 सेंटीमीटर मोटा आम, शीशम, घास-फूस या गोबर की सड़ी खाद से ढँक देते हैं ताकि नमी बनी रहे। इससे खरपतवार भी कम उगेंगे।कृषि कार्य एवं देखभालखेत को खरपतवार से मुक्त रखना आवश्यक है। इसके लिए तीन-चार बार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। अंतिम बार गुड़ाई कर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये। आरंभ में दो तीन सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है। वर्षा काल में सिंचाई देने की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन जल एक जमाव न हो इसका ध्यान अवश्य रखें। जब फूल निकले तो उसे निकाल फेंकें। विशेषज्ञ से सलाह लेकर फसल को कीट एवं व्याधि से बचायें।खुदाई एवं उपजअदरख की फसल लगभग आठ से नौ माह में तथा हल्दी नौ से दस माह में खुदाई करने लायक हो जाती है जब पौधे की पत्तियाँ पीली तथा मुरझाई हुई तथा झुकी दिखाई दे तो यह समझना चाहिए कि अब खुदाई का उचित समय है। इस समय सावधानी से कोड़कर निकाल लें। कच्ची हल्दी की उपज लगभग 400-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है तथा इनसे सुखा हल्दी 15 से 25 प्रतिशत के हिसाब से प्राप्त होती है। अदरख की उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लगभग होती है। अदरख को उखाड़ने के बाद दो-तीन बार पानी से धोकर धूलकण को साफ़ कर लेते हैं। इसके बाद तीन-चार दिन तक हल्की धूप में सुखाते हैं।हल्दी के गाँठो को भी धोकर अच्छी तरह साफ़ कर लेते हैं। इसके बाद गांठों को पानी में जिसमें 0.1 प्रतिशत चूना मिला रहता है उबालते समय जब बर्त्तन में झाग आने लगे तथा हल्दी जैसे गंध आने लगे तो प्रकंद को बाहर निकालकर 10-15 दिन तक छाया में अच्छी तरह सुखाकर रख लेते हैं।अदरख से सोंठ बनानासोंठ बनाने के लिए अदरख की अच्छी-अच्छी गांठों को छाँटकर पानी में डाल दें। जब उसका छिलका गल जाये तो साफ़ करके एक सप्ताह के लिए धूप में सुखाना चाहिये। इसके बाद चूने के पानी और गंधक से उपचारित करके फिर धूप में डालना चाहिये। इस प्रकार अदरख का लगभग 1/5 हिस्सा सोंठ के रूप में मिलता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब.हल्दी एवं अदरख के बीज को रखनाकिसान भाई को अगले साल के लिए बीज प्रकंद को रखना आवश्यक है। इसके लिये छायादार जगह में 1 मीटर गहरा एवं 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्डा बनाते हैं। बीज प्रकंद को इंडोफिल एम. 45 या बेभिस्टीन से उपचार कर लेते हैं। गड्डे के सतह पर 20 सेंटीमीटर बालू का सतह रखते हैं। इसके ऊपर 30 सेंटीमीटर लेयर प्रकंद को रखते हैं। इसके ऊपर बालू का लेयर देकर फिर प्रकंद का लेयर देते हैं। इस तरह गड्डे में प्रकंद को रखकर गड्डा को पटरा से ढक देते हैं। पटरा एवं प्रकंद के बीच 10 सेंटीमीटर खाली जगह हवा के लिये छोड़ देते हैं। इसके बाद ऊपर से मिट्टी से लेप कर देते हैं। इस प्रकार बीज प्रकंद को सुरक्षित रखकर अगले मौसम में बुआई करते हैं।

अगर पेट में हल्का-सा भी दर्द होता है तो पूरा दिन बेकार हो जाता है। By वनिता कासनियां पंजाब. पेट में गैस बनने की समस्या हो तो इसे सुधारना बहुत जरूरी होता है। आमतौर पर लोगों को पेट की गैस की समस्या रहती है। आइए आपको बताते हैं हमेशा के लिए गैस से छुटकारा पाने के घरेलू नुस्खें। पुदीनापुदीना बीमारी में किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जा सकता है। यदि आपको पेट में गैस, जी मचलना या उलटी की समस्या हो तो पुदीने का जूस, इसकी चटनी, काढ़ा या ग्रीन टी के रूप में सेवन किया जा सकता है।सौंफसौंफ के सेवन से गैस्ट्रिक व एसिड रिफ्लक्स जैसी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है। खाना खाने के बाद सौंफ का सेवन करना चाहिए।दिल की बीमारी से बचाता है अमरूद, जानें क्या है इसे खाने का सही समयअदरकअदरक के रस में गर्म पानी और शक्कर मिलाएं और इसका सेवन करें। अदरक वाली चाय भी पी सकते हैं।नींबूआकार में छोटा सा नींबू अलग-अलग गुणों से भरपूर है। यदि किसी को पेट में जलन या गैस महसूस हो रही हो तो नींबू पानी और नींबू की चाय तुरंत राहत देती है। लस्सीचुटकी भर भुना जीरा, काला नमक और पुदीना छाछ में मिलाकर खाना खाने के बाद पीने से गैस की समस्या खत्म हो जाती है।अजवाइनअजवाइन पेट के अनेकों रोगों जैसे गैस, पेट के कीड़े अच्छा उपाय है। यदि आपको पेट में दर्द हो रहा है तो तुरंत गर्म पानी के साथ एक छोटी चम्मच अजवाइन की लें। आपकोगैस में तुरंत राहत मिल जाएगी।काली मिर्चकाली मिर्च का सेवन बहुत ही लाभकारी होता है। इसके सेवन से शरीर में लार और गैस्ट्रिक जूस की मात्रा बढ़ती है। जिससे पाचन आसानी से होता है और गैस्ट्रिक दिक्कतें दूर होती हैं।

If there is even a slight pain in the stomach, then the whole day is wasted. By Vanita Kasani Punjab. If there is a problem of gas in the stomach, it is very important to repair it. People usually have stomach gas problems. Let us tell you the home remedies to get rid of gas forever.  Peppermint  Peppermint can be used in some form in the disease. If you have stomach gas, nausea or vomiting, mint juice, its sauce, decoction or green tea can be consumed.  Anise  Consuming fennel helps to overcome problems such as gastric and acid reflux. Fennel should be consumed after eating food. Guava prevents heart disease, know what is the right time to eat it  ginger  Add hot water and sugar to ginger juice and consume it. You can also drink ginger tea.  Lemon  A small lemon in size is rich in different qualities. If someone is feeling burning or gas in the stomach, lemonade and lemon tea give instant relief.  Lassi  Mixing a pinch of roaste...

ਹਲਦੀਹਲਦੀ (ਹਲਦੀ) ਇਕ ਭਾਰਤੀ ਖਾਣ ਵਾਲੀ ਸਬਜ਼ੀ ਹੈ.ਇਕ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹੋਡਾ .ਨਲੋਡਆਪਣਾ ਖਿਆਲ ਰੱਖਣਾਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋ By Vnita Kasnia.ਹਲਦੀ ਭਾਰਤੀ ਪੌਦਾ ਹੈ . ਇਹ ਅਦਰਕ ਜਾਤੀਆਂ ਦਾ 5-8 ਫੁੱਟ ਉੱਗਣ ਵਾਲਾ ਪੌਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਜੜ੍ਹ ਦੇ ਨੋਡਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਚਮਤਕਾਰੀ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਚਿਕਿਤਸਕ ਟੈਕਸਟ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹਰਿਦ੍ਰਾ, ਕੁਰਕੁਮਾ ਲੌਂਗਾ, ਵਰਵਰਨੀ, ਗੌਰੀ, ਕਰੀਮਘਨਾ ਯੋਸ਼ਿਤਾਪ੍ਰਿਯਾ, ਹੱਟਵਿਲਾਸਾਨੀ, ਹਰਦਾਲ, ਕੁਮਕੁਮ, ਤਿਰਮਰਿਕ ਹੈ। ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਦਵਾਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਰਸੋਈ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੁੱਭ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰਸ ਦੀ ਆਪਣੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ.ਲਾਤੀਨੀ ਨਾਮ: ਕਰਕੁਮਾ ਲੋਂਗਾਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਮ: ਹਲਦੀਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਨਾਮ: ਜਿਨਜੀਆਂਗਹਲਦੀ ਦਾ ਪੌਦਾ: ਇਸਦੇ ਪੱਤੇ ਵੱਡੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ.ਲੰਬੇ ਆਯੁਰਵੈਦਿਕ ਦਵਾਈ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਵੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ Haridra [1] , ਅਮਰੀਕੀ ਖੁਰਾਕ ਤੇ ਡਰੱਗ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਅਨੁਸਾਰ [2] [3] , ਹਲਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜ ਇਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਹੈ ਉੱਚ-ਗੁਣਵੱਤਾ ਕਲੀਨਿਕਲ ਸਬੂਤ ਸਮੱਗਰੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ , ਕਰਕੁਮਿਨ .ਜਾਣ ਪਛਾਣ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਵਿਚ 5.8% ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਤੇਲ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ 6.3%, ਤਰਲ 5.1%, ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ 3.5%, ਅਤੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ 68.4% ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਰੰਗ ਕਰਕੁਮਿਨ, ਵਿਟਾਮਿਨ ਏ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਗਠੀਏ , ਖੂਨ ਦੇ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਕੈਂਸਰ , ਜਰਾਸੀਮੀ ਲਾਗ, ਹਾਈ ਬਲੱਡ ਪ੍ਰੈਸ਼ਰ ਅਤੇ ਐਲਡੀਐਲ ਕੋਲੈਸਟ੍ਰੋਲ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਸੈੱਲਾਂ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਵਿਚ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਕਫਾ-ਵਟਾ ਸੈਡੇਟਿਵ, ਪਿਟਾ ਲਚਕਦਾਰ ਅਤੇ ਪਥਰ ਸੈਡੇਟਿਵ ਹੈ. ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਖੂਨ ਦੀ ਸਟੈਸੀਜ਼, ਪਿਸ਼ਾਬ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ, ਗਰਭ, ਕੜਵੱਲ, ਚਮੜੀ ਰੋਗ, ਵੈਟਾ-ਪਿਤ-ਬਲਗਮ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਫਾਇਦੇਮੰਦ ਹੈ. ਇਹ ਜਿਗਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਵਿੱਚ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਪਲਸ ਕੋਲਿਕ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ, ਐਨਓਰੇਕਸਿਆ (ਭੁੱਖ ਦੀ ਕਮੀ), ਕਬਜ਼, ਖੰਡ, ਜਲ ਦੇ ਸਰੀਰ ਅਤੇ ਕੀੜੇ ਦੇ ਰੋਗ.ਇਹ ਲਾਭਕਾਰੀ ਵੀ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੀ ਇਕ ਕਿਸਮ ਹੈ. ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਪੀਲੀ ਹਲਦੀ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ.ਹਲਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹਹਲਦੀ ਪਾ powderਡਰਵਰਤੋਂ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਰਸੋਈ ਦੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਦੇ ਨਾਲ , ਕਈ ਚਿਕਿਤਸਕ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ . ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਹਲਦੀ ਗੱਮ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਮਦਦਗਾਰ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਖੰਘ ਅਤੇ ਖਾਂਸੀ ਸਮੇਤ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਵੀ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਰੂਪ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ. ਇਸ ਸਮੇਂ, ਹਲਦੀ ਉਬਾਲਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਰੀਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ.By Vnita Punjabਵੱਖ ਵੱਖ ਮਨੁੱਖੀ ਰੋਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨਿਦਾਨ ਦੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਲਦੀ ਅਤੇ ਕਰਕੁਮਿਨ (ਏ), ਟੈਸਟਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ; ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਜਾਂ ਬੇਲੋੜੀ ਘਾਟ, ਕਿਸੇ ਨੇ ਵੀ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ. [2] []] []] ਮਨੁੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਕਲੀਨਿਕਲ ਅਜ਼ਮਾਇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਕੋਈ ਸਬੂਤ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਕਿ ਕਰਕੁਮਿਨ (2020 ਤੱਕ) ਸੋਜਸ਼ ਨੂੰ ਘਟਾਉਂਦਾ ਹੈ . [2] [3]

Turmeric  Turmeric (turmeric) is an Indian edible vegetable.  Read in another language  Download  Take care of yourself  Edit By Vnita Kasnia.  Turmeric is an Indian plant. It is a 5-8 foot tall plant of the genus Ginger in which turmeric is found in the root nodes. Turmeric has been considered a miracle ingredient in Ayurveda since ancient times. Apart from turmeric in medical texts, its names are Haridra, Kurkuma Longa, Varvarni, Gauri, Karimghana Yoshitapriya, Hatvilasani, Hardal, Kumkum, Tirmarik. Turmeric is said to be an important medicine in Ayurveda. It holds an important place in Indian cuisine and is considered religiously auspicious. Turmeric juice has its own special significance in marriage.  Latin Name: Karkuma Longa  English name: Turmeric  Family Name: Xinjiang  Turmeric plant: Its leaves are large.  Turmeric has long been used in Ayurvedic medicine where it is used, but also known as Haridra [1], according to ...

ਹਲਦੀਹਲਦੀ (ਹਲਦੀ) ਇਕ ਭਾਰਤੀ ਖਾਣ ਵਾਲੀ ਸਬਜ਼ੀ ਹੈ.ਇਕ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹੋਡਾ .ਨਲੋਡਆਪਣਾ ਖਿਆਲ ਰੱਖਣਾਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋ By Vnita Kasnia.ਹਲਦੀ ਭਾਰਤੀ ਪੌਦਾ ਹੈ . ਇਹ ਅਦਰਕ ਜਾਤੀਆਂ ਦਾ 5-8 ਫੁੱਟ ਉੱਗਣ ਵਾਲਾ ਪੌਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਜੜ੍ਹ ਦੇ ਨੋਡਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਚਮਤਕਾਰੀ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਚਿਕਿਤਸਕ ਟੈਕਸਟ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹਰਿਦ੍ਰਾ, ਕੁਰਕੁਮਾ ਲੌਂਗਾ, ਵਰਵਰਨੀ, ਗੌਰੀ, ਕਰੀਮਘਨਾ ਯੋਸ਼ਿਤਾਪ੍ਰਿਯਾ, ਹੱਟਵਿਲਾਸਾਨੀ, ਹਰਦਾਲ, ਕੁਮਕੁਮ, ਤਿਰਮਰਿਕ ਹੈ। ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਦਵਾਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਰਸੋਈ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੁੱਭ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰਸ ਦੀ ਆਪਣੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ.ਲਾਤੀਨੀ ਨਾਮ: ਕਰਕੁਮਾ ਲੋਂਗਾਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਮ: ਹਲਦੀਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਨਾਮ: ਜਿਨਜੀਆਂਗਹਲਦੀ ਦਾ ਪੌਦਾ: ਇਸਦੇ ਪੱਤੇ ਵੱਡੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ.ਲੰਬੇ ਆਯੁਰਵੈਦਿਕ ਦਵਾਈ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਵੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ Haridra [1] , ਅਮਰੀਕੀ ਖੁਰਾਕ ਤੇ ਡਰੱਗ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਅਨੁਸਾਰ [2] [3] , ਹਲਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜ ਇਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਹੈ ਉੱਚ-ਗੁਣਵੱਤਾ ਕਲੀਨਿਕਲ ਸਬੂਤ ਸਮੱਗਰੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ , ਕਰਕੁਮਿਨ .ਜਾਣ ਪਛਾਣ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਵਿਚ 5.8% ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਤੇਲ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ 6.3%, ਤਰਲ 5.1%, ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ 3.5%, ਅਤੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ 68.4% ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਰੰਗ ਕਰਕੁਮਿਨ, ਵਿਟਾਮਿਨ ਏ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਗਠੀਏ , ਖੂਨ ਦੇ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਕੈਂਸਰ , ਜਰਾਸੀਮੀ ਲਾਗ, ਹਾਈ ਬਲੱਡ ਪ੍ਰੈਸ਼ਰ ਅਤੇ ਐਲਡੀਐਲ ਕੋਲੈਸਟ੍ਰੋਲ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਸੈੱਲਾਂ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਵਿਚ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਕਫਾ-ਵਟਾ ਸੈਡੇਟਿਵ, ਪਿਟਾ ਲਚਕਦਾਰ ਅਤੇ ਪਥਰ ਸੈਡੇਟਿਵ ਹੈ. ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਖੂਨ ਦੀ ਸਟੈਸੀਜ਼, ਪਿਸ਼ਾਬ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ, ਗਰਭ, ਕੜਵੱਲ, ਚਮੜੀ ਰੋਗ, ਵੈਟਾ-ਪਿਤ-ਬਲਗਮ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਫਾਇਦੇਮੰਦ ਹੈ. ਇਹ ਜਿਗਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਵਿੱਚ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਪਲਸ ਕੋਲਿਕ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ, ਐਨਓਰੇਕਸਿਆ (ਭੁੱਖ ਦੀ ਕਮੀ), ਕਬਜ਼, ਖੰਡ, ਜਲ ਦੇ ਸਰੀਰ ਅਤੇ ਕੀੜੇ ਦੇ ਰੋਗ.ਇਹ ਲਾਭਕਾਰੀ ਵੀ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੀ ਇਕ ਕਿਸਮ ਹੈ. ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਪੀਲੀ ਹਲਦੀ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ.ਹਲਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹਹਲਦੀ ਪਾ powderਡਰਵਰਤੋਂ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਰਸੋਈ ਦੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਦੇ ਨਾਲ , ਕਈ ਚਿਕਿਤਸਕ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ . ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਹਲਦੀ ਗੱਮ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਮਦਦਗਾਰ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਖੰਘ ਅਤੇ ਖਾਂਸੀ ਸਮੇਤ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਵੀ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਰੂਪ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ. ਇਸ ਸਮੇਂ, ਹਲਦੀ ਉਬਾਲਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਰੀਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ.By Vnita Punjabਵੱਖ ਵੱਖ ਮਨੁੱਖੀ ਰੋਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨਿਦਾਨ ਦੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਲਦੀ ਅਤੇ ਕਰਕੁਮਿਨ (ਏ), ਟੈਸਟਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ; ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਜਾਂ ਬੇਲੋੜੀ ਘਾਟ, ਕਿਸੇ ਨੇ ਵੀ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ. [2] []] []] ਮਨੁੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਕਲੀਨਿਕਲ ਅਜ਼ਮਾਇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਕੋਈ ਸਬੂਤ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਕਿ ਕਰਕੁਮਿਨ (2020 ਤੱਕ) ਸੋਜਸ਼ ਨੂੰ ਘਟਾਉਂਦਾ ਹੈ . [2] [3]

Turmeric  Turmeric (turmeric) is an Indian edible vegetable.  Read in another language  Download  Take care of yourself  Edit By Vnita Kasnia.  Turmeric is an Indian plant. It is a 5-8 foot tall plant of the genus Ginger in which turmeric is found in the root nodes. Turmeric has been considered a miracle ingredient in Ayurveda since ancient times. Apart from turmeric in medical texts, its names are Haridra, Kurkuma Longa, Varvarni, Gauri, Karimghana Yoshitapriya, Hatvilasani, Hardal, Kumkum, Tirmarik. Turmeric is said to be an important medicine in Ayurveda. It holds an important place in Indian cuisine and is considered religiously auspicious. Turmeric juice has its own special significance in marriage.  Latin Name: Karkuma Longa  English name: Turmeric  Family Name: Xinjiang  Turmeric plant: Its leaves are large.  Turmeric has long been used in Ayurvedic medicine where it is used, but also known as Haridra [1], according to ...