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हल्दी एवं अदरख के औषधीय गुण एवं खेतीहल्दी के गुणअदरख के गुणहल्दी एवं अदरख की खेतीजलवायुमिट्टी एवं उसकी तैयारीबुआई का समयउन्नत किस्मेंबीज दर एवं बीज उपचारखाद एवं उर्वरकलगाने की दूरीलगाने की विधिकृषि कार्य एवं देखभालखुदाई एवं उपजअदरख से सोंठ बनानाहल्दी एवं अदरख के बीज को रखनाहल्दी के गुणमुख्य रूप से मसाले के रूप में उपयोग होता है।यह भूख को बढ़ाता है तथा टॉनिक बनाने में इसका उपयोग होता है।खून को साफ़ करता है।आंतरिक चोट को ठीक करता है तथा चमड़े के इंफेक्शन को ठीक करता है। एंटीसेप्टिक के रूप में इसका प्रयोग होता है।प्रसाधन सामग्री तथा ‘कुम-कुम’ में इसका उपयोग होता है।खाँसी में आग में हल्दी को भुनकर तथा पीसकर पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।दूध के साथ हल्दी के सेवन करने से चोट के कारण सूजन कम होता है तथा पेट का कीड़ा भी मरता है।दर्द और सूजन पर हल्दी एवं चूना का लेप लगाने से आराम होता है।अदरख के गुणपाचन क्रिया को बढ़ाता है, बलगम को दूर करता है।खून की नली को फैलाने के कारण खून के बहाव को ठीक करता है।मोटापा को दूर करता है।पेट में गैस को दूर करने के अजवाइन तथा नींबू का रस के साथ उपयोग करने से लाभ होता है (50 ग्राम अदरख पाउडर एवं 30 ग्राम अजवाइन तथा एक नींबू का रस) ।आवाज बंद होने पर मधु के साथ अदरख के रस का सेवन किया जाता है।कब्ज एवं खाँसी में भी अदरख के सेवन से लाभ होता है।हल्दी एवं अदरख की खेतीहल्दी एवं अदरख दोनों मसाले वाली सब्जियाँ हैं जिसकी खेती हमारे देश में काफी बड़े पैमाने पर कीजाती है। इन मसालों को सब्जियों में प्रयोग के अतिरिक्त औषधि के रूप में भी प्रयोग होता आ रहा है। सब्जी में तो हल्दी का प्रयोग आवश्यक रूप से होता ही है। अदरख का निर्यात विदेशों में भी किया जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। छोटानागपुर में भी इनकी खेती कर किसान भाई अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इनकी खेती के लिए आरंभ में काफी पूँजी लगानी होती है। बीज पर अधिक खर्च होता है। अगर किसान भाई बीज अगले साल के लिये रख लें तो सिर्फ प्रथम वर्ष में ही पूँजी लगाने की जरूरत होगी।जलवायुये दोनों गर्म तथा तर मौसम में अच्छी उपज देती है। इनकी खेती खरीफ मौसम में की जाती है। वानस्पतिक वृद्धि के लिये हल्की वर्षा अच्छी होती है। पकने के समय वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है। जहाँ वर्षा 1000-1400 मि. लीटर तक होती है वहाँ इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इस लिहाज से पठारी क्षेत्र इनकी खेती के लिये उपयुक्त है। इनके लिये पर्याप्त वर्षा होती है। हल्दी एवं अदरख को लगाने के लिये लगभग 30 डिग्री तापक्रम की आवश्यकता होती है। हल्दी एवं अदरख की खेती छायादार जगह में भी की जा सकती है। घर के उत्तरी तरफ या पेड़ के उत्तरी भाग में जहाँ कम धूप रहती है, इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।मिट्टी एवं उसकी तैयारीहल्दी एवं अदरख दोनों जमीन के नीचे बैठते हैं, इसलिए हल्की मिट्टी का होना आवश्यक है। मिट्टी में जल का निकास अच्छा होना चाहिए। बलुआही दोमट से लेकर दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना आवश्यक है। क्षारीय मिट्टी में अच्छी उपज नहीं मिलती है। किसान भाई को जमीन भी बदलते रहना चाहिए तथा एक ही खेत में लगातार तीन साल तक खेती नहीं करनी चाहिये। एक ही खेत में लगातार कई साल तक खेती करने से रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।खेत की तैयारी करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन-चार बार देशी हल से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं जो जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिये।बुआई का समयहल्दी एवं अदरख लगभग आठ माह में तैयार होते है इसलिए इनकी बुआई अगात करना आवश्यक है ताकि इन्हें बढ़ने का पर्याप्त समय मिले। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मध्य मई में इनकी बुआई कर दें। वर्षा पर आधारित खेती करना है तो जैसे ही मौनसून की वर्षा हो इनकी बुआई कर दें।उन्नत किस्मेंहल्दी की ‘पटना’ नाम से जानी जाने वाली किस्म बिहार एवं बंगाल में प्रचलित है। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चयनित किस्म ‘मीनापुर’ है जो मध्यकालीन किस्म है। राजेन्द्र सोनिया नामक किस्म इस क्षेत्र में अच्छी उपज देती है। हल्दी की अन्य किस्में कृष्णा, कस्तुरी, सुगंधम, रोमा, सुरोभा, सुदर्शना, रंगा एवं रशिम है।बीज दर एवं बीज उपचारबीज का चुनाव सावधानीपूर्वक करें। स्वस्थ तथा रोग रहित प्रकंद का चुनाव करें। लम्बी गांठ जिनमें तीन-चार स्वस्थ कलियाँ हो बीज के लिये उपयुक्त होती है। बड़े प्रकंद को काटकर भी लगा सकते हैं। काटकर लगाने पर प्रकंद का उपचार करना आवश्यक है तथा काटते समय यह भी ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम दो-तीन कलियाँ अवश्य रहे। एक हेक्टेयर में खेती के लिये लगभग 20-25 क्विंटल प्रकंद बीज की आवश्यकता होगी। काटकर लगाने पर कम प्रकंद की आवश्यकता होगी।लगाने के पहले प्रकंद का उपचार करना आवश्यक है, खासकर प्रकंद को काटकर लगाने पर। इसके लिये इंडोफिल एम. – 45 नामक दवा का 0.2 प्रतिशत घोल बना लेना चाहिये। एक लीटर पानी में 2 ग्राम दवा मिलाने पर 0.2 प्रतिशत घोल बनेगा। बेभिस्टीन नामक दवा का 0.1 प्रतिशत घोल का प्रयोग भी कर सकते हैं। 0.1 प्रतिशत घोल बनाने के लिए एक लीटर पानी में 1 ग्राम दवा मिलायें। दोनों दवाओं के मिश्रण से घोल बनाने पर अधिक उपयोगी पाया जाता है। प्रकंद का उपचार करने के लिये घोल में प्रकंद को 1 घंटा डुबाकर रखते हैं तथा इसके बाद घोल से निकालकर 24 घंटा तक छायादार जगह में रखते हैं। उसके बाद ही इनकी बुआई करते हैं। बीज प्रकंद का उपचार एगलौल या सरैशन या ब्लाईटाक्स के 0.25 प्रतिशत घोल में भी कर सकते है।खाद एवं उर्वरकप्रति हेक्टेयर – कम्पोस्ट : 20 क्विंटलयूरिया : 200-225 किलोएस.एस.पी. : 300 किलोएम.ओ.पी. : 80-90 किलोकम्पोस्ट खेत तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। खेत की अंतिम तैयारी के समय पोटाश की आधी मात्रा एन फ़ॉस्फोरस की पूरी मात्रा दें। बुआई के 60 दिन बाद यूरिया की आधी मात्रा एवं पोटाश की शेष आधी मात्रा को दें। बुआई के 90 दिन बाद यूरिया की शेष आधी मात्रा को दें तथा मिट्टी चढ़ा दें।लगाने की दूरीहल्दी : 45 सें.मी. x 15 से.मी.अदरख : 40 सें.मी. x 10 सें.मी.लगाने की विधिगर्मी में नाली बनाकर लगायें। बरसात में ऊँची क्यारी बनाकर लगायें।(क) गर्मी में हल्दी एवं अदरख की बुआई के लिए 40-45 सेंटीमीटर की दूरी पर 15-20 सेंटीमीटर गहरा तथा उतना ही चौड़ा नाली (ट्रेच) बनाते हैं। नाली में कम्पोस्ट तथा रसायनिक खाद के मिश्रण को देकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। नाली में 10 सेंटीमीटर के फासले पर बीज प्रकंद की बुआई करते हैं तथा मिट्टी को ढंक देते हैं। मिट्टी से ढंकते समय ख्याल रखें की नाली जमीन से थोड़ा नीचे ही रहे ताकि गर्मी में पानी देने में सुविधा हो। बरसात आने पर मिट्टी चढ़ा देते हैं ताकि पानी न जमने पाये।(ख) बरसात में हल्दी एवं अदरख को लगाने के लिए खेत को भुरभुरा कर छोटी-छोटी क्यारियाँ जमीन से 8-10 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए, ताकि बरसात में पानी न लगे। 3.20 मीटर लम्बा तथा 1 मीटर चौड़ाई के क्यारियाँ बना सकते हैं। इन क्यारियों में 40 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइन तथा 10 सेंटी मीटर पौधा से पौधा की दूरी रखकर बुआई करते है। बुआई के लिए 10 सेंटीमीटर गहराई की नाली बनाते हैं तथा उस नाली में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रकंद को रखकर बुआई करते हैं। बुआई के समय प्रकंद में आँख (कली) ऊपर की तरफ होनी चाहिये। बुआई के बाद प्रकंद को मिट्टी से ढँक देते है। इसके बाद सिंचाई कर देते हैं। बुआई के बाद क्यारी को 5-6 सेंटीमीटर मोटा आम, शीशम, घास-फूस या गोबर की सड़ी खाद से ढँक देते हैं ताकि नमी बनी रहे। इससे खरपतवार भी कम उगेंगे।कृषि कार्य एवं देखभालखेत को खरपतवार से मुक्त रखना आवश्यक है। इसके लिए तीन-चार बार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। अंतिम बार गुड़ाई कर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये। आरंभ में दो तीन सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है। वर्षा काल में सिंचाई देने की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन जल एक जमाव न हो इसका ध्यान अवश्य रखें। जब फूल निकले तो उसे निकाल फेंकें। विशेषज्ञ से सलाह लेकर फसल को कीट एवं व्याधि से बचायें।खुदाई एवं उपजअदरख की फसल लगभग आठ से नौ माह में तथा हल्दी नौ से दस माह में खुदाई करने लायक हो जाती है जब पौधे की पत्तियाँ पीली तथा मुरझाई हुई तथा झुकी दिखाई दे तो यह समझना चाहिए कि अब खुदाई का उचित समय है। इस समय सावधानी से कोड़कर निकाल लें। कच्ची हल्दी की उपज लगभग 400-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है तथा इनसे सुखा हल्दी 15 से 25 प्रतिशत के हिसाब से प्राप्त होती है। अदरख की उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लगभग होती है। अदरख को उखाड़ने के बाद दो-तीन बार पानी से धोकर धूलकण को साफ़ कर लेते हैं। इसके बाद तीन-चार दिन तक हल्की धूप में सुखाते हैं।हल्दी के गाँठो को भी धोकर अच्छी तरह साफ़ कर लेते हैं। इसके बाद गांठों को पानी में जिसमें 0.1 प्रतिशत चूना मिला रहता है उबालते समय जब बर्त्तन में झाग आने लगे तथा हल्दी जैसे गंध आने लगे तो प्रकंद को बाहर निकालकर 10-15 दिन तक छाया में अच्छी तरह सुखाकर रख लेते हैं।अदरख से सोंठ बनानासोंठ बनाने के लिए अदरख की अच्छी-अच्छी गांठों को छाँटकर पानी में डाल दें। जब उसका छिलका गल जाये तो साफ़ करके एक सप्ताह के लिए धूप में सुखाना चाहिये। इसके बाद चूने के पानी और गंधक से उपचारित करके फिर धूप में डालना चाहिये। इस प्रकार अदरख का लगभग 1/5 हिस्सा सोंठ के रूप में मिलता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब.हल्दी एवं अदरख के बीज को रखनाकिसान भाई को अगले साल के लिए बीज प्रकंद को रखना आवश्यक है। इसके लिये छायादार जगह में 1 मीटर गहरा एवं 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्डा बनाते हैं। बीज प्रकंद को इंडोफिल एम. 45 या बेभिस्टीन से उपचार कर लेते हैं। गड्डे के सतह पर 20 सेंटीमीटर बालू का सतह रखते हैं। इसके ऊपर 30 सेंटीमीटर लेयर प्रकंद को रखते हैं। इसके ऊपर बालू का लेयर देकर फिर प्रकंद का लेयर देते हैं। इस तरह गड्डे में प्रकंद को रखकर गड्डा को पटरा से ढक देते हैं। पटरा एवं प्रकंद के बीच 10 सेंटीमीटर खाली जगह हवा के लिये छोड़ देते हैं। इसके बाद ऊपर से मिट्टी से लेप कर देते हैं। इस प्रकार बीज प्रकंद को सुरक्षित रखकर अगले मौसम में बुआई करते हैं।

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औषधी गुणधर्म आणि हळद आणि आलेची लागवड हळदीचे गुणधर्म आलेचे गुणधर्म हळद आणि आलेची लागवड हवामान माती आणि त्याची तयारी पेरणीची वेळ प्रगत वाण बियाणे दर व बीजोपचार खते आणि खते अंतर लावत आहे अर्ज करण्याची पद्धत कृषी कार्य आणि काळजी खोदाई आणि उत्पन्न सुका आले हळद आणि आले दाणे ठेवा हळदीचे गुणधर्म मुख्यतः मसाला म्हणून वापरला जातो. हे भूक वाढवते आणि शक्तिवर्धक बनवण्यासाठी वापरली जाते. रक्त स्वच्छ करते. अंतर्गत जखम बरे करते आणि चामड्याचे संक्रमण बरे होते. हे अँटीसेप्टिक म्हणून वापरले जाते. हे सौंदर्यप्रसाधने आणि 'कुम-कुम' मध्ये वापरले जाते. खोकल्यात हळद आगीत भाजून पाण्याने बारीक केल्यास फायदा होतो. दुधाबरोबर हळद घेतल्यास दुखापतीमुळे सूज कमी होते आणि पोटाचा किडा देखील मरतो. वेदना आणि सूज वर हळद आणि चुनाची पेस्ट लावल्यास आराम मिळतो. आलेचे गुणधर्म पचन वाढवते, श्लेष्मा काढून टाकते. रक्तवाहिन्या फुटण्यामुळे रक्ताचा प्रवाह बरा होतो. लठ्ठपणा दूर करते. पोटात गॅस काढून टाकण्यासाठी भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती आणि लिंबाचा रस वापरणे फायदेशीर आहे (50 ग्रॅम आल्याची पावडर आणि 30 ग्रॅम भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती आणि एक लिंबाचा रस). आवाज बंद झाल्यावर मध सह आलेचा रस खाल्ला जातो. बद्धकोष्ठता आणि खोकला देखील आल्याचे सेवन फायदेशीर आहे. हळद आणि आलेची लागवड हळद आणि आले दोन्ही मसालेदार भाज्या आहेत ज्यांची शेती आपल्या देशात मोठ्या प्रमाणात केली जाते. भाज्यांमध्ये हे मसाले वापरण्याव्यतिरिक्त हे औषध म्हणून देखील वापरले जात आहे. हळदीचा वापर भाजीपाला मध्ये होतो. आल्याची परदेशातही निर्यात केली जाते, ज्यामुळे परकीय चलन मिळते. चोटनागपूरमध्येही त्यांची लागवड करुन शेतक good्यांना चांगले उत्पन्न मिळू शकते. सुरुवातीला त्यांच्या लागवडीसाठी भरपूर भांडवल आवश्यक असते. बियाण्यांवर जास्त खर्च होतो. जर शेतक next्यांनी पुढील वर्षासाठी बियाणे ठेवले तर पहिल्या वर्षामध्येच भांडवल गुंतविण्याची गरज भासू शकेल. हवामान हे गरम आणि ओले दोन्ही हवामानात चांगले उत्पादन देते. खरीप हंगामात त्यांची लागवड केली जाते. वनस्पतींचा विकास करण्यासाठी हलका पाऊस चांगला आहे. पिकण्याच्या वेळी पाऊस पडणे आवश्यक नसते. जेथे पाऊस 1000-11400 मी. ते एक लिटर पर्यंत यशस्वीरित्या लागवड करता येते. या अर्थाने, पठाराचे क्षेत्र त्यांच्या लागवडीसाठी योग्य आहे. या साठी पुरेसा पाऊस आहे. हळद आणि आले लावण्यासाठी सुमारे 30 डिग्री तपमान आवश्यक आहे. हळद आणि आल्याची छाया छायादार ठिकाणीही करता येते. घराच्या उत्तरेकडील किंवा झाडाच्या उत्तरेकडील भागात कमी सूर्यप्रकाश असल्यास यशस्वीरित्या लागवड करता येते. माती आणि त्याची तयारी हळद आणि आले दोघेही जमिनीखालून बसतात, त्यामुळे हलकी माती असणे आवश्यक आहे. मातीतील पाण्याचा निचरा चांगला असावा. वालुकामय चिकणमाती ते चिकणमाती माती योग्य आहे. मातीत पुरेसे प्रमाणात बॅक्टेरिया असणे आवश्यक आहे. अल्कधर्मी मातीत चांगले उत्पादन मिळत नाही. शेतकरी बांधवानेही जमीन बदलतच राहावी आणि सलग तीन वर्षे त्याच शेतात शेती करु नये. बर्‍याच वर्षांपासून एकाच शेतात सतत शेती केल्यास रोग होण्याची शक्यता वाढते. शेत तयार करण्यासाठी एकदा नांगरणी करुन माती नांगरणी करुन आणि नांगरणीनंतर तीन ते चार वेळा नांगरणी केल्यास ती माती ठिसूळ होईल जी जमिनीपासून 10-15 सें.मी. उंच असावी. पेरणीची वेळ हळद आणि आले सुमारे आठ महिन्यांत तयार होते, म्हणून त्यांची पेरणी सुरू करणे आवश्यक आहे जेणेकरून त्यांना वाळण्यास पुरेसा वेळ मिळेल. जर सिंचन करावयाचे असेल तर त्यांना मेच्या मध्यावर पेरणी करा. जर तुम्हाला पावसाळी शेती करायची असेल तर पावसाळा पाऊस पडताच पेरणी करा. प्रगत वाण हळदीचे 'पटना' म्हणून ओळखले जाणारे वाण बिहार आणि बंगालमध्ये पाळले जाते. राजेंद्र कृषी विद्यापीठाने निवडलेली वाण 'मीनापूर' असून ती मध्ययुगीन आहे. राजेंद्र सोनिया जाती या प्रदेशात चांगले उत्पादन देते. कृष्णा, कस्तुरी, सुगंधम, रोमा, सुरोभा, सुदर्शन, रंगा आणि रशिम हळदीच्या इतर जाती आहेत. बियाणे दर व बीजोपचार बियाणे काळजीपूर्वक निवडा. एक निरोगी आणि रोग-मुक्त राइझोम निवडा. लांब नॉट ज्यात तीन ते चार निरोगी कळ्या असतात ते बियाण्यास योग्य असतात. मोठे राईझोम देखील कापून ते लागू करता येतात. कट करून राइझोमवर उपचार करणे आवश्यक आहे आणि कापताना हे लक्षात ठेवावे की प्रत्येक तुकड्यात किमान दोन-तीन कळ्या असणे आवश्यक आहे. एक हेक्टर क्षेत्रासाठी लागवडीसाठी सुमारे 20-25 क्विंटल राईझोम बियाणे आवश्यक आहे. कट करताना कमी rhizome आवश्यक आहे. रोप लावण्यापूर्वी rhizome चा उपचार करणे आवश्यक आहे, विशेषत: rhizome कापताना. यासाठी इंडोफिल एम -45 नावाच्या औषधाचे 0.2 टक्के द्रावण तयार केले जावे. एका लिटर पाण्यात 2 ग्रॅम औषध जोडल्यानंतर 0.2 टक्के द्रावण तयार होईल. आपण बॅबिस्टाइन नावाच्या औषधाचे 0.1 टक्के द्रावण देखील वापरू शकता. 0.1 टक्के द्रावण तयार करण्यासाठी, एक लिटर पाण्यात 1 ग्रॅम औषध घाला. स्लरी तयार करताना दोन्ही औषधांचे मिश्रण अधिक उपयुक्त असल्याचे आढळले. राईझोम बरा करण्यासाठी १ तासाला द्रावणात h तास ठेवा आणि त्यानंतर ते द्रावणातून काढून २ 24 तास एखाद्या अंधुक ठिकाणी ठेवा. त्यानंतरच त्यांनी ते पेरले. बियाणे राइझोमचा वापर 0.25% अगारोल किंवा सारीसन किंवा ब्लॅटाक्सच्या द्रावणामध्ये देखील केला जाऊ शकतो. खते आणि खते प्रति हेक्टर - कंपोस्ट: 20 क्विंटल युरिया: 200-225 किलो एसएसपी : 300 किलो एमओपी : 80-90 किलो कंपोस्ट शेतात तयार करताना मातीमध्ये चांगले मिसळा. शेताची अंतिम तयारी करताना पोटॅशचे निम्मे प्रमाण आणि एन फॉस्फरस द्यावे. पेरणीनंतर days० दिवसानंतर अर्धा युरिया आणि उर्वरित अर्धा पोटाश द्या. उरलेले अर्धे यूरिया पेरणीनंतर 90 ० दिवसांनी द्यावे व माती द्या. अंतर लावत आहे हळद: 45 सेमी x 15 सेमी आले: 40 सें.मी. x 10 सेमी अर्ज करण्याची पद्धत निचरा आणि गॅस मध्ये लागू. पावसाळ्यात उंच बेड बनवा. (अ) उन्हाळ्यात हळद आणि आले पेरण्यासाठी, एक ट्रेचा 15-25 सेंमी खोल आणि तितकाच 40-45 सेंमीच्या अंतरावर रुंद केला जातो. नाल्यात कंपोस्ट आणि रासायनिक खताचे मिश्रण देऊन ते मातीत चांगले मिसळतात. बियाणे नाल्यात 10 सेमी अंतरावर राईझोम पेरतात आणि माती झाकतात. माती झाकताना, काळजी घ्या की नाले जमिनीच्या खाली थोडेसे राहील जेणेकरुन उन्हाळ्यात पाणी देण्याची सोय होईल. पावसाच्या आगमनाने, पाणी गोठू नये म्हणून मातीचे ढीग केले आहेत. (ब) पावसाळ्यात हळद आणि आले लावण्यासाठी लहान बेड जमिनीपासून 8-10 सें.मी. उंच असावेत, जेणेकरून पावसात पाणी नसेल. 3.20 मीटर लांब आणि 1 मीटर रूंदीचे बेड बनवू शकतात. या बेडांमध्ये, पेरणी ओळीपासून 40 सेंमी आणि वनस्पतीपासून 10 सें.मी. अंतरावर केली जाते. पेरणीसाठी, आम्ही 10 सें.मी. खोलीचे निचरा बनवितो आणि त्या नाल्यात 10 सेमी अंतरावर राईझोम पेरतो. पेरणीच्या वेळी डोळा (अंकुर) राईझोममध्ये वरच्या बाजूस असावा. पेरणीनंतर, rhizome माती सह संरक्षित आहे. यानंतर आम्ही सिंचन देतो. पेरणीनंतर बियाणे 5- ते cm सें.मी. जाड आंबा, गुलाबवुड, तण किंवा शेण कुजलेले खत घाला जेणेकरून ओलावा टिकून राहील. यापेक्षा तणही कमी वाढेल. कृषी कार्य आणि काळजी शेतात तणमुक्त ठेवणे आवश्यक आहे. यासाठी आपण तीन ते चार वेळा केले पाहिजे. शेवटची वेळ चिखल मातीने करावी. सुरुवातीला दोन ते तीन सिंचन आवश्यक असू शकते. पावसाळ्यामध्ये सिंचन देण्याची गरज भासणार नाही, परंतु पाण्याची भीड नसल्याचे सुनिश्चित करा. जेव्हा फुले बाहेर येतात तेव्हा त्यांना बाहेर फेकून द्या. एखाद्या तज्ञाचा सल्ला घेऊन कीटक व आजारांपासून पीक वाचवा. खोदाई आणि उत्पन्न आल्याचे पीक सुमारे आठ ते नऊ महिन्यांत आणि हळद नऊ ते दहा महिन्यांत खोदण्यास योग्य ठरते जेव्हा झाडाची पाने पिवळ्या रंगाची आणि वाळलेली आणि वाकलेली दिसतात तेव्हा हे समजून घ्यावे की आता खोदण्याची योग्य वेळ आहे. यावेळी, फटके मारुन काळजीपूर्वक काढा. कच्च्या हळदचे उत्पादन प्रति हेक्टरी -4००--450० क्विंटल आणि कोरडी हळद १ 15 ते २ percent टक्के पर्यंत मिळते. आलेचे उत्पादन प्रति हेक्टरी 200 क्विंटल आहे. आले खोडून काढल्यानंतर ते दोन किंवा तीन वेळा पाण्याने धुवा आणि धूळ स्वच्छ करा. यानंतर, तीन ते चार दिवस हलक्या उन्हात वाळवा. हळद गाठ धुवून चांगले स्वच्छ करा. यानंतर, जेव्हा गठ्ठ्या पाण्यात 0.1% चुना मिसळल्या जातात, जेव्हा उकळत्या फेस येऊ लागतात आणि हळद सारखा वास येतो, तेव्हा rhizome घ्या आणि 10-15 दिवस सावलीत वाळवा. सुका आले आले कोरडे करण्यासाठी आल्याची गठ्ठ्या व्यवस्थित ट्रिम करुन पाण्यात टाका. जेव्हा त्याची त्वचा वितळते तेव्हा ती आठवड्यातून स्वच्छ आणि उन्हात वाळवावी. यानंतर, चुना पाणी आणि गंधक सह उपचार, नंतर उन्हात ठेवले. अशा प्रकारे, आल्याचा सुमारे 1/5 भाग कोरडा आल्याच्या स्वरूपात आढळतो. समाजसेवक वनिता कसानी पंजाब यांनी केले. हळद आणि आले दाणे ठेवा पुढील वर्षासाठी शेतकरी बांधव बियाणे rhizome ठेवणे आवश्यक आहे. यासाठी, खड्डा 1 मीटर खोल आणि 50 सेंमी रुंद छायादार ठिकाणी बनविला गेला आहे. बियाणे rhizome इंडोफिल एम 45 किंवा Babistein द्वारे उपचार केला जातो. खड्ड्याच्या पृष्ठभागावर, 20 सेमी वाळू विश्रांती घेते. याच्या वरच्या cm० सेंमीच्या थराला rhizome आहे. या वर, वाळूचा थर देऊन नंतर राईझोमचा थर द्या. अशाप्रकारे, र्‍झोझोम खड्ड्यात ठेवून, खड्ड्याला देठाने झाकून ठेवा. खड्डा आणि राइझोम दरम्यान, हवेसाठी 10 सेमी रिक्त जागा सोडा. यानंतर, आम्ही ते मातीच्या माथ्यावरुन लागू करतो. अशाप्रकारे, पुढच्या हंगामात बियाणे पेरणी केल्याने राईझोम सुरक्षित राहील.

ਹਲਦੀਹਲਦੀ (ਹਲਦੀ) ਇਕ ਭਾਰਤੀ ਖਾਣ ਵਾਲੀ ਸਬਜ਼ੀ ਹੈ.ਇਕ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹੋਡਾ .ਨਲੋਡਆਪਣਾ ਖਿਆਲ ਰੱਖਣਾਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋ By Vnita Kasnia.ਹਲਦੀ ਭਾਰਤੀ ਪੌਦਾ ਹੈ . ਇਹ ਅਦਰਕ ਜਾਤੀਆਂ ਦਾ 5-8 ਫੁੱਟ ਉੱਗਣ ਵਾਲਾ ਪੌਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਜੜ੍ਹ ਦੇ ਨੋਡਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਚਮਤਕਾਰੀ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਚਿਕਿਤਸਕ ਟੈਕਸਟ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹਰਿਦ੍ਰਾ, ਕੁਰਕੁਮਾ ਲੌਂਗਾ, ਵਰਵਰਨੀ, ਗੌਰੀ, ਕਰੀਮਘਨਾ ਯੋਸ਼ਿਤਾਪ੍ਰਿਯਾ, ਹੱਟਵਿਲਾਸਾਨੀ, ਹਰਦਾਲ, ਕੁਮਕੁਮ, ਤਿਰਮਰਿਕ ਹੈ। ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਦਵਾਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਰਸੋਈ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੁੱਭ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰਸ ਦੀ ਆਪਣੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ.ਲਾਤੀਨੀ ਨਾਮ: ਕਰਕੁਮਾ ਲੋਂਗਾਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਮ: ਹਲਦੀਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਨਾਮ: ਜਿਨਜੀਆਂਗਹਲਦੀ ਦਾ ਪੌਦਾ: ਇਸਦੇ ਪੱਤੇ ਵੱਡੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ.ਲੰਬੇ ਆਯੁਰਵੈਦਿਕ ਦਵਾਈ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਵੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ Haridra [1] , ਅਮਰੀਕੀ ਖੁਰਾਕ ਤੇ ਡਰੱਗ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਅਨੁਸਾਰ [2] [3] , ਹਲਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜ ਇਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਹੈ ਉੱਚ-ਗੁਣਵੱਤਾ ਕਲੀਨਿਕਲ ਸਬੂਤ ਸਮੱਗਰੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ , ਕਰਕੁਮਿਨ .ਜਾਣ ਪਛਾਣ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਵਿਚ 5.8% ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਤੇਲ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ 6.3%, ਤਰਲ 5.1%, ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ 3.5%, ਅਤੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ 68.4% ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਰੰਗ ਕਰਕੁਮਿਨ, ਵਿਟਾਮਿਨ ਏ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਗਠੀਏ , ਖੂਨ ਦੇ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਕੈਂਸਰ , ਜਰਾਸੀਮੀ ਲਾਗ, ਹਾਈ ਬਲੱਡ ਪ੍ਰੈਸ਼ਰ ਅਤੇ ਐਲਡੀਐਲ ਕੋਲੈਸਟ੍ਰੋਲ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਸੈੱਲਾਂ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਵਿਚ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਕਫਾ-ਵਟਾ ਸੈਡੇਟਿਵ, ਪਿਟਾ ਲਚਕਦਾਰ ਅਤੇ ਪਥਰ ਸੈਡੇਟਿਵ ਹੈ. ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਖੂਨ ਦੀ ਸਟੈਸੀਜ਼, ਪਿਸ਼ਾਬ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ, ਗਰਭ, ਕੜਵੱਲ, ਚਮੜੀ ਰੋਗ, ਵੈਟਾ-ਪਿਤ-ਬਲਗਮ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਫਾਇਦੇਮੰਦ ਹੈ. ਇਹ ਜਿਗਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਵਿੱਚ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਪਲਸ ਕੋਲਿਕ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ, ਐਨਓਰੇਕਸਿਆ (ਭੁੱਖ ਦੀ ਕਮੀ), ਕਬਜ਼, ਖੰਡ, ਜਲ ਦੇ ਸਰੀਰ ਅਤੇ ਕੀੜੇ ਦੇ ਰੋਗ.ਇਹ ਲਾਭਕਾਰੀ ਵੀ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੀ ਇਕ ਕਿਸਮ ਹੈ. ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਪੀਲੀ ਹਲਦੀ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ.ਹਲਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹਹਲਦੀ ਪਾ powderਡਰਵਰਤੋਂ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਰਸੋਈ ਦੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਦੇ ਨਾਲ , ਕਈ ਚਿਕਿਤਸਕ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ . ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਹਲਦੀ ਗੱਮ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਮਦਦਗਾਰ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਖੰਘ ਅਤੇ ਖਾਂਸੀ ਸਮੇਤ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਵੀ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਰੂਪ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ. ਇਸ ਸਮੇਂ, ਹਲਦੀ ਉਬਾਲਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਰੀਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ.By Vnita Punjabਵੱਖ ਵੱਖ ਮਨੁੱਖੀ ਰੋਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨਿਦਾਨ ਦੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਲਦੀ ਅਤੇ ਕਰਕੁਮਿਨ (ਏ), ਟੈਸਟਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ; ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਜਾਂ ਬੇਲੋੜੀ ਘਾਟ, ਕਿਸੇ ਨੇ ਵੀ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ. [2] []] []] ਮਨੁੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਕਲੀਨਿਕਲ ਅਜ਼ਮਾਇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਕੋਈ ਸਬੂਤ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਕਿ ਕਰਕੁਮਿਨ (2020 ਤੱਕ) ਸੋਜਸ਼ ਨੂੰ ਘਟਾਉਂਦਾ ਹੈ . [2] [3]

Turmeric  Turmeric (turmeric) is an Indian edible vegetable.  Read in another language  Download  Take care of yourself  Edit By Vnita Kasnia.  Turmeric is an Indian plant. It is a 5-8 foot tall plant of the genus Ginger in which turmeric is found in the root nodes. Turmeric has been considered a miracle ingredient in Ayurveda since ancient times. Apart from turmeric in medical texts, its names are Haridra, Kurkuma Longa, Varvarni, Gauri, Karimghana Yoshitapriya, Hatvilasani, Hardal, Kumkum, Tirmarik. Turmeric is said to be an important medicine in Ayurveda. It holds an important place in Indian cuisine and is considered religiously auspicious. Turmeric juice has its own special significance in marriage.  Latin Name: Karkuma Longa  English name: Turmeric  Family Name: Xinjiang  Turmeric plant: Its leaves are large.  Turmeric has long been used in Ayurvedic medicine where it is used, but also known as Haridra [1], according to ...