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टीबी (क्षय रोग) में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए – टीबी में भोजन 🌹 *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹 राम राम जी* 🌹🙏🙏🌹टीबी, Tuberculosis, क्षय और तपेदिक ये सभी एक ही रोग के नाम है | टीबी एक संक्रामक बीमारी है यानि छूत की बीमारी है। पहले टीबी लाइलाज बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो जाती है। क्षय रोग मुख्य रूप से फेफड़ों का होता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों में भी क्षय रोग हो सकता है। टीबी का इन्फेक्शन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नाम के बैक्टीरिया के जरिए होता है। लगातार और लंबे समय ( करीब छह महीने से एक साल) तक एंटी बायोटिक्स के सेवन से इस बीमारी पर काबू पाया जाता है। टीबी रोग में शुरू में कमजोरी महसूस होती है, फिर भूख घटती जाती है। फिर खांसी, कफ और बुखार भी हो जाते हैं। सिरदर्द, जुकाम और अन्य छोटी बीमारियां भी आक्रमण करने लगती हैं। बाद में कफ के साथ खून भी आने लगता है। कमजोरी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। टीबी की बीमारी में लंबे समय तक दवाइयों के साथ-साथ अच्छी खुराक भी जरूरी होती है। टीबी मे आहार की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है की इस बीमारी में मौतों का मुख्य कारण मरीजों को उचित पोषक आहार न मिल पाना भी होता है। टीबी में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी बहुत जरूरी होती है और ऐसा सही पोषक भोजन से ही हो सकता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से बीमारी पर पूरी तरह काबू पाने में मदद मिलती है। टीबी के मरीजों को अपनी डायट का विशेष ध्यान रखना चाहिए इस बीमारी में शरीर को यदि जरूरी खुराक न दी जाए तो एक तो बीमारी को पूरी तरह ठीक होने में बहुत समय लगता है और दूसरे, बीमारी के फिर से पनपने का भी खतरा रहता है।इसे दूसरी तरह यूं भी कहा जा सकता है कि यदि शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्व मिलते रहें तो शरीर में टीबी होने का खतरा भी जाता रहता है यानी शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्व देकर टीबी से लड़ा जा सकता है। यदि आप टी.बी का उपचार ले रहे है तो अपने खानपान में बदलाव करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरुर लें | टीबी के रोगी को क्या खाना चाहिए :Tuberculosis tb me kya na khaye parhej टीबी (क्षय रोग) में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिएटीबी मे आहारक्षय रोग में मरीज का खाना हलका, आसानी से पचने वाला तथा अधिक पौष्टिक होना चाहिए।टीबी के रोगी को सब्जी में प्याज, करेला, लहसुन, खीरा, टमाटर, आलू, फूल गोभी,मटर,पालक, लौकी, पालक खाएं। आइये अब विस्तार से जानते है टीबी रोगी की आहार तालिका |मक्खन, मिश्री में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।नये रोग में एक गिलास गर्म दूध सुबह-शाम पिएं। और टोंड दूध पियें |पुराने चावल, मूंग की दाल, सूजी की रोटी, अरारोट, बाली, जौ आदि नियमित रूप से खाएं।फलों में अंगूर, मीठा संतरा, आंवला, अनार, मीठा आम, केला, सेब, नींबू, नारियल सेवन करें।कमजोरी में शहद, मुनक्का, अखरोट, खजूर, गाजर खाएं।हरी पत्तेदार और फली वाली सब्जियां : टीबी के रोगी को अपने भोजन में पालक और इसी के जैसी हरी पत्तेदार सब्जियां अपने भोजन में जरूर शामिल करनी चाहिए। इससे शरीर को आयरन और विटामिन बी की अच्छी मात्रा मिलती है। इसी के साथ सेम, मटर और अन्य फली वाली सब्जियां भी बहुत फायदेमंद होती हैं। उपाय : कच्ची लौकी को कद्दूकस कर लें। फिर इसे आंच पर बस एक उबाल तक पकाएं। इसके बाद इसमें शक्कर मिलाकर खाएं।फलों में शरीफा और बेरी का सेवन करें : टीबी के दौरान रोगी के शरीर में रोजाना फलों की कम-से-कम दो कप मात्रा शरीर में जरूर जानी चाहिए। फलों के बीच भी कस्टर्ड एप्पल (श्रीफल या शरीफा) और स्ट्रॉबेरी विशेष रूप से फायदेमंद हैं। टीबी बीमारी में कस्टर्ड एप्पल को खाने का तरीका कुछ अलग है। इसमें शरीफा के गूदे को पानी में उबालते हैं और फिर ठंडा करके इसका सेवन करते हैं। रोजाना ऐसा करने से काफी लाभ होता है। सभी तरह की बेरी का सेवन टीबी में अच्छा रहता है। बेरी में पोटेशियम, विटामिन और अन्य जरूरी पोषक तत्व होते हैं, जो बीमारी के खिलाफ लड़ते हैं।साबुत अनाज प्रचुर मात्रा में लें : क्षय रोग में खान पान के डाइट चार्ट के अनुसार रोगी को साबुत अनाज ज्यादा खाना चाहिए। इसके तहत ओटमील (जौ और अन्य अनाजों का दलिया), ज्वार, बाजरा, विभिन्न अनाजों के आटे को मिलाकर बनाई गई रोटियां, होल व्हीट, ब्राउन राइस आदि आते हैं।चिकनाई में जैतून का तेल चुनें : जब चिकनाई यानी तैलीय पदार्थ खाने की बात आती है तो टीबी के रोगी को मक्खन, घी जैसे सेचुरेटिड फैट के बजाय जैतून के तेल जैसे अनसेचुरेटिड फैट का चुनाव करना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस तेल में अच्छी वाली फैट होती है। हालाँकि जैतून का तेल उपलब्ध ना होने पर सामान्य घी का भी प्रयोग किया जा सकता है |ओमेगा-3 फैटी एसिड के सेवन पर जोर दें : यह भी अच्छी वाली फैट होती है, जो मछली और उसके तेल, अलसी और उसके तेल, सरसों के तेल, सभी नट्स, जैसे बादाम, अखरोट, काजू, पिस्ता, मूंगफली आदि में पाई जाती है। उपाय : थोड़ी अखरोट की गिरी लें। दो-तीन कलियां लहसुन की लें। दोनों को मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण को देसी घी में भूनकर खाएं। ऐसा रोज करें।प्रोटीन: टीबी के दौरान कमजोर शरीर को प्रोटीन देना बहुत जरूरी हो जाता है। इसलिए प्रोटीन के धनी पदार्थ अपने भोजन में शामिल करें। प्रोटीन के लिए मछली, पनीर, दालें, उबले अंडे, सोया और मांस, भी खाएं | अंडा और टीबी को लेकर भी कई लोगो में शंका बनी रहती है लेकिन अगर आप मांसाहारी है और नॉन वेज खाना खाते है तो टीबी रोग में उबला अंडा खा सकते है यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है |टीबी में अंगूर को भी बहुत लाभदायक होता है। रोजाना करीब एक पाव अंगूर खाने से बहुत लाभ होता है।सेब का मुरब्बा रोज खाने से भी टीबी के रोगी को लाभ मिलेगा।बेर या बेरियों को सीधा न खाकर इनका गूदा कुचलकर पानी में उबालें और फिर उसमें शक्कर डालकर खाएं।विशेषज्ञों के अनुसार, यदि केले के तने का रस निकालकर और छानकर 40 दिन तक रोजाना एक कप पिया जाए तो टीबी रोगी को बहुत लाभ होता है।टीबी में लहसुन का सेवन भी बहुत लाभकारी है। यदि एक महीने तक लहसुन की दो-तीन कलियां रोज सुबह कच्ची ही चबा ली जाएं तो रोग शरीर से पूरी तरह निकल जाएगा। जानिए – लहसुन खाने के फायदे और 14 बेहतरीन औषधीय गुणरोजाना लहसुन के रस के साथ शहद मिलाकर चाटने से भी लाभ होगा।दूध को पीने से पहले चार-पांच कलियां लहसुन डालकर उबालें। उबलने के बाद दूध को छानकर पीएं।टीबी रोग में खानपान के ये विशेष उपाय भी करें :रोजाना दूध के साथ गुलकंद खाएं।विटामिन डी के लिए टीबी रोगी को धूप में जरुर बैठना चाहिए |दूध में बकरी का दूध विशेष लाभ देगा। रोजाना आधा लीटर बकरी के दूध में आधा चम्मच सौंठ डालकर और गर्म करके पीएं।चार-एक के अनुपात में मक्खन और शहद लें और दोनों को मिलाकर रोज सुबह खाएं। घी नहीं मक्खन होना चाहिए |रोजाना कच्चा नारियल खाने से भी टीबी रोगी को लाभ होता है।एक पाव बकरी का दूध लें। लहसुन की चटनी बना लें। थोड़ा-सा नारियल कस लें। अब तीनों को मिलाकर इनका हलवा बनाएं और सेवन करें।खजूर, छुहारे, नारियल का रोजाना सेवन करें।पानी आर.ओ से फ़िल्टर किया हुआ या उबला हुआ ही पियें | भारी मेटल वाला कुँए, नदी या हैण्ड पंप से निकला हुआ पानी सीधे ना पिएटीबी में क्या नहीं खाना चाहिए : क्षय रोग में परहेजटीबी में ऐसा भोजन नहीं होना चाहिए, जो मुश्किल से पचे, क्योंकि ऐसा भोजन एसोडिटी पैदा कर सकता है और श्वसन-तंत्र की गड़बड़ी को और बढ़ा सकता है।तंबाकू का सेवन (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा आदि) हानिकारक होगा।शराब का सेवन नुकसान करेगा। टीबी के इलाज के लिए ली जाने वाली कुछ दवाइयों से शराब पीने की स्थिति में लिवर को नुकसान की आशंका बहुत बढ़ जाती है। याद रखें शराब का सेवन जानलेवा होगा यदि आप टी.बी के इलाज के दौरान शराब पियेंगे तो |चाय, कॉफी और कैफीन वाले अन्य पदार्थों का सेवन भी कम-से-कम करें।रिफाइंड उत्पादों का सेवन भी कम-से-कम करें। इनमें चीनी, पास्ता, सफेद ब्रेड,पीज्जा, बर्गर, मैगी और सफेद चावल विशेष रूप से शामिल हैं। यह भी पढ़ें – T.B के कारण, लक्षण, प्रकार और बचाव की जानकारीहाई फैट, हाई कोलेस्ट्रॉल वाले रेड मीट जैसे भोजन से परेहज करें।ठंडे, चटपटे, तले भुने तेल में फ्राई किये गए पदार्थ न खाएं। ज्यादा मिर्च-मसालेदार आहार भी न खाएं।बासी अन्न और साग-सब्जी का सेवन न करें।अचार, खटाई, तेल, घी का अधिक सेवन करने से बचें। सिर्फ सयंमित मात्रा में ही लें |टीबी या क्षय रोग इन बातों का भी जरुर रखें ख्याल :टीबी को दूर करने वाली कुछ दवाइयों को खाने से भूख में कमी आती है, जी मिचला सकता है और पेट में भी दर्द होता है। आखों से देखने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है। इन साइड इफेक्ट से घबराकर दवाई बिल्कुल न छोड़ें। इसके बजाय इन सारे या किसी एक दुष्प्रभाव के बारे में अपने डॉक्टर को बताएं।पौष्टिक भोजन किसी भी प्रकार से न छोड़ें। जिस प्रकार भी आपको अच्छा लगे, शरीर को भरपूर खुराक दें। एक बार में ज्यादा न खाकर कई-कई बार थोड़ा-थोड़ा खाएं, जिससे भूख कम लगने पर भी जरूरी पोषक तत्व शरीर में जाते रहें। दो भोजन के बीच में ज्यादा कैलोरी वाले प्रोटीन शेक का इस्तेमाल करें। पेट ठीक महसूस न हो रहा हो तो पुदीना या अदरक की चाय पीएं।रोज सुबह के समय नंगे पांव घास पर टहलें। बीमारी की हालत में स्कूल या ऑफिस न जाएं।खांसते या छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें। हवादार और अलग कमरे में लेटें। सूरज की रोशनी टीबी के मरीज के लिए बहुत जरुरी होती है |अपने डॉक्टर से टीबी के दौरान बरती जाने वाली अन्य सावधानियों के बारे में पूछे और उन पर अमल करें, ताकि आपके जरिए दूसरे लोग इस बीमारी की चपेट में न आने पाएं।टीबी रोगियों के कुछ आम सवाल और उनके जवाबसवाल : क्या टीबी के हर रोगी से रोग दूसरों में फैल सकता है?जवाब : नहीं। टीबी फैलने का डर सिर्फ उन रोगियों से होता है जिनके फेफड़े में टीबी से बड़े-बड़े जख्म बन जाते हैं और असंख्य टीबी बैक्टीरिया इन जख्मों में पनप रहे होते हैं। रोगी के खांसने, छींकने, थूकने, सांस छोड़ने पर ये बैक्टीरिया हवा में फैल जाते हैं और दूसरों के फेफड़ों में पहुंच रोग पैदा कर सकते हैं।सवाल : दवा शुरू करने के कितने दिन बाद टीबी के रोगी से टीबी फैलने का डर खत्म हो जाता है?जवाब : दवा शुरू करने के 72 घंटों के भीतर ही रोगी के फेफड़े में पल रहे। माइकोबैक्टीरिया तेजी से मरने लगते हैं। तीन हफ्ते बीतते-बीतते शरीर के भीतर माइकोबैक्टीरिया की आबादी इतनी कम रह जाती है। कि टी.बी फैलने का खतरा बिल्कुल खत्म हो जाता है। सवाल : टी.बी का पूरा इलाज लेने के बाद भी क्या यह रोग फिर से हो सकता है?जवाब : टी.बी के फिर से होने की आशंका उन्हीं लोगों में अधिक होती है जो इलाज बीच में छोड़ देते हैं। इलाज पूरा लिया जाए तो टी.बी की रिलेप्स दर 2 प्रतिशत से भी कम है। यह पुनरावृत्ति अगर हो तो इसकी सबसे अधिक संभावना इलाज पूरा होने के पहले या दूसरे साल में होती है।सवाल : टी.बी-रोधक रिफेम्पिसिन दवा सुबह-सुबह खाली पेट लेना क्यों जरूरी है?जवाब : सुबह-सुबह खाली पेट लेने से रिफेम्पिसिन आंतों से बेहतर जज्ब होती है, खून में यह पूरी उपयुक्त मात्रा में पहुंचती है और रोगी को उसका पूरा लाभ मिलता है। नतीजतन यह पूरे जोर-शोर से शरीर में छुपे टीबी बैक्टीरिया का सफाया कर पाती है। टीबी पर जीत हासिल करने के लिए इसीलिए इस डॉक्टरी सलाह का पालन करने में ही समझदारी है।सवाल : एम.डी.आर टी.बी क्या है?जवाब : मनुष्य में फैलते-फैलते टी.बी-कारक माइकोबैक्टीरिया की कई ऐसी नई नस्लें उपज आयी हैं जिनकी संरचना साधारण माइकोबैक्टीरिया की बनावट से अलग है। उन पर सामान्य टीबी-रोधक दवाएं असर नहीं कर पातीं। ऐसे माइकोबैक्टीरिया से उपजी टीबी मल्टी-ड्रग रजिस्टेंट होती है, जिसे संक्षेप में एमडीआर टीबी कहते हैं।सवाल : टी.बी-रोधक आईएनएच दवा के साथ विटामिन बी, की गोली लेना क्यों जरूरी है?जवाब : आईएनएच (आइसोनायजिड) लेने से शरीर में विटामिन बी की कमी आ जाती है। रोजाना विटामिन बी उर्फ पिरीडॉक्सिन की गोली लेने से इस कमी की भरपाई होती रहती है और शरीर स्वस्थ रहता है। चोकर वाला आटा, भूसी वाले चावल, अंकुरित दालें, सब्जियाँ और गोश्त भी विटामिन बी के अच्छे स्रोत हैं, जिनके नियमित सेवन से यह पूर्ति की जा सकती है।अन्य सम्बंधित पोस्टटीबी की बीमारी में भोजन : जानिए लाभदायक फल और सब्जियांबवासीर में क्या खाएं क्या ना खाएं 35 टिप्स-Diet In Pilesपथरी में क्या खाना चाहिए : किडनी स्टोन में भोजनथायराइड में क्या खाएं और क्या न खाएंडायबिटीज में क्या खाए और क्या नहीं-31 टिप्स-Diabetic Dietखून की कमी (एनीमिया) : कारण, लक्षण और उपायकरेले के जूस के 21 फायदे तथा जूस बनाने की विधिलौकी जूस के बेहतरीन 29 औषधीय गुण

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ਹਲਦੀਹਲਦੀ (ਹਲਦੀ) ਇਕ ਭਾਰਤੀ ਖਾਣ ਵਾਲੀ ਸਬਜ਼ੀ ਹੈ.ਇਕ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹੋਡਾ .ਨਲੋਡਆਪਣਾ ਖਿਆਲ ਰੱਖਣਾਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋ By Vnita Kasnia.ਹਲਦੀ ਭਾਰਤੀ ਪੌਦਾ ਹੈ . ਇਹ ਅਦਰਕ ਜਾਤੀਆਂ ਦਾ 5-8 ਫੁੱਟ ਉੱਗਣ ਵਾਲਾ ਪੌਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਜੜ੍ਹ ਦੇ ਨੋਡਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਚਮਤਕਾਰੀ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਚਿਕਿਤਸਕ ਟੈਕਸਟ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹਰਿਦ੍ਰਾ, ਕੁਰਕੁਮਾ ਲੌਂਗਾ, ਵਰਵਰਨੀ, ਗੌਰੀ, ਕਰੀਮਘਨਾ ਯੋਸ਼ਿਤਾਪ੍ਰਿਯਾ, ਹੱਟਵਿਲਾਸਾਨੀ, ਹਰਦਾਲ, ਕੁਮਕੁਮ, ਤਿਰਮਰਿਕ ਹੈ। ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਦਵਾਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਰਸੋਈ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੁੱਭ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰਸ ਦੀ ਆਪਣੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ.ਲਾਤੀਨੀ ਨਾਮ: ਕਰਕੁਮਾ ਲੋਂਗਾਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਮ: ਹਲਦੀਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਨਾਮ: ਜਿਨਜੀਆਂਗਹਲਦੀ ਦਾ ਪੌਦਾ: ਇਸਦੇ ਪੱਤੇ ਵੱਡੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ.ਲੰਬੇ ਆਯੁਰਵੈਦਿਕ ਦਵਾਈ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਵੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ Haridra [1] , ਅਮਰੀਕੀ ਖੁਰਾਕ ਤੇ ਡਰੱਗ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਅਨੁਸਾਰ [2] [3] , ਹਲਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜ ਇਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਹੈ ਉੱਚ-ਗੁਣਵੱਤਾ ਕਲੀਨਿਕਲ ਸਬੂਤ ਸਮੱਗਰੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ , ਕਰਕੁਮਿਨ .ਜਾਣ ਪਛਾਣ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਵਿਚ 5.8% ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਤੇਲ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ 6.3%, ਤਰਲ 5.1%, ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ 3.5%, ਅਤੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ 68.4% ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਰੰਗ ਕਰਕੁਮਿਨ, ਵਿਟਾਮਿਨ ਏ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਗਠੀਏ , ਖੂਨ ਦੇ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਕੈਂਸਰ , ਜਰਾਸੀਮੀ ਲਾਗ, ਹਾਈ ਬਲੱਡ ਪ੍ਰੈਸ਼ਰ ਅਤੇ ਐਲਡੀਐਲ ਕੋਲੈਸਟ੍ਰੋਲ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਸੈੱਲਾਂ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਵਿਚ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਕਫਾ-ਵਟਾ ਸੈਡੇਟਿਵ, ਪਿਟਾ ਲਚਕਦਾਰ ਅਤੇ ਪਥਰ ਸੈਡੇਟਿਵ ਹੈ. ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਖੂਨ ਦੀ ਸਟੈਸੀਜ਼, ਪਿਸ਼ਾਬ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ, ਗਰਭ, ਕੜਵੱਲ, ਚਮੜੀ ਰੋਗ, ਵੈਟਾ-ਪਿਤ-ਬਲਗਮ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਫਾਇਦੇਮੰਦ ਹੈ. ਇਹ ਜਿਗਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਵਿੱਚ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਪਲਸ ਕੋਲਿਕ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ, ਐਨਓਰੇਕਸਿਆ (ਭੁੱਖ ਦੀ ਕਮੀ), ਕਬਜ਼, ਖੰਡ, ਜਲ ਦੇ ਸਰੀਰ ਅਤੇ ਕੀੜੇ ਦੇ ਰੋਗ.ਇਹ ਲਾਭਕਾਰੀ ਵੀ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੀ ਇਕ ਕਿਸਮ ਹੈ. ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਪੀਲੀ ਹਲਦੀ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ.ਹਲਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹਹਲਦੀ ਪਾ powderਡਰਵਰਤੋਂ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਰਸੋਈ ਦੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਦੇ ਨਾਲ , ਕਈ ਚਿਕਿਤਸਕ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ . ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਹਲਦੀ ਗੱਮ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਮਦਦਗਾਰ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਖੰਘ ਅਤੇ ਖਾਂਸੀ ਸਮੇਤ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਵੀ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਰੂਪ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ. ਇਸ ਸਮੇਂ, ਹਲਦੀ ਉਬਾਲਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਰੀਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ.By Vnita Punjabਵੱਖ ਵੱਖ ਮਨੁੱਖੀ ਰੋਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨਿਦਾਨ ਦੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਲਦੀ ਅਤੇ ਕਰਕੁਮਿਨ (ਏ), ਟੈਸਟਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ; ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਜਾਂ ਬੇਲੋੜੀ ਘਾਟ, ਕਿਸੇ ਨੇ ਵੀ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ. [2] []] []] ਮਨੁੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਕਲੀਨਿਕਲ ਅਜ਼ਮਾਇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਕੋਈ ਸਬੂਤ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਕਿ ਕਰਕੁਮਿਨ (2020 ਤੱਕ) ਸੋਜਸ਼ ਨੂੰ ਘਟਾਉਂਦਾ ਹੈ . [2] [3]

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