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, हड्डियों से आ रही कट-कट की आवाज तो तुरंत खाना शुरू कर दें ये 3 चीजें, इस बीमारी से रहेंगे हमेशा दूर क्या आपको कभी-कभी महसूस होता है कि जब आप अचानक उठते हैं या चलते हैं या फिर बैठते हैं तो आपके घुटनों, कूल्हे और कोहनी की हड्डियों से कट-कट की आवाज आती है। अगर आपने लगतार ऐसा महसूस किया है तो अब वक्त आ गया है कि आप इस बात पर ध्यान दें न कि इसे नजरअंघरेलू नुस्‍खWritten by: समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब क्या आपको कभी-कभी महसूस होता है कि जब आप अचानक उठते हैं या चलते हैं या फिर बैठते हैं तो आपके घुटनों, कूल्हे और कोहनी की हड्डियों से कट-कट की आवाज आती है। अगर आपने लगतार ऐसा महसूस किया है तो अब वक्त आ गया है कि आप इस बात पर ध्यान दें न कि इसे नजरअंदाज करें क्योंकि यह हड्डियों से जुड़ी किसी गंभीर बीमारी का लक्षण हो सकते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि हड्डियों से कट-कट की आवाज आने का मतलब इनका कमजोर होना है। कई बार लोग इसे जोड़ो से जुड़ा रोग समझ लेते हैं। जोड़ों से आने वाली इस प्रकार की आवाज को मेडिकल भाषा में क्रेपिटस कहा जाता है। जोड़ों से कट-कट की आवाज आने के पीछे का कारण जोड़ों के भीतर मौजूद द्रव में हवा के छोटे बुलबुलों का फूटना है। इन्हीं बुलबुलों के फूटने से यह आवाज शुरू होती है। कई बार जोड़ों के बाहर मौजूद मांसपेशियों के टेंडन या लिगामेंट्स की रगड़ से भी आवाज सुनाई देती है। अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से परेशान हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं कि यह किस गंभीर बीमारी का संकेत हैं और इस स्थिति में क्या खाएं ताकि ये बीमारी जल्द ठीक हो जाए।Ads by Jagran.TVकट-कट की आवाज आना ऑस्टियोआर्थराइटिस का संकेतजोड़ों से कट-कट की आवाज आना ऑस्टियोआर्थराइटिस का संकेत हो सकता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस एक प्रकार का गठिया रोग है, जिसमें हड्डियों के सिरों पर लचीले ऊतकों की संख्या कम हो जाती है। इतना ही नहीं घुटनों के जोड़ों पर मौजूद कार्टिलेज भी धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं। इस स्थिति में जब भी हरकत होती है तो कट-कट की आवाज आने लगती है। इस तरह की आवाज आने के साथ दर्द नहीं होता लेकिन यह स्थिति बेहद गंभीर मानी जाती है।बच्चे भी होते हैं शिकारबच्चों या फिर किशोरावस्था के दौरान उनकी हड्डियों से कट-कट की आवाज आती रहती है इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है। बस ध्यान रखें कि उनकी हड्डियों में किसी प्रकार का दर्द या परेशानी का अनुभव तो नहीं हो रहा है। हां इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि बच्च्चे की हड्डियां कमजोर हैं या उनके शरीर में कैल्शियम की कमी है। हड्डियों से कट-कट की आवाज का मतलब उनकी हड्डियों में वायु का अधिक होना है। इस कारण से उनकी हड्डियों के जोड़ों में एयर बबल्स बनते हैं और टूटते हैं, जिसके कारण हड्डियों से कट-कट की आवाज आती है।इसे भी पढ़ेंः इन 4 आसान तरीकों से बढ़ाएं अपनी पाचन शक्ति, बढ़ेगी भूख और शरीर रहेगा तंदरुस्तहड्डियों से कट-कट की आवाज आने पर इन 3 तरीकों से पाए छुटकारामेथी का दानेअगर आप भी हड्डियों की कट-कट की आवाज से अक्सर परेशान रहते हैं इससे समय पर राहत पाना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप इस घरेलू नुस्खे का प्रयोग कर सकते हैं। आपको करना ये है कि रात को आधा चम्मच मेथी के दाने पानी में भिगो दें और सुबह मेथी दानों को चबा-चबा कर खाएं। उसके बाद उसका पानी पी लें। नियमित रूप से ऐसा करने से हड्डियों के बीच एयर बबल्स की समस्या खत्म हो जाएगी और आवाज आना भी बंद हो जाएगी।इसे भी पढ़ेंः Sore Throat: गले की खराश, खांसी और कफ से हैं परेशान तो आजमाएं ये 6 घरेलू नुस्खे, तुरंत मिलेगी राहतदूध पीएंहड्डियों से कट-कट की आवाज आने का मतलब हड्डियों के जोड़ों में लुब्रिकेंट की कमी का एक संकेत भी हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह समस्या बढ़ने लगती है और इसमें दर्द भी रहने लगता है। इसके पीछे आपके शरीर में कैल्शियम की कमी भी हो सकती है। कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए आप हल्दी वाला दूध पीएं। ऐसा करने से दर्द भी दूर होगा और शरीर में कैल्शियम की पूर्ति भी होगी।गुड़ और चनागरीबों का बादाम कहे जाने वाले भुने चने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। भूने चने के साथ गुड़ का भी सेवन शरीर के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। दिन में एक बार गुड़ और भुने हुए चने जरूर खाएं। इससे हड्डियों की कमजोरी दूर हो जाएगी और कट-कट की आवाज आना भी बंद हो जाएगी।Read More Articles On Home Remedies In Hindi DisclaimerTAGSजोड़ों से आवाज आना जोड़ों से आ रही आवाज कट-कट की आवाज आने पर क्या करें घरेलू नुस्खे Noise In Joints Pain In Joints Noise In Joints in hindi get rid of noise in joints in hindiFor You +

If you hear the sound of cuts coming from your bones, start eating these three things immediately, you will always stay away from this disease
 Do you sometimes feel that when you suddenly get up or walk or sit down, there is a sound of a cut from the bones of your knees, hip and elbow. If you have felt like this continuously, now is the time to pay attention to this and not to look at it



 Household tips
 Written by: Socialist Vanita Kasaniyan Punjab
 
 
 
 
 
 Do you sometimes feel that when you suddenly get up or walk or sit down, there is a sound of a cut from the bones of your knees, hip and elbow. If you have felt like this continuously, now is the time that you should not pay attention to it because it can be a symptom of a serious bone disease. Many people believe that the sound of cuts from the bones means they are weak. Many times people understand this joint related disease. This type of sound coming from the joints is called crepitus in medical language. The reason behind the sound of cuts from the joints is the formation of small bubbles of air in the fluid inside the joints. These bubbles burst and this sound starts. Sometimes the sound is also heard from the rubbing of tendons or ligaments of the muscles outside the joints. If you are also troubled by a similar problem, then we are going to tell you what is the sign of this serious disease and what to eat in this situation so that this disease will be cured soon.




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 The sound of cut-off is a sign of osteoarthritis
 Cut sound from joints can be a sign of osteoarthritis. Osteoarthritis is a type of arthritis disease in which the number of flexible tissues at the ends of bones decreases. Not only this, the cartilage present at the knee joints also starts to fade away slowly. In this situation, whenever there is movement, the sound of cut-off starts coming. There is no pain with such a sound, but this condition is considered very serious.


 Children are also victims
 There is no need to be afraid of children or during their teenage years, so there is a sound from their bones. Just keep in mind that they are not experiencing any kind of pain or discomfort in their bones. Yes, this does not mean that the baby's bones are weak or they are deficient in calcium. The sound of a cut from the bones means more air in their bones. For this reason air bubbles are formed and break in the joints of their bones, due to which the sound of cut-off comes from the bones.


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 These 3 ways to get rid of the sound of cuts from the bones
 Fenugreek seeds
 It is very important to get timely relief from this if you are also often disturbed by the sound of the cut of bones. For this you can use this home remedy. All you have to do is soak half a teaspoon of fenugreek seeds in water at night and eat it in the morning by chewing fenugreek seeds. After that drink its water. Doing this regularly will eliminate the problem of air bubbles between the bones and stop the noise.


 Also read: Sore Throat: Try these 6 home remedies if you are troubled by sore throat, cough and phlegm, get relief immediately

 Drink milk
 The sound of cuts from the bones can also mean an indication of a lack of lubricant in the bones' joints. With aging, this problem starts to increase and pain starts in it. There may also be a deficiency of calcium in your body behind this. To meet calcium deficiency, you should drink turmeric milk. By doing this, the pain will also go away and the calcium will be replenished in the body.

 Jaggery and gram
 Carbohydrates, protein, calcium, iron and vitamins are found in plenty in roasted gram called pooram of the poor. Consuming jaggery along with roasted gram is considered very beneficial for the body. Jiggery and roasted gram must be eaten once a day. This will remove osteoporosis and stop the sound of cuts.

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औषधी गुणधर्म आणि हळद आणि आलेची लागवड हळदीचे गुणधर्म आलेचे गुणधर्म हळद आणि आलेची लागवड हवामान माती आणि त्याची तयारी पेरणीची वेळ प्रगत वाण बियाणे दर व बीजोपचार खते आणि खते अंतर लावत आहे अर्ज करण्याची पद्धत कृषी कार्य आणि काळजी खोदाई आणि उत्पन्न सुका आले हळद आणि आले दाणे ठेवा हळदीचे गुणधर्म मुख्यतः मसाला म्हणून वापरला जातो. हे भूक वाढवते आणि शक्तिवर्धक बनवण्यासाठी वापरली जाते. रक्त स्वच्छ करते. अंतर्गत जखम बरे करते आणि चामड्याचे संक्रमण बरे होते. हे अँटीसेप्टिक म्हणून वापरले जाते. हे सौंदर्यप्रसाधने आणि 'कुम-कुम' मध्ये वापरले जाते. खोकल्यात हळद आगीत भाजून पाण्याने बारीक केल्यास फायदा होतो. दुधाबरोबर हळद घेतल्यास दुखापतीमुळे सूज कमी होते आणि पोटाचा किडा देखील मरतो. वेदना आणि सूज वर हळद आणि चुनाची पेस्ट लावल्यास आराम मिळतो. आलेचे गुणधर्म पचन वाढवते, श्लेष्मा काढून टाकते. रक्तवाहिन्या फुटण्यामुळे रक्ताचा प्रवाह बरा होतो. लठ्ठपणा दूर करते. पोटात गॅस काढून टाकण्यासाठी भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती आणि लिंबाचा रस वापरणे फायदेशीर आहे (50 ग्रॅम आल्याची पावडर आणि 30 ग्रॅम भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती आणि एक लिंबाचा रस). आवाज बंद झाल्यावर मध सह आलेचा रस खाल्ला जातो. बद्धकोष्ठता आणि खोकला देखील आल्याचे सेवन फायदेशीर आहे. हळद आणि आलेची लागवड हळद आणि आले दोन्ही मसालेदार भाज्या आहेत ज्यांची शेती आपल्या देशात मोठ्या प्रमाणात केली जाते. भाज्यांमध्ये हे मसाले वापरण्याव्यतिरिक्त हे औषध म्हणून देखील वापरले जात आहे. हळदीचा वापर भाजीपाला मध्ये होतो. आल्याची परदेशातही निर्यात केली जाते, ज्यामुळे परकीय चलन मिळते. चोटनागपूरमध्येही त्यांची लागवड करुन शेतक good्यांना चांगले उत्पन्न मिळू शकते. सुरुवातीला त्यांच्या लागवडीसाठी भरपूर भांडवल आवश्यक असते. बियाण्यांवर जास्त खर्च होतो. जर शेतक next्यांनी पुढील वर्षासाठी बियाणे ठेवले तर पहिल्या वर्षामध्येच भांडवल गुंतविण्याची गरज भासू शकेल. हवामान हे गरम आणि ओले दोन्ही हवामानात चांगले उत्पादन देते. खरीप हंगामात त्यांची लागवड केली जाते. वनस्पतींचा विकास करण्यासाठी हलका पाऊस चांगला आहे. पिकण्याच्या वेळी पाऊस पडणे आवश्यक नसते. जेथे पाऊस 1000-11400 मी. ते एक लिटर पर्यंत यशस्वीरित्या लागवड करता येते. या अर्थाने, पठाराचे क्षेत्र त्यांच्या लागवडीसाठी योग्य आहे. या साठी पुरेसा पाऊस आहे. हळद आणि आले लावण्यासाठी सुमारे 30 डिग्री तपमान आवश्यक आहे. हळद आणि आल्याची छाया छायादार ठिकाणीही करता येते. घराच्या उत्तरेकडील किंवा झाडाच्या उत्तरेकडील भागात कमी सूर्यप्रकाश असल्यास यशस्वीरित्या लागवड करता येते. माती आणि त्याची तयारी हळद आणि आले दोघेही जमिनीखालून बसतात, त्यामुळे हलकी माती असणे आवश्यक आहे. मातीतील पाण्याचा निचरा चांगला असावा. वालुकामय चिकणमाती ते चिकणमाती माती योग्य आहे. मातीत पुरेसे प्रमाणात बॅक्टेरिया असणे आवश्यक आहे. अल्कधर्मी मातीत चांगले उत्पादन मिळत नाही. शेतकरी बांधवानेही जमीन बदलतच राहावी आणि सलग तीन वर्षे त्याच शेतात शेती करु नये. बर्‍याच वर्षांपासून एकाच शेतात सतत शेती केल्यास रोग होण्याची शक्यता वाढते. शेत तयार करण्यासाठी एकदा नांगरणी करुन माती नांगरणी करुन आणि नांगरणीनंतर तीन ते चार वेळा नांगरणी केल्यास ती माती ठिसूळ होईल जी जमिनीपासून 10-15 सें.मी. उंच असावी. पेरणीची वेळ हळद आणि आले सुमारे आठ महिन्यांत तयार होते, म्हणून त्यांची पेरणी सुरू करणे आवश्यक आहे जेणेकरून त्यांना वाळण्यास पुरेसा वेळ मिळेल. जर सिंचन करावयाचे असेल तर त्यांना मेच्या मध्यावर पेरणी करा. जर तुम्हाला पावसाळी शेती करायची असेल तर पावसाळा पाऊस पडताच पेरणी करा. प्रगत वाण हळदीचे 'पटना' म्हणून ओळखले जाणारे वाण बिहार आणि बंगालमध्ये पाळले जाते. राजेंद्र कृषी विद्यापीठाने निवडलेली वाण 'मीनापूर' असून ती मध्ययुगीन आहे. राजेंद्र सोनिया जाती या प्रदेशात चांगले उत्पादन देते. कृष्णा, कस्तुरी, सुगंधम, रोमा, सुरोभा, सुदर्शन, रंगा आणि रशिम हळदीच्या इतर जाती आहेत. बियाणे दर व बीजोपचार बियाणे काळजीपूर्वक निवडा. एक निरोगी आणि रोग-मुक्त राइझोम निवडा. लांब नॉट ज्यात तीन ते चार निरोगी कळ्या असतात ते बियाण्यास योग्य असतात. मोठे राईझोम देखील कापून ते लागू करता येतात. कट करून राइझोमवर उपचार करणे आवश्यक आहे आणि कापताना हे लक्षात ठेवावे की प्रत्येक तुकड्यात किमान दोन-तीन कळ्या असणे आवश्यक आहे. एक हेक्टर क्षेत्रासाठी लागवडीसाठी सुमारे 20-25 क्विंटल राईझोम बियाणे आवश्यक आहे. कट करताना कमी rhizome आवश्यक आहे. रोप लावण्यापूर्वी rhizome चा उपचार करणे आवश्यक आहे, विशेषत: rhizome कापताना. यासाठी इंडोफिल एम -45 नावाच्या औषधाचे 0.2 टक्के द्रावण तयार केले जावे. एका लिटर पाण्यात 2 ग्रॅम औषध जोडल्यानंतर 0.2 टक्के द्रावण तयार होईल. आपण बॅबिस्टाइन नावाच्या औषधाचे 0.1 टक्के द्रावण देखील वापरू शकता. 0.1 टक्के द्रावण तयार करण्यासाठी, एक लिटर पाण्यात 1 ग्रॅम औषध घाला. स्लरी तयार करताना दोन्ही औषधांचे मिश्रण अधिक उपयुक्त असल्याचे आढळले. राईझोम बरा करण्यासाठी १ तासाला द्रावणात h तास ठेवा आणि त्यानंतर ते द्रावणातून काढून २ 24 तास एखाद्या अंधुक ठिकाणी ठेवा. त्यानंतरच त्यांनी ते पेरले. बियाणे राइझोमचा वापर 0.25% अगारोल किंवा सारीसन किंवा ब्लॅटाक्सच्या द्रावणामध्ये देखील केला जाऊ शकतो. खते आणि खते प्रति हेक्टर - कंपोस्ट: 20 क्विंटल युरिया: 200-225 किलो एसएसपी : 300 किलो एमओपी : 80-90 किलो कंपोस्ट शेतात तयार करताना मातीमध्ये चांगले मिसळा. शेताची अंतिम तयारी करताना पोटॅशचे निम्मे प्रमाण आणि एन फॉस्फरस द्यावे. पेरणीनंतर days० दिवसानंतर अर्धा युरिया आणि उर्वरित अर्धा पोटाश द्या. उरलेले अर्धे यूरिया पेरणीनंतर 90 ० दिवसांनी द्यावे व माती द्या. अंतर लावत आहे हळद: 45 सेमी x 15 सेमी आले: 40 सें.मी. x 10 सेमी अर्ज करण्याची पद्धत निचरा आणि गॅस मध्ये लागू. पावसाळ्यात उंच बेड बनवा. (अ) उन्हाळ्यात हळद आणि आले पेरण्यासाठी, एक ट्रेचा 15-25 सेंमी खोल आणि तितकाच 40-45 सेंमीच्या अंतरावर रुंद केला जातो. नाल्यात कंपोस्ट आणि रासायनिक खताचे मिश्रण देऊन ते मातीत चांगले मिसळतात. बियाणे नाल्यात 10 सेमी अंतरावर राईझोम पेरतात आणि माती झाकतात. माती झाकताना, काळजी घ्या की नाले जमिनीच्या खाली थोडेसे राहील जेणेकरुन उन्हाळ्यात पाणी देण्याची सोय होईल. पावसाच्या आगमनाने, पाणी गोठू नये म्हणून मातीचे ढीग केले आहेत. (ब) पावसाळ्यात हळद आणि आले लावण्यासाठी लहान बेड जमिनीपासून 8-10 सें.मी. उंच असावेत, जेणेकरून पावसात पाणी नसेल. 3.20 मीटर लांब आणि 1 मीटर रूंदीचे बेड बनवू शकतात. या बेडांमध्ये, पेरणी ओळीपासून 40 सेंमी आणि वनस्पतीपासून 10 सें.मी. अंतरावर केली जाते. पेरणीसाठी, आम्ही 10 सें.मी. खोलीचे निचरा बनवितो आणि त्या नाल्यात 10 सेमी अंतरावर राईझोम पेरतो. पेरणीच्या वेळी डोळा (अंकुर) राईझोममध्ये वरच्या बाजूस असावा. पेरणीनंतर, rhizome माती सह संरक्षित आहे. यानंतर आम्ही सिंचन देतो. पेरणीनंतर बियाणे 5- ते cm सें.मी. जाड आंबा, गुलाबवुड, तण किंवा शेण कुजलेले खत घाला जेणेकरून ओलावा टिकून राहील. यापेक्षा तणही कमी वाढेल. कृषी कार्य आणि काळजी शेतात तणमुक्त ठेवणे आवश्यक आहे. यासाठी आपण तीन ते चार वेळा केले पाहिजे. शेवटची वेळ चिखल मातीने करावी. सुरुवातीला दोन ते तीन सिंचन आवश्यक असू शकते. पावसाळ्यामध्ये सिंचन देण्याची गरज भासणार नाही, परंतु पाण्याची भीड नसल्याचे सुनिश्चित करा. जेव्हा फुले बाहेर येतात तेव्हा त्यांना बाहेर फेकून द्या. एखाद्या तज्ञाचा सल्ला घेऊन कीटक व आजारांपासून पीक वाचवा. खोदाई आणि उत्पन्न आल्याचे पीक सुमारे आठ ते नऊ महिन्यांत आणि हळद नऊ ते दहा महिन्यांत खोदण्यास योग्य ठरते जेव्हा झाडाची पाने पिवळ्या रंगाची आणि वाळलेली आणि वाकलेली दिसतात तेव्हा हे समजून घ्यावे की आता खोदण्याची योग्य वेळ आहे. यावेळी, फटके मारुन काळजीपूर्वक काढा. कच्च्या हळदचे उत्पादन प्रति हेक्टरी -4००--450० क्विंटल आणि कोरडी हळद १ 15 ते २ percent टक्के पर्यंत मिळते. आलेचे उत्पादन प्रति हेक्टरी 200 क्विंटल आहे. आले खोडून काढल्यानंतर ते दोन किंवा तीन वेळा पाण्याने धुवा आणि धूळ स्वच्छ करा. यानंतर, तीन ते चार दिवस हलक्या उन्हात वाळवा. हळद गाठ धुवून चांगले स्वच्छ करा. यानंतर, जेव्हा गठ्ठ्या पाण्यात 0.1% चुना मिसळल्या जातात, जेव्हा उकळत्या फेस येऊ लागतात आणि हळद सारखा वास येतो, तेव्हा rhizome घ्या आणि 10-15 दिवस सावलीत वाळवा. सुका आले आले कोरडे करण्यासाठी आल्याची गठ्ठ्या व्यवस्थित ट्रिम करुन पाण्यात टाका. जेव्हा त्याची त्वचा वितळते तेव्हा ती आठवड्यातून स्वच्छ आणि उन्हात वाळवावी. यानंतर, चुना पाणी आणि गंधक सह उपचार, नंतर उन्हात ठेवले. अशा प्रकारे, आल्याचा सुमारे 1/5 भाग कोरडा आल्याच्या स्वरूपात आढळतो. समाजसेवक वनिता कसानी पंजाब यांनी केले. हळद आणि आले दाणे ठेवा पुढील वर्षासाठी शेतकरी बांधव बियाणे rhizome ठेवणे आवश्यक आहे. यासाठी, खड्डा 1 मीटर खोल आणि 50 सेंमी रुंद छायादार ठिकाणी बनविला गेला आहे. बियाणे rhizome इंडोफिल एम 45 किंवा Babistein द्वारे उपचार केला जातो. खड्ड्याच्या पृष्ठभागावर, 20 सेमी वाळू विश्रांती घेते. याच्या वरच्या cm० सेंमीच्या थराला rhizome आहे. या वर, वाळूचा थर देऊन नंतर राईझोमचा थर द्या. अशाप्रकारे, र्‍झोझोम खड्ड्यात ठेवून, खड्ड्याला देठाने झाकून ठेवा. खड्डा आणि राइझोम दरम्यान, हवेसाठी 10 सेमी रिक्त जागा सोडा. यानंतर, आम्ही ते मातीच्या माथ्यावरुन लागू करतो. अशाप्रकारे, पुढच्या हंगामात बियाणे पेरणी केल्याने राईझोम सुरक्षित राहील.

ਹਲਦੀਹਲਦੀ (ਹਲਦੀ) ਇਕ ਭਾਰਤੀ ਖਾਣ ਵਾਲੀ ਸਬਜ਼ੀ ਹੈ.ਇਕ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹੋਡਾ .ਨਲੋਡਆਪਣਾ ਖਿਆਲ ਰੱਖਣਾਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋ By Vnita Kasnia.ਹਲਦੀ ਭਾਰਤੀ ਪੌਦਾ ਹੈ . ਇਹ ਅਦਰਕ ਜਾਤੀਆਂ ਦਾ 5-8 ਫੁੱਟ ਉੱਗਣ ਵਾਲਾ ਪੌਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਜੜ੍ਹ ਦੇ ਨੋਡਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਚਮਤਕਾਰੀ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਚਿਕਿਤਸਕ ਟੈਕਸਟ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹਰਿਦ੍ਰਾ, ਕੁਰਕੁਮਾ ਲੌਂਗਾ, ਵਰਵਰਨੀ, ਗੌਰੀ, ਕਰੀਮਘਨਾ ਯੋਸ਼ਿਤਾਪ੍ਰਿਯਾ, ਹੱਟਵਿਲਾਸਾਨੀ, ਹਰਦਾਲ, ਕੁਮਕੁਮ, ਤਿਰਮਰਿਕ ਹੈ। ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਦਵਾਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਰਸੋਈ ਵਿਚ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੁੱਭ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰਸ ਦੀ ਆਪਣੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ.ਲਾਤੀਨੀ ਨਾਮ: ਕਰਕੁਮਾ ਲੋਂਗਾਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਮ: ਹਲਦੀਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਨਾਮ: ਜਿਨਜੀਆਂਗਹਲਦੀ ਦਾ ਪੌਦਾ: ਇਸਦੇ ਪੱਤੇ ਵੱਡੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ.ਲੰਬੇ ਆਯੁਰਵੈਦਿਕ ਦਵਾਈ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਵੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ Haridra [1] , ਅਮਰੀਕੀ ਖੁਰਾਕ ਤੇ ਡਰੱਗ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਅਨੁਸਾਰ [2] [3] , ਹਲਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜ ਇਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਹੈ ਉੱਚ-ਗੁਣਵੱਤਾ ਕਲੀਨਿਕਲ ਸਬੂਤ ਸਮੱਗਰੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ , ਕਰਕੁਮਿਨ .ਜਾਣ ਪਛਾਣ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਵਿਚ 5.8% ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਤੇਲ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ 6.3%, ਤਰਲ 5.1%, ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ 3.5%, ਅਤੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ 68.4% ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਰੰਗ ਕਰਕੁਮਿਨ, ਵਿਟਾਮਿਨ ਏ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਗਠੀਏ , ਖੂਨ ਦੇ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਕੈਂਸਰ , ਜਰਾਸੀਮੀ ਲਾਗ, ਹਾਈ ਬਲੱਡ ਪ੍ਰੈਸ਼ਰ ਅਤੇ ਐਲਡੀਐਲ ਕੋਲੈਸਟ੍ਰੋਲ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਸੈੱਲਾਂ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਵਿਚ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ. ਹਲਦੀ ਕਫਾ-ਵਟਾ ਸੈਡੇਟਿਵ, ਪਿਟਾ ਲਚਕਦਾਰ ਅਤੇ ਪਥਰ ਸੈਡੇਟਿਵ ਹੈ. ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਖੂਨ ਦੀ ਸਟੈਸੀਜ਼, ਪਿਸ਼ਾਬ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ, ਗਰਭ, ਕੜਵੱਲ, ਚਮੜੀ ਰੋਗ, ਵੈਟਾ-ਪਿਤ-ਬਲਗਮ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਫਾਇਦੇਮੰਦ ਹੈ. ਇਹ ਜਿਗਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਵਿੱਚ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਪਲਸ ਕੋਲਿਕ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਾਚਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ, ਐਨਓਰੇਕਸਿਆ (ਭੁੱਖ ਦੀ ਕਮੀ), ਕਬਜ਼, ਖੰਡ, ਜਲ ਦੇ ਸਰੀਰ ਅਤੇ ਕੀੜੇ ਦੇ ਰੋਗ.ਇਹ ਲਾਭਕਾਰੀ ਵੀ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ. ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਦੀ ਇਕ ਕਿਸਮ ਹੈ. ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਕਾਲੀ ਹਲਦੀ ਪੀਲੀ ਹਲਦੀ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹੈ.ਹਲਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹਹਲਦੀ ਪਾ powderਡਰਵਰਤੋਂ ਸੰਪਾਦਿਤ ਕਰੋਹਲਦੀ ਰਸੋਈ ਦੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਦੇ ਨਾਲ , ਕਈ ਚਿਕਿਤਸਕ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ . ਆਯੁਰਵੈਦ ਵਿਚ ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਹਲਦੀ ਗੱਮ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਮਦਦਗਾਰ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਖੰਘ ਅਤੇ ਖਾਂਸੀ ਸਮੇਤ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਵੀ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਹਲਦੀ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਰੂਪ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ. ਇਸ ਸਮੇਂ, ਹਲਦੀ ਉਬਾਲਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਰੀਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ.By Vnita Punjabਵੱਖ ਵੱਖ ਮਨੁੱਖੀ ਰੋਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨਿਦਾਨ ਦੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਲਦੀ ਅਤੇ ਕਰਕੁਮਿਨ (ਏ), ਟੈਸਟਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ; ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਜਾਂ ਬੇਲੋੜੀ ਘਾਟ, ਕਿਸੇ ਨੇ ਵੀ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ. [2] []] []] ਮਨੁੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਕਲੀਨਿਕਲ ਅਜ਼ਮਾਇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉੱਚ ਗੁਣਵੱਤਾ ਦਾ ਕੋਈ ਸਬੂਤ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਕਿ ਕਰਕੁਮਿਨ (2020 ਤੱਕ) ਸੋਜਸ਼ ਨੂੰ ਘਟਾਉਂਦਾ ਹੈ . [2] [3]

Turmeric  Turmeric (turmeric) is an Indian edible vegetable.  Read in another language  Download  Take care of yourself  Edit By Vnita Kasnia.  Turmeric is an Indian plant. It is a 5-8 foot tall plant of the genus Ginger in which turmeric is found in the root nodes. Turmeric has been considered a miracle ingredient in Ayurveda since ancient times. Apart from turmeric in medical texts, its names are Haridra, Kurkuma Longa, Varvarni, Gauri, Karimghana Yoshitapriya, Hatvilasani, Hardal, Kumkum, Tirmarik. Turmeric is said to be an important medicine in Ayurveda. It holds an important place in Indian cuisine and is considered religiously auspicious. Turmeric juice has its own special significance in marriage.  Latin Name: Karkuma Longa  English name: Turmeric  Family Name: Xinjiang  Turmeric plant: Its leaves are large.  Turmeric has long been used in Ayurvedic medicine where it is used, but also known as Haridra [1], according to ...

These home remedies relieve oily skin: Home Remedies for Oily Skin by social worker Vanita Kasani Punjab4Nowadays oily skin problem is very common. Skin oil

तैलीय त्वचा (ऑयली स्किन) से छुटकारा दिलाते हैं ये घरेलू उपाय : Home Remedies for Oily Skin By  समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब आजकल तैलीय त्वचा ( ऑयली स्किन ) की समस्या बहुत आम हो गई है। त्वचा के तैलीय हो जाने के कारण मुँहासे, व्हाइटहेड्स, ब्लैकहेड्स की समस्या होने लगती है। आपकी त्वचा कैसी है यह मुख्य रूप से तीन बातों पर निर्भर करता है। ये तीनों चीजें है- लिपिड का स्तर, पानी और संवेदनशीलता। इस लेख में हम तैलीय त्वचा से छुटकारा पाने के आसान उपाय (O ily skin care tips)  बता रहे हैं।     तैलीय त्वचा में लिपिड का स्तर, पानी और वसा की मात्रा ज्यादा होती है। तैलीय त्वचा में सामान्य त्वचा की तुलना में पाये जाने वाले सेबेसियस ग्लैंड ज्यादा सक्रिय होते हैं। तैलीय त्वचा होने की ज्यादा संभावना हार्मोनल बदलाव की वजह से होती है। कई बार जीवनशैली भी तैलीय त्वचा के लिए जिम्मेदार होती है। कुछ लोगों में प्राकृतिक रूप से तैलीय त्वचा पाई जाती है। तैलीय त्वचा में रोमछिद्र सामान्य त्वचा से ज्यादा बड़े पाये जाते हैं।   BAL Vnita Kasnia Punjab तैलीय त्वचा (ऑयली स्किन) क्या...